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क्या भूत-प्रेत वाकई में होते हैं?

विज्ञान के इस दौर में जहाँ एक ओर असंख्य आविष्कार किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इन्हीं वैज्ञानिक तकनीकों का सहारा लेकर संचार माध्यमों के ज़रिये लोगों में अन्धविश्वास फैलाया जा रहा है. अन्धविश्वास के चलते आपने आमतौर पर कई लोगों को भूत-प्रेत आदि की बातें करते सुना होगा, पर क्या भूत सच में होते हैं? सामान्यतः लोग इस तथ्य को ध्यान में नहीं रखते और लोगों की कही-सुनी बातों को सच मानने लगते है. इसीलिए आज हम इस आर्टिकल के ज़रिये आपको बताएंगे कि भूत-प्रेत मात्र इंसान का वहम है, जिसे कईं वर्षों से अज्ञानी लोग सच मानकर जी रहे हैं.

क्या भूत-प्रेत सच में विध्यमान है?  

 

“भूत” जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- भूतकाल या गुज़रा हुआ समय. असल में भूत-प्रेत जैसी कोई चीज़ इस दुनिया में विध्यमान है ही नहीं. भूत अर्थात भूतकाल का वह व्यक्ति जो अपना शरीर त्याग चुका है और महज एक आत्मा है. मुस्लिम और ईसाई धर्म के कई लोग इन्हें जिन्नाह रूह मानते हैं, इसका अर्थ ऐसे व्यक्ति जो स्वयं के शरीर और भौगोलिक संसार से पूर्णतया विरक्त हो चुके है.

ऐसे व्यक्ति, शरीर के अभाव के कारण वर्तमान का हिस्सा नहीं बन पाते और भूतकाल माने जाते है. जिस प्रकार से बीते हुए समय का वर्तमान में कोई स्थान नहीं होता, उसी तरह ऐसे व्यक्ति भी वर्तमान में नहीं रहते. ऐसे व्यक्ति ईश्वर से नहीं जुड़े रहने के कारण भूत की भांति ही कहे जाते है. कबीर के दोहों में उन्होंने कहा है कि जो व्यक्ति परमेश्वर से जुड़े हुए नहीं है या उसके अस्तित्व को झुठलाते हैं, वह जीते-जी भूत से कम नहीं है. उनका अस्तित्व महज एक आत्मा के रूप में संसार में विध्यमान है. आत्मा के लिए शरीर के बिना कुछ भी कर पाना असंभव है.

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ऐसी आत्माओं की अपेक्षा जिन्दा प्रेत हमारे लिए अधिक ख़तरनाक हैं. ज़िंदा प्रेत अर्थात वह लोग जो लोभ, ईर्ष्या, लालच और मोह-माया आदि के वशीभूत होकर लोगों को मार-काट रहें हैं. इसीलिए प्रेत मात्र एक अन्धविश्वास है, जो बुराइयों के रूप में जिन्दा लोगों में भी विध्यमान है. यह एक मानसिक अवस्था है, जिसमें व्यक्ति अपनी आत्मा से अचेत हो जाता है. इसमें नींद या बेहोशी की अवस्था को भी शामिल किया जाता है, जिसमें व्यक्ति स्वयं को भूल जाता है और ऐसे समय में वह किसी को नुकसान पहुँचाने में सक्षम नहीं होता.
अतः भूत-प्रेत मात्र एक ऐसी स्थति है जिसमें शरीर और आत्मा अलग रहते हैं.

यह अवस्था मरने के पहले और बाद में कभी-भी उत्पन्न हो सकती है. कुछ अज्ञानी अंधविश्वासी तांत्रिक और बाबा, लोगों को बहला-फुसलाकर इन झूठी बातों से अनगिनत कमाई कर रहे हैं. जिसे लोग सच मानकर मूर्खतापूर्ण टोटकों में उलझ रहे हैं और अपना समय बर्बाद कर रहे हैं|

Shalu Mittal

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