मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं, जिन्होंने त्रेता युग में रावण का संहार करने के लिए धरती पर अवतार लिया।श्रीराम वैदिक संस्कृति और सभ्यता के आदर्श प्रतीक हैं. राम के जीवन में वैदिक संस्कृति का साकार रूप देखने को मिलता है.मानवीय मूल्यों से ओत-प्रोत जब हम विश्व के महापुरूषों के जीवन पर दृष्टि डालते हैं, तो राम का जीवन सर्वोपरि जान पड़ता है.आज हजारों वर्षों से राम का पावन चरित्र लाखों लोगों को प्रेरणा और मार्गदर्शन दे रहा है.
कौशल्या नंदन प्रभु श्री राम अपने भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न से एक समान प्रेम करते थे। उन्होंने माता कैकेयी की 14 वर्ष वनवास की इच्छा को सहर्ष स्वीकार करते हुए पिता के दिए वचन को निभाया। उन्होंने ‘रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाए’ का पालन किया।भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इन्होंने कभी भी कहीं भी जीवन में मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। माता-पिता और गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए वह ‘क्यों’ शब्द कभी मुख पर नहीं लाए। वह एक आदर्श पुत्र, शिष्य, भाई, पति, पिता और राजा बने, जिनके राज्य में प्रजा सुख-समृद्धि से परिपूर्ण थी।
केवट की ओर से गंगा पार करवाने पर भगवान ने उसे भवसागर से ही पार लगा दिया। राम सदगुणो के भंडार हैं, इसीलिए लोग उनके जीवन को अपना आदर्श मानते हैं। सर्वगुण सम्पन्न भगवान श्री राम असामान्य होते हुए भी आम ही बने रहे। युवराज बनने पर उनके चेहरे पर खुशी नहीं थी और वन जाते हुए भी उनके चेहरे पर कोई उदासी नहीं थी। वह चाहते तो एक बाण से ही समस्त सागर सुखा सकते थे, लेकिन उन्होंने लोक-कल्याण को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए विनय भाव से समुद्र से मार्ग देने की विनती की। शबरी के भक्ति भाव से प्रसन्न होकर उसे ‘नवधा भक्ति’ प्रदान की। राम ने अपने युग में एकता का महान कार्य किया था| आर्य, निषाद, भील, वानर, राक्षस आदि भिन्न संस्कृतियों के बीच सुमेल साधने का काम राम ने किया. रावण की मृत्यु के बाद राम के मन में रावण के प्रति कोई द्वेष नहीं था.
हिन्दू संस्कृति की पूर्ण प्रतिष्ठा राम में चरितार्थ हुई है. जीवन के सभी क्षेत्रों में राम का जीवन आदर्श प्रस्तुत करता है.हिन्दू संस्कृति का स्वरूप रामचरित्र के दर्पण में पूर्णत: प्रतिबिंबित हुआ है. भगवान श्री राम का उदात्त चरित्र आज भी जनमानस के लिए पूजनीय और अनुकरणीय है . सम्पूर्ण भारतीय समाज के समान आदर्श के रूप में राम का उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम के सभी भागों में स्वीकार हुआ है.भारत की हर एक भाषा की अपनी रामकथाएं हैं. वर्तमान युग में भगवान के आदर्शों को जीवन में अपनाकर मनुष्य प्रत्येक क्षेत्र में सफलता पा सकता है. उनके आदर्श विश्वभर के लिए प्रेरणास्रोत हैं। भारत का यह आदर्श यदि विश्व मानव का आदर्श बने, तो मानव जाति सुसंस्कृत हो जाएगी.
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