कहते हैं, किसी भी महिला को अगर खुश करना है, तो उसे तोहफे दिए जाने चाहिए। उसमें भी तोहफा अगर श्रृंगार का सामान हो तो क्या कहने! महिलायें अक्सर ही गहनों को देखकर उनकी तरफ आकर्षित हो जाती हैं। सोने के गहने तो महिलाओं की पहली पसंद होती है। जैसे किसी बच्चे को खुश करने के लिए उसे चॉक्लेट दी जाती है, वैसे अगर किसी महिला को खुश करना हो, तो उसे सोने के आभूषण दिए जाते हैं।
लेकिन एक बात ग़ौर करने की है, कि अक्सर यह देखा गया है, कि महिलायें हमेशा अपने पैरों में सोने के आभूषण नहीं पहनती हैं। हमेशा पायल सोने के बजाये चाँदी की ही क्यों पहनी जाती हैं?
यह कोई इत्तेफाक नहीं है, बल्कि इसके पीछे छुपा है गहरा रहस्य। आइये जानते हैं वह क्या है? इसके दो मुख्य कारण हैं, एक धार्मिक और एक वैज्ञानिक।
धार्मिक रूप से देखा जाये, तो सोने को एक तरह से लक्ष्मी का स्वरूप ही माना जाता है। भगवान विष्णु जी की सबसे प्रिय वस्तु है सोना । इसलिए कभी भी सोने को शरीर के नीचले हिस्सों में नहीं पहना जाता। कहते हैं, कि जो वस्तु भगवान को प्रिय है, उसे पैर में धारण करने से उनका अपमान होता है। इसलिए हमेशा ही सोने के आभूषणों को पेट के ऊपर या नाभि के ऊपर ही पहना जाता है। पायल चाँदी की ही हमेशा पहनी जाती है। ऐसे माना जाता है, कि चाँदी की पायल में जो घुंघरू लगाये जाते हैं, उस घुँघुरु की जो आवाज़ होती है, वो सीधे मन तक पहुँच कर उसे शांत रखने में मदद करती है।
वैज्ञानिक कारण – सोने को पैरो में न धारण करने का यह कारण है, हमारे शरीर के सर का भाग ठंडा होता है, पर हमारे पैर गर्म होते हैं।
सोना एक ऐसा धातू है, जिसमें से गर्म ऊर्जा निकलती है, पर चाँदी से शीतल ऊर्जा निकलती है। इसी कारण से चाँदी को पैरो में पहना जाता है, ताकि वह उसकी शीतलता सर तक पहुँचा सके। और सोने की गर्म ऊर्जा पैरों तक पहुँच सके इसलिए उसे सर पर पहना जाता है।
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