अयोध्या में राम मंदिर या बाबरी मस्जिद का निर्माण ज्वलंत मुद्दा रहा है. क्यों होना चाहिए अयोध्या में राम मंदिर का ही निर्माण – बिलकुल ठोस कारण दे रहीं हैं चारु देव.
अयोध्या उन गिनी-चुनी जगहों में से एक है जिसके वास्तविक होने के प्रमाण वेद-पुराणों से आधुनिक इतिहास तक में दिखाई देते हैं. यही प्रमाण हिन्दू धर्म के दो महान ग्रन्थों में से एक “रामायण” को एक कपोल कल्पित कथा न मानकर बल्कि ठोस ऐतिहासिक घटना और प्रमाण मानने को मजबूर करते हैं.
अयोध्या का जिक्र हो तो राम मंदिर का जिक्र होना अनिवार्य है. दोनों एक दूसरे के पर्याय बन गए जैसे लगते हैं. अयोध्या-राम मंदिर विवाद ने एक समय के सांप्रदायिक संतुलित स्थान को सबसे ज्यादा असंतुलित और असहिष्णु स्थल का नाम दे दिया है.
लगभग 300 साल से ऊपर हो गए हैं और अयोध्या में राम मंदिर होना चाहिए या नहीं, इस बात का कोई ठोस निर्णय अभी तक न तो सामाजिक और कानूनी रूप में और न ही धार्मिक रूप में अभी तक निकाल पाया है. राम मंदिर की सत्यता पर संदेह और निःसन्देह रखने वाले लोग अपने मतों के समर्थन में अकाट्य और ऐतिहासिक प्रमाण दे रहे हैं.
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कब हुआ था राम जन्म?
रामजन्म के विवाद में सबसे बड़ा पहलू उनके जन्म स्थान और जन्मतिथि को लेकर है. वैज्ञानिक प्रमाणों के अनुसार राम-जन्म के वक्त ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति अयोध्या के आकाश सितारों की स्थिति से बिलकुल मेल खाती है. इस रिपोर्ट के अनुसार राम लला का जन्म 10 जनवरी 5114 ई. पू. को दोपहर में 12 से 2 के बीच हुआ था. इस तिथि को लूनर कैलेंडर में बदलने पर चैत्र शुक्ल की नवमी होती है और यही वो दिन है जब भारत में राम नवमी मनाई जाती है.
तुलसीदास रचित रामायण में त्रेता युग के चतुर्थ चरण में अयोध्या में राम जन्म का उल्लेख मिलता है. इंद्र्नगरी को मात देने वाली अयोध्या नगरी का पतन राम के स्वर्गगमन के साथ ही शुरू हो गया जिसका पुनर्रुद्धार राम पुत्र कुश ने किया जो अगली 44 पीढ़ियों तक चला.
महाभारत युद्ध के साथ ही अयोध्या का अस्तित्व भी धूमिल हो गया. बाद में इस स्थान को खोज कर विक्रमादित्य ने खड़ा किया और यहाँ राम मंदिर का निर्माण करवाया. जयचंद ने विक्रमादित्य के प्रयासों को नष्ट करने की कोशिश की जो जयचंद के बाद मुगल शासकों ने जारी रखी.
कहते हैं कि एक मुस्लिम संत ख्वाजा फजल अहमद अशखान ने अपने मित्र जलाल शाह के साथ मिलकर बाबर को राम मंदिर के स्थान पर मस्जिद बनवाने का सुझाव दिया था. लेकिन बाबर का सेनापति मीर बाकी जब अनेक प्रयासों के बाद भी मस्जिद नहीं खड़ी कर पाया तो उन्हीं संत के सुझाव पर मंदिर के गर्भगृह को छोड़कर मस्जिद बनाने का निर्णय लिया गया और फिर इस प्रकार इस स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ.
कहते हैं कि वास्तविकता को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है और पौराणिक और ऐतिहासिक प्रमाण इस बात की ओर इशारा करते हैं कि अयोध्या और राम-जन्म काल्पनिक नहीं , बल्कि वास्तविक हैं. इस बात के भी ठोस प्रमाण मौजूद हैं कि मुगल शासकों ने अपने शक्तिशाली होने का प्रदर्शन करने के लिए दूसरे धर्मों का खुलकर अपमान किया था. धर्म को राजनीति के साथ जोड़ने की शुरुआत शायद यहीं से हुई थी. अब जरूरत है इस गलत परंपरा को तोड़ दिया जाए और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करके असत्य पर सत्य की विजय का प्रमाण दिया जाए.
लेकिन दुःख की बात यह है कि तमाम सियासी उठापटक के बावज़ूद यह मामला जस का तस है, जबकि इसे जल्द से जल्द सुलझा लिया जाना चाहिए.
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Ram ka janam ayodhya me hai or Ram sabhi maryada se puran hai
yahi karan yaodhya me Ram Mandir hona chahia.
Mandir hi banana chahiye