हिन्दू धर्म में सनातन काल से सोलह संस्कारों का क्रम रहा है जो गर्भाधान संस्कार से शुरू होकर अन्त्येष्टि संस्कार तक जारी रहता है। इस कर्म में मुंडन संस्कार शिशु के जन्म के पश्चात प्रथम एक वर्ष के अंदर कर दिया जाता है।
मुंडन या केश दान का धार्मिक के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी रहा है। इसके अलावा केश दान व्यक्ति पूरे जीवन काल में कभी भी कर सकता है,जब या तो वह व्यक्ति अपनी कोई इच्छा पूर्ति पर दैवीय शक्ति को धन्यवाद के रूप में अर्पित करता है। इसके अतिरिक्त किसी तीर्थ स्थल पर भी केश दान की परंपरा कुछ लोग बड़े मान से निभाते हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य यह है ,की देव स्थान की वैज्ञानिक और दैविक तरंगों का लाभ मिलता है। कुछ ऐसा ही मान्यता निभाई जाती है जब लोग तिरुपति बाला देव स्थान पर अपने केश का दान करते हैं।
आन्ध्र्प्रादेश के तिरुमला पर्वत शृंखला में स्थित भगवान तिरुपति बालाजी का मंदिर भारत के सबसे धनवान मंदिरों की श्रेणी में सबसे पहले स्थान पर आता है। न केवल धन और संपत्ति से भरपूर यह मंदिर अपनी भौतिक और स्थापत्य काला के लिए मशहूर है, बल्कि मान्यता तो यह भी है, की इस मंदिर में आने वाले हर भक्त की हर मनोकामना सिद्ध होती है।
तिरुपति मंदिर के बारे में यह प्रसिद्ध है, कि इस मंदिर में भगवान विष्णु, बालाजी के अवतार के रूप में अपनी पत्नी, देवी पद्मावती के साथ स्वयं विराजते हैं। इसके अतिरिक्त इस मंदिर के रहस्यों में मंदिर की दीवारों से समुद्र की आवाज़ का आना, बालाजी की मूर्ति का हर समय हल्का गीला रहना, मंदिर में एक अखंड दिये का जलना भी कुछ ऐसे तथ्य हैं, जिनका अभी तक कोई काट नहीं बना है।
कहते हैं, राजा कृशनदेवराय के जीवन काल से तिरुपति बालाजी के मंदिर में बहुमूल्य धन और संपत्ति के दान की परंपरा रही है। इसी क्रम में भक्त अपने केश-दान भी करते हैं।
विश्व के सबसे अमीर मंदिर के देव भगवान व्यंक्टेश ने एक बार धन के देवता कुबेर से ऋण लिया था। कहते हैं, आज तक भक्त अपने केश दान करके इस ऋण का भुगतान कर रहे हैं। इस तथ्य के पीछे की पौराणिक कथा में यह बताया गया है, कि एक बार भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी के साथ क्षीर सागर में विश्राम कर रहे थे, कि वहाँ पर किसी घटना पर देवी लक्ष्मी, विष्णु जी से नाराज होकर धरती पर आ गईं और कुमारी पद्मावती के रूप में अवतार लिया। भगवान विष्णु भी उनके पीछे धरती पर आए और व्यंक्टेश के रूप में अवतार लिया और पद्मावती से विवाह का प्रस्ताव किया। उस समय की प्रथा के अनुसार वर को विवाह पूर्व कन्या के परिवार को एक शुल्क देना होता था, जिसे कन्या शुल्क कहा जाता था। व्यंक्टेश रूपी विष्णु जी स्वयं इस शुल्क को चुकाने में असमर्थ थे,इसलिए उन्होने धन के देवता कुबेर से धन लेकर पद्मावती रूपी लक्ष्मी देवी से विवाह किया। इस ऋण के साथ ही भगवान विष्णु ने कुबेर को यह वचन भी दिया,कि कलयुग के समाप्त होने पर कुबेर को वो सारा धन वापस कर देंगे और तब तक मूलधन का ब्याज वो चुकाते रहेंगे। इसी के साथ उन्होने देवी लक्ष्मी की ओर से भी एक वचन दिया कि जो भक्त उनकी ऋण वापसी में सहायता करेगा, देवी उसको कहीं ज्यादा धन भी देंगी। इस प्रकार तिरुपति जाने वाले भक्त अपने केश दान से भगवान के ऋण चुकाने में उनकी सहायता करते हैं । वास्तव में भक्तों द्वारा दिये गए बालों की बिक्री से जो धन आता है, वो ही भक्त की ओर से भगवान के ऋण में उनका सहयोग माना जाता है।
इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए तिरुपति मंदिर में लाखों की संख्या में लोग अपने केशों का दान करते हैं। एक आंकड़े के अनुसार प्रतिदिन 20,000 भक्तों के केश उतारने के लिए लगभग 600 नाइयों की कैंची अविराम चलती रहती है।
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