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कृष्ण जन्माष्टमी कैसे मनानी चाहिए?

कृष्ण जन्‍माष्‍टमी भगवान श्रीकृष्‍ण के जन्‍मोत्‍सव के रूप में भाद्रपद कृष्‍ण पक्ष अष्‍टमी को मनाई जाती है। इस दिवस को पूरे भारतवर्ष में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। श्रीकृष्‍ण को भगवान विष्‍णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है।

माना जाता है, कि श्रीकृष्‍ण का जन्‍म काली, अंधेरी रात्रि को मथुरा नगरी में हुआ था, इसलिए प्रतिवर्ष मध्‍यरात्रि में जन्‍मोत्‍सव को मनाया जाता है। इस पवित्र दिन को हमें किस प्रकार मनाना चाहिये, चलिये जानते है इस बारे में।

कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का मुख्‍य आयोजन मथुरा नगरी में होता है,जहाँ दूर-दूर से लोग आकर भगवान का जन्‍मोत्‍सव मनाते हैं। यहाँ पर विशेषरूप से कृष्णलीला का प्रदर्शन किया जाता है।

लेकिन इसके साथ ही देश के हर कृष्‍ण मंदिर में इस दिन को बड़े हर्षोल्‍लास से मनाया जाता है। मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है, पूजा-अर्जना की जाती है और भक्तिमय संगीत के द्वारा भगवान कृष्‍ण के गुणों का बखान किया जाता है।

ज़्यादातर लोग इस अवसर पर व्रत व जागरण करके भगवान श्रीकृष्‍ण के प्रति अपने प्रेम व आस्‍था को प्रकट करते है। इस व्रत को करने से विशेष लाभ होता है और जीवन से अंधकार रूपी अज्ञान नष्‍ट होने के साथ-साथ हर मनोकामना भी पूर्ण हो जाती है।

इस अवसर पर मंदिरों के साथ-साथ घरों पर भी ख़ास तैयारी की जाती है। राधे-कृष्‍ण की मूर्ति के लिये नये वस्‍त्र, आभूषण व पालना खरीदें जाते है। छोटे बच्‍चों को राधे-कृष्‍ण की वेश-भूषा में तैयार किया जाता है। घर को लाइट, मोमबत्‍ती, दीयों व फूलमालाओं से सजाया जाता है।

श्रीकृष्‍ण जन्‍म को दर्शाने के लिए झांकी भी सजाई जाती है, जिसमें बालगोपाल को पालने में विराजमान किया जाता है व चारों तरफ विशेष तथा आकर्षक साज-सज्‍जा की जाती है और साथ ही मटकी में रूई को लगाकर माखन को प्रदर्शित किया जाता है।

घर के मुख्‍य द्वार पर रंगोली व श्रीकृष्‍ण के पादुकाओं को अंकित किया जाता है, जो बहुत ही शुभ व मांगलिक प्रतीक माना जाता है। इस अवसर पर अपने मित्रों व रिश्‍तेदारों को आमंत्रित कर श्रीकृष्‍ण भक्ति भजन, प्रार्थना व लघुनाटिकाओं के माध्‍यम से जन्‍मोत्‍सव को मनाना चाहिये।

इस दिन बच्‍चों को श्रीकृष्ण से जुड़ी छोटी-छोटी व प्रेरणादायक कहानियां सुनाकर अच्‍छा एवं सच्‍चा बनने की सीख देनी चाहिये। जन्‍माष्‍टमी के पावन अवसर पर छप्‍पनभोग तैयार किये जाते है और पूजा संपन्न होने के बाद इसे प्रसाद रूप में सभी को वितरित किया जाता है।

इस प्रकार विभिन्‍न क्रियाओं के माध्‍यम से हमें श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी को बड़े उत्‍साह व उमंग के साथ मनाकर भगवान श्रीकृष्‍ण के द्वारा बताये मार्ग का अनुसरण करना चाहिये।

 

शिखा जैन

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