हिन्दू सभ्यता का हर दिन किसी न किस न त्यौहार और पूजा का प्रतीक होता है। दिन, महीने और ऋतु के अनुसार त्यौहार बदलते रहते हैं, लेकिन एक बात ऐसी है जो हर प्रकार की पूजा और त्यौहार में एक समान होती है, वो है रंगोली बनाना।
भारतीय महिलाएं किसी भी प्रांत और राज्य की हों, उन्हें रंगोली बनाना बहुत अच्छा लगता है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है, कि रंगोली या जिसे कुछ राज्यों में माँड़ना भी कहते हैं, क्या वास्तव में हिंदुस्तान की ही खोज है, या इसे किसी दूसरे देश से यहाँ लाया गया है। आइये इन तथ्यों पर विचार करते हैं:
रंगोली का इतिहास
सामान्य तौर पर व्रत, पूजा और त्यौहार पर बनाई जाने वाली रंगोली का एक नाम अल्पना भी है। अल्पना शब्द का मूल रूप संस्कृत के ‘ओलमपेन’ से हुआ माना जाता है, जिसका वास्तविक अर्थ है ‘लेप करना’।
वैसे देखा जाए तो मानव सभ्यता में जब लेखन कला का भी जन्म नहीं हुआ था, उस समय मानव अपनी बात कहने के लिए चित्रों का सहारा लेता था। प्राचीन गुफाओं में मिले चित्र इस बात के प्रमाण हैं।
आज भी जापानी भाषा चित्रों पर आधारित है। कालांतर में , आर्यकालीन युग में यही चित्र समाज की धार्मिक और सामाजिक भावनाओं के साथ जुड़ गए।
यह विश्वास दृढ़ होता गया, कि हाथ से बनाये गए चित्र घर को धन-धान्य से भरा-पूरा रखते हैं और बुरी शक्तियों से परिवार की रक्षा करते हैं। कुछ विद्वान इस कला को आर्य जाती से पहले की कला मानते हैं। उनके मतानुसार कृषि युग में लोग देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए चित्रों का सहारा लेते थे।
कला का यही रूप आज भी बंगाल के शांतिनिकेतन की कला में पाया जाता है। वैदिक संस्कृति में भी रंगोली को हवन और पूजा में प्रयोग किया जाता था। रंगोली का यही रूप 5000 वर्ष पूर्व मोहनजोदाड़ो और हद्दप्पा संस्कृति में भी देखने को मिलता है।
पुराणों की एक कथा के अनुसार रंगोली का सबसे पहला रूप ब्रह्मा जी ने बनाया था। कहते हैं, उन्होने आम के पत्ते का रस निकाल कर उससे एक स्त्री का चित्र बनाया। इस चित्र में स्त्री का सौन्दर्य अतुलनीय था। बाद में यही स्त्री उर्वशी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
ब्रह्मा जी द्वारा बनाया गया यही चित्र रंगोली का प्रारम्भिक रूप कहलाता है।
रामायण में भी सीता विवाह और रावण वध के बाद सम्पूर्ण राज्य को आकर्षक रंग-बिरंगे चित्रों से सजाने के प्रमाण मिलते हैं।
रंगोली का धार्मिक महत्व
कहते हैं, रंगोली के गोलाकार, चौकोर और विभिन्न प्रकार की आकृतियाँ नकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश को रोकती हैं। रंगोली के सुंदर रंग घर में सुख-समृद्धि और धन-धान्य की पूर्ति करते हैं। इसी कारण रंगोली में विभिन्न देवी-देवताओं की तस्वीरों को बनाना शुभ माना जाता है।
विभिन्न प्रान्तों में रंगोली
रंगोली का उपयोग भारत के हर प्रांत में अलग-अलग नाम से किया जाता है। उत्तर प्रदेश में चौक पूरना के नाम से , राजस्थान में मांडना करना, बिहार में अरिपन, बंगाल में अल्पना के नाम से रंगोली बनाई जाती है।
इसी प्रकार:
- महाराष्ट्र में रंगोली,
- कर्नाटक में रंगवल्ली,
- तमिलनाडू में कोल्लम,
- उत्तरांचल में ऐपण
- रंगोली को आंध्र प्रदेश में मुग्गु या मुग्गुलु,
- हिमाचल प्रदेश में ‘अदूपना’,
- कुमाऊँ में लिखथाप या थापा भी कहा जाता है।
आधुनिक रंगोली
परंपरागत रूप से रंगोली, आटा, चावल का चूरा, हल्दी और चौक मिट्टी से बनाई जाती थी। लेकिन आधुनिकता के रंग ने रंगोली बनाने के तरीकों में भी बदलाव कर दिया है। आज रासायनिक तरीकों से बनाए गए रंग, विभिन्न फूल और पानी पर तेल के रंगों से भी रंगोली बनाने का प्रचलन है।
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