अमूमन हम सबके चहेते माखनचोर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म, अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, अगस्त महीने में पड़ता है, पर इस बार यह पड़ रहा है सितम्बर महीने में। जी हाँ, इस बार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी आएगी 2 सितंबर, रविवार को और उसी दिन मनाई जायेगी जन्माष्टमी। पूजा का समय रहेगा रात 11:57 से 12:43 तक, सिर्फ 45 मिनट का।
2 सितंबर 2018, रविवार को रात 8 बजकर 47 मिनट पर अष्टमी तिथि की शुरुआत होगी और अगले दिन 3 सितंबर 2018, सोमवार की शाम 7 बजकर 19 मिनट पर इसका समापन होगा।
वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी
वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी 3 सितंबर, सोमवार को मनाई जाएगी। वैष्णव जन्माष्टमी के लिये पारण समय रहेगा शाम 06 बजकर 04 मिनट।
महाराष्ट्र और गुजरात में दही हाण्डी का कार्यक्रम 3 सितंबर, सोमवार को मनाया जाएगा।
जन्माष्टमी व्रत विधि
जन्माष्टमी के दिन, भक्ति में सराबोर, भगवान् कृष्ण के भक्त पूरा दिन उपवास रखकर अर्धरात्रि को भगवान् के जन्म के पश्चात ही व्रत खोलते हैं। अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य अनुसार भक्त व्रत का पालन करते हैं। जहाँ इस दिन कुछ भक्त पूरे दिन कुछ भी ग्रहण नहीं करते तो कुछ भक्त फलाहार, दूध आदि लेते हैं।
रात को भगवान् के जन्म के पश्चात भगवान् का अभिषेक, श्रृंगार, पूजा और अर्चना के बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोलने का विधान है। कुछ श्रद्धालु इस दिन भगवान् कृष्ण के मंदिर जाकर, वहीँ प्रसाद ग्रहण करते हैं और व्रत खोलते हैं।
जन्माष्टमी पूजा विधि
भगवान् कृष्ण के जन्म के इंतजार में लोग भजन-कीर्तन और नर्तन करते हैं। कई जगहों पर श्रीकृष्ण के जन्म और उनकी बाल्य काल की लीलाओं का नाट्य रूपांतरण प्रस्तुत किया जाता है। ठीक रात्री के बारह बजे भगवान् के जन्म का उदघोष होता है और पूजा अर्चना की विधि आरम्भ होती है।
जन्माष्टमी पूजा के लिए, सर्वप्रथम, श्रीकृष्ण को पंचामृत (दूध, दही, घी, शक्कर और मधु का मिश्रण) से स्नान कराया जाता है। चन्दन के लेप का भी प्रयोग स्नान में किया जाता है। इसके पश्चात उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। पुष्प, माला, धुप, दीप आदि भगवान् को अर्पित किये जाते हैं ।
बाँके बिहारी को फल और मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। भोग में उनकी प्रिय वस्तुएं जैसे कि माखन मिश्री, दही, पंजीरी , आदि को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाता है। अंत में प्रभु की आरती की जाती है और प्रसाद आदि का वितरण होता है।
ऐसी मान्यता है कि जन्माष्टमी का व्रत करने से सभी दुखों का अंत होता है और संतान सुख, धन, वैभव तथा शांति की प्राप्ति होती है।
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