भगवान शिव को महादेव के नाम से भी जाना जाता है। महादेव का अर्थ है “देवों के देव”। महादेव की पूजा पूरी दुनिया करती है। भगवान शिव के “शिवलिंग” की पूजा का भी विशेष महत्व है। हालाँकि शिव लिंग को योनि से जोड़ कर देखा जाता है, लेकिन शास्त्रों के मुताबिक यह एक ज्योति का चिन्ह है। शिवलिंग की पूजा करने की अनुमति अविवाहित कन्याओं को नहीं दी जाती। इसके पीछे भी कई तर्क, तथ्य और कारण हैं। क्या हैं यह कारण, आइये जानते हैं।
इस लेख में प्रस्तुत विचार लेखिका के निजी विचार हैं। दसबस डॉट कॉम इन विचारों से सहमति नहीं रखता। हमारा यह मानना है कि ईश्वर की आराधना कोई भी, किसी भी तरह कर सकता है। बस मन सच्चा होना चाहिए। लेकिन हम उन की भावनाओं का भी आदर करते हैं, जिनकी राय हमसे भिन्न है।
पुराने धार्मिक रिवाज और आस्था
आज भी हम पुराने धार्मिक रिवाजों को मानते हैं। हमारे शास्त्रों में ऐसा कहा गया है की अविवाहित कन्या को शिव लिंग की पूजा नहीं करनी चाहिए, इससे पूजा करने वाले को ही नुकसान पहुंचेगा। इसी आस्था को बनाये रखते हुए आज भी इस बात को माना जाता है।
शिवजी की तपस्या

इस बात को शिवजी की तपस्या से भी जोड़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि शिवजी हमेशा कड़ी तपस्या में लीन रहते हैं। इसलिए ऐसा ध्यान रखा जाता है कि ऐसा कुछ न हो जिससे उनकी तपस्या भंग हो। इसी कारण से किसी भी देवी, कन्या या अप्सरा को भगवान शिव की भक्ति से दूर रखा जाता है। यही नहीं देवता भी भगवन शिव की आराधना करते हुए बेहद सतर्क रहते है।
भगवान शिव का क्रोध

शास्त्रों में ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि भगवान् शिव अगर अपनी तपस्या टूटने पर क्रोधित हो जाएँ तो सृष्टि का विनाश निश्चित है। इसी मान्यता और धारणा के चलते अविवाहित कन्याओं को शिवलिंग की पूजा नहीं करने दी जाती।
निषेध माना गया है
ऐसा माना जाता है कि अगर विवाहित स्त्री या पुरुष शिवलिंग की पूजा करते हैं, तो उन्हें विवाह के बाद के सब सुख मिलते हैं। साथ ही संतान का सुख भी प्राप्त होता है। वहीँ अविवाहित कन्या द्वारा संतान के बारे में सोचने तक को निषेध माना गया है।
शिवलिंग का अर्थ और कन्याएं

शिव की भक्ति और पूजा को शिवलिंग से जोड़ा गया है। इसी विषय में ऐसा माना गया है की बिना विवाह के कन्यायें शिवलिंग को हाथ लगाने या उसकी पूजा करने के बारे में सोच भी नहीं सकती।
आस्था के नाम पर अंधविश्वास
कई लोग इस मान्यता और आस्था को सिर्फ अन्धविश्वास मानते हैं और यह भी मानते हैं कि पवित्र मन से की गयी आराधना या भक्ति से भगवान शिव क्रोधित नहीं होंगे। कई कुंवारी कन्यायें इस रूढ़ीवादी आस्थाओं को मानने से इंकार करती है।
हमारे शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि अगर कुँवारी कन्या को भगवान शिव की भक्ति करनी है तो शिवजी और पार्वती दोनों की साथ में आराधना करें। क्योंकि इनकी जोड़ी सबसे अधिक प्रेम वाली जोड़ी मानी जाती है। इन दोनों का आशीर्वाद पा कर कन्या का विवाहिक जीवन खुशियों से भर जायेगा। अच्छे वर यानि पति को पाने के लिए कुंवारी कन्याओं को भगवान शिव के 16 सोमवारों का व्रत रखने के लिए कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी कन्या इन्हे पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करती है उसे भगवान शिव मनचाहा पति और सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देते हैं।
बकवास सब पंडितों के पाखंड हैं ।अविवाहित स्त्री व षुरूष दोनों ही शिव जी को पूजा करने सकतें हैं । भगवान बहुत ही दयालु है , अपने भक्तों पर सदैव कृपा करते हैं ।वे सिर्फ प्रेम की भाषा समझते हैं उन्हें बाहरी आडम्बर से कोई मतलब नहीं है वे स्वयं आडम्बरों के घोर विरोधी हैं इसलिए वे भस्म धारण करते हैं श्मशान में वाश करते हैं । करीब भी भगवान अपने भक्तों पर क्रोध नहीं करते कुछेक लोगों ने भक्ति भावना को अपने कमाई का जरिया बन लिया है । और भोले भाले लोगों को ड़रा करने अपनी जेबें गरम करें रहे हैं ।………
So think about it.