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क्यूँ लिया शिव-पार्वती ने राधा-कृष्ण का अवतार

हिन्दू संस्कृति और सभ्यता सतरंगी कथाओं और वार्ताओं से भरी पड़ी है। इन कथाओं में सबसे अधिक लीलाधारी कृष्ण की कथाओं से पुराण भरे हुए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि भगवान महादेव भी कम लीलाधारी नहीं थे। इस बात का प्रमाण उनका राधा के रूप में जन्म लेकर कृष्ण के साथ प्रेम और रास रचने जैसी घटना से मिलता है।

महाभारत जैसे महाकाव्य से यह अनुमान होता है ,कि श्रीकृष्ण, भगवान विष्णु और वृषभानु दुलारी राधा रानी, लक्ष्मी जी का अवतार थीं। लेकिन आपको यह जानकार अचरज होगा की वास्तव में राधा और कृष्ण और कोई नहीं भगवान शिव और देवी पार्वती के अवतार थे।

यह कथा इतनी अनसुनी है, कि इसके बहुत अधिक साक्ष्य भी नहीं हैं। लेकिन हरिद्वार में कृष्ण लीला और कनखल में कृष्ण मंदिर इस कथा के साक्षात रूप हैं। आइये आपको इस कथा का रहस्य बताएं।

शिव-पार्वती का अजब खेल

पुराणों में कहा गया है, कि एक बार शिव-पार्वती कैलाश पर्वत पर विहार कर रहे थे। उस समय भगवान महादेव, पार्वती के रूप पर अत्यधिक मोहित थे। उन्होने पार्वती के नारीत्व की सराहना करते हुए एक अजीब सी इच्छा व्यक्त कर दी।

पार्वती से महादेव ने कहा कि वो चाहते हैं, कि देवी पार्वती मृत्यु लोक में पुरुष रूप में और महादेव स्वयं नारी रूप में अवतरित हों। इस प्रकार अवतरित होकर वे एक दूसरे के प्रेम को पुनः प्राप्त करना चाहते हैं।

देवी पार्वती ने उनकी इच्छा का मान रखते हुए एक युक्ति निकली। उसी समय श्री ब्रह्मा जी गोरूप धारी पृथ्वी के साथ कैलाश आए और देवी पार्वती से प्रार्थना की,कि पूर्व काल में देवी भगवती और भगवान विष्णु के रूप में जिन दानवों का संहार हुआ था, वो अब दुराचारी राजा बनकर फिर से आतंक फैला रहे हैं।

ब्रह्मा जी ने देवी पार्वती और महादेव से पृथ्वी को इन दुष्ट राजाओं से मुक्त करने की प्रार्थना की। तब देवी पार्वती ने अपनी सोची हुई युक्ति के अनुसार ब्रह्मा जी और पृथ्वी को आश्वस्त करते हुए कहा, कि वो स्त्री रूप में इस कार्य को करने में असमर्थ हूँ ।

इसको स्पष्ट करते हुए उन्होने कहा, कि वो देवी रूप में उन सभी राजाओं को अभयदान दे चुकीं हैं। इसलिए मेरा भद्रकाली का रूप वासुदेव के यहाँ कृष्ण के रूप में अवतार लेंगे और कंस आदि सभी दुष्ट राजाओं का संहार करेंगे।

उनकी सहायता के लिए भगवान विष्णु ने पांडु पत्नी कुंती के गर्भ से अर्जुन के रूप में जन्म लिया और भगवान महादेव ने अपनी इच्छा पूरा करने के लिए वृषभानु के यहाँ राधा के रूप में जन्म लिया। कुछ समय बाद कृष्ण और राधा ने अपनी सखियों के साथ रास लीला करके अपनी अनोखी इच्छा की पूर्ति की।

कुरुक्षेत्र से वापसी

भगवान महादेव और देवी पार्वती का जब राधा-कृष्ण अवतार लेने का उद्देश्य पूर्ण हो गया तब कैलाश वापसी के लिए उन्होनें कुरुक्षेत्र में हुए महाभारत के युद्ध को चुना। इस युद्ध की समाप्ति के बाद कृष्ण रूपी देवी पार्वती ने समुद्र की ओर रुख किया।

वहाँ शिव , नंदी उनके लिए सिंह की सवारी वाले रथ के साथ उपस्थित थे। काली रूप धारी कृष्ण ने अपने मूल रूप में उस रथ पर आरूढ़ होकर कैलाश की ओर प्रस्थान किया. जिसका सभी देवताओं ने पुष्प वर्षा से स्वागत किया। वहाँ राधा रूप धारी भगवान महादेव पहले से ही विद्यमान थे। इस प्रकार भगवान महादेव का राधा रूप और देवी पार्वती का कृष्ण अवतार का उद्देशय पूर्ण हुआ।

कनखल का मंदिर

इस घटना को प्रतीक मानकर आज भी शिव की ससुराल कनखल (हरिद्वार) में शिव-पार्वती का राधा-कृष्ण के रूप में एक मंदिर भी है, जहां उनके रास रचाए जाने के चित्र प्रमाण स्वरूप मौजूद हैं।

 

Charu Dev

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