ब्रह्मांड की संरचना से लेकर उसके अंत तक के पीछे त्रिमूर्ति को माना जाता है। ब्रह्मा इसकी रचना करते हैं, विष्णु जी इसके अंत होने तक संरक्षण और शिवजी अंत। ऐसी मान्यता है कि जब भी इस धरा पर मनुष्य अपने कर्मो से भटक कर अधर्म की राह पर चलने लगता है, तब स्वयं विष्णु जी इस धरती पर अवतरित होते हैं। श्रीमद्भगवत गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने इस बात की पुष्टि की है:
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युथानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे॥
गीता का यह सबसे लोकप्रिय श्लोक है और इसका अर्थ सीधा और सरल है: भगवन कहते हैं कि, “जब कभी भारत भूमि में अधर्म अत्यधिक बढ़ जाएगा, तब मैं स्वयं धरती पर जन्म ले इन विनाशकारी शक्तियों का नाश करूंगा।”
हिन्दू पुराणों एवं अन्य धर्म ग्रंथो के अनुसार विष्णु जी के कुल दस अवतार हैं। पहले तीन अवतार सतयुग में, चार त्रेतायुग में, दो द्वापर युग मे, और अंतिम दो इस युग मे (आखिरी अवतार अवतरित होगा)।
नये युग की शुरुवात के लिए जब प्रलय आने वाला था, उसके कुछ समय पूर्व जब ब्रह्माजी के मुख से वेदों का ज्ञान निकला, तब हयग्रीव नामक असुर ने उसे चुराकर निगल लिया। इस असुर का वध करने के लिए विष्णु जी ने पृथ्वी लोक पर अपना प्रथम अवतार लिया। एक छोटी मछली के रूप में।
राजा सत्यव्रत मनु जब एक सुबह सूर्य देव को अर्ध्य दे रहे थे, तब एक छोटी मछली(विष्णु जी का मत्स्य अवतार) ने उनसे अनुरोध किया कि वह अपने कमंडल में उन्हें रख लें। जैसे ही राजा ने उन्हें अपने कमंडल में लिया, वह मछली उस कमंडल जितनी बड़ी हो गई। राजा अब उस मछली को जिस भी पात्र में रखने की कोशिश करते, वह उतनी ही बड़ी हो जाती!
राजा ने फिर उस मछली को विशाल समुद्र में डाल दिया, तो वह एक सुनहरी समुद्र जितनी विशाल हो गई। तब भगवान ने आकाशवाणी कर अपने सभी भक्तों को सूचित किया कि इस युग की समाप्ति होने जा रही है। “आप सभी उस नौका में बैठ जाएँ।” सबको नौका में बिठाकर फिर उस असुर हयग्रीव का वध कर, एक नये युग की स्थापना हुई।
इस अवतार का उल्लेख भागवत पुराण, विष्णु पुराण एवं कूर्म पुराण में मिलता है। कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी माना जाता है,क्योंकि इस अवतार में विष्णु जी ने एक कछुये का रूप धारण किया था। दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण जब सभी देवताओं की शक्ति चली गई थी, तब विष्णु जी ने समुद्र मंथन कर अमृत प्राप्त करने को कहा।
मथानी के रूप में मंदराचल पर्वत और रस्सी के रूप में वासुकि साँप को लिया गया लेकिन कुछ समय बाद ही वह पर्वत नीचे की ओर खिसकने लगा। तभी विष्णु जी ने कूर्म रूप(कछुए का रूप ) धारण कर उस पर्वत को अपनी पीठ का सहारा दिया। मान्यता अनुसार उस कछुए का व्यास एक लाख योजन( वैदिक मापने की इकाई) से भी अधिक था।
विष्णु जी ने यह अवतार, धरती को बचाने के लिए लिया था। असुर हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को समुद्र में जाकर छिपा दिया था, उस समय सभी देवताओं ने मिलकर ब्रह्मा जी से धरा को बचाने के लिए प्राथना की, और तभी उनकी नासिका से भगवान विष्णु जी ने वराह के रूप में अवतार लिया। वराह रूप धारण करने के पश्चात उन्होंने धरती को समुद्र से खोजकर वापस उसके उचित स्थान पर रख दिया। यह देखकर हिरण्याक्ष ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा, जिससे दोनों में भयंकर युद्ध हुआ और हिरण्याक्ष असुर का वध हुआ।
दक्षिण भारत में वैष्णव संप्रदाय के लोगो मे विष्णु जी के इस रूप की ही पूजा की जाती है। दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप को यह वरदान मिला था कि न ही उसे कोई देवता मार सकते है, न मनुष्य, और न ही कोई जानवर या पक्षी।उसके राज्य में जो भी विष्णु जी की आराधना करता वह उसे दंड स्वरूप मार देता।
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद विष्णु जी का बहुत बड़ा भक्त था, इसलिए उसने अपने पुत्र को मारने के लिए कई योजना बनाई लेकिन असफल रहा। एक दिन उसने स्वयं उसे मारना चाहा तभी विष्णु जी ने खम्बा फाड़कर नरसिंह रूप धारण कर उसका वध किया।
त्रेता युग के प्रथम और विष्णु जी के यह पाँचवे अवतार थे। यह विष्णु जी का पहला ऐसा अवतार था जो पूर्ण मानव रूप में था।भक्त प्रह्लाद के पौत्र राजा बली से देवलोक वापस लेने के लिए विष्णु जी ने वामनावतार लिया था। अपनी तपस्या से असुर राजा बली ने तीनों लोक पर अपना अधिकार जमा लिया था।वामन, एक छोटे ब्राह्मण के रूप में राजा बली के पास गए और अपने रहने के लिए तीन कदम भूमि की माँग रखी।राजा बली ने उनके आग्रह अनुसार उन्हें वचन दे दिया।
वामन देव ने अपना आकार बहुत बड़ा कर लिया और अपने पहले कदम में पूरी धरा नाप ली, दूसरे में देवलोक औऱ तीसरे के लिए कोई जगह न होने के कारण राजा बली ने अपना सिर दे दिया। उनकी इस वचनबद्धता के कारण विष्णु जी ने उन्हें पाताल लोक देना चाहा और उनके सिर पर पैर रखा।
विष्णु पुराण, भागवत पुराण और अन्य धर्म ग्रन्थों मे परशुराम जी को विष्णु जी का आवेशअवतार माना गया है। महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान से उनकी पत्नी रेणुका के गर्भ से परशुराम ने जन्म लिया था।
राक्षक राज रावण का त्रेता युग मे आतंक बढ़ने के कारण विष्णु जी ने महाराजा दशरथ और महारानी कौशल्या के यहाँ जन्म लिया। इस अवतार में विष्णु जी ने मर्यादा का पालन करते हुए अनेक असुरो का अंत किया। सीताहरण के पश्चात अपनी वानर सेना तैयार कर रावण से युद्ध कर के उसका वध किया।
विष्णु जी ने अपना यह अवतार द्वापरयुग में अधर्मी कंस के वध के लिए लिया था। आकाशवाणी के अनुसार कंस का वध उसकी बहन देवकी की आठवीं संतान द्वारा होना तय था। इसके कारण उसने अपनी बहन को बंधी बनाकर रखा औऱ उसके बच्चों को जन्म के तुरंत बाद ही मार डाला। लेकिन आठवी संतान के जन्म के बाद उनके पिता उन्हें गोकुल में नंद के यहाँ लालन पोषण के लिए दिया।इस अवतार में विष्णु जी ने कंस के साथ साथ अनेक असुरों का अंत किया।
बुद्ध को भगवान विष्णु जी का अवतार माना गया है। धर्म ग्रंथो के अनुसार जब दैत्यों की शक्ति अधिक बढ़ने लगी तब सभी देवताओं ने विष्णु जी से प्राथना कर इस समस्या का निराकरण करने के लिए कहा। भगवान ने बुद्ध के रूप में अवतार लेकर दैत्यों को यज्ञ न करने का उपदेश दिया जिससे उनकी शक्तियों में कमी आने लगी और फिर देवताओ ने उनपर हमला कर उनका वध किया।
कलयुग के अंत और सतयुग की शुरुआत के पहले, विष्णु जी के दसवें अवतार के रूप में इनका जन्म होगा।
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