धर्म और संस्कृति

कर्ण को सबसे बड़ा दानवीर क्यों माना जाता है?

कर्ण महाभारत का एक अहम् पात्र था। उनकी प्रशंशा युगों युगों से की जाती है। वह कुशल होने के साथ साथ एक बहुत अच्छा  योद्धा भी था। कर्ण की वास्तविक माँ कुंती व पिता सूर्य थे। कुंती के विवाह से पहले ही कर्ण का जन्म हो गया था, इसलिए लोक लज्जा के कारण उन्होंने उसे नदी में बहा दिया।

अधिरथ ने कर्ण को नदी में पाया तो वे करुणा कर के उसे अपने साथ ले गए और अपने पुत्र की तरह उसका पालन पोषण किया।बालक के शरीर पर कवच और कुण्डल देखने के बाद अधिरथ समझ गए के वह कोई होनहार राजकुमार है, तो उन्होंने उसका नाम वसुषेण रखा।

वसुषेण के बड़े होने के उपरांत उन्होंने शास्त्रों का अध्ययन कराना शुरू कर दिया। कर्ण सूर्य का बहुत बड़ा उपासक था। वह सुबह से शाम तक उपासना में ही विलीन रहता था। उपासना के समय अगर कोई उनसे कुछ मांगता तो वे कभी उसे निराश नहीं करते थे। उनके जैसा दानवीर पांडवों और कौरवों में कोई नहीं था। इसी खूबी के कारण उन्हें दानवीर कर्ण के नाम से भी जाना जाता था। वे कभी किसी याचक को खाली हाथ नहीं जाने देते थे और यही उनकी मृत्यु का कारण भी बना।

भगवान् कृष्ण ने भी कर्ण को सबसे बड़ा दानी माना है। अर्जुन को कर्ण की प्रसंशा पसंद नहीं थी, इसी कारण से उन्होंने एक बार कृष्ण से पूछा की सब कर्ण की इतनी प्रशंशा क्यों करते हैं। कृष्ण ने दो पर्वतों को सोने में बदल दिया और कहा के इस सोने  को गांव वालों में बाँट दो। अर्जुन  ने सारे गांव वालों को बुलाया और पर्वत काट काट कर देने लगे और कुछ समय बाद थक कर बैठ गए। तब कृष्ण ने कर्ण को बुलाया और सोने  को बांटने के लिए कहा तो कर्ण ने बिना कुछ सोचे समझे गांव वालों को कह दिया के ये सारा सोना  गांव वालों का है और वे इसे आपस में बाँट ले। तब कृष्ण ने समझाया के कर्ण दान करने से पहले अपने हित के बारे में नहीं सोचता। इसी बात के कारण उन्हें सबसे बड़ा दानवीर कहा जाता है।

 

अपनी दानवीरता का असली परिचय उन्होंने अपने कवच और कुण्डल दान करते वक्त दिया। कर्ण जब सूर्य की उपासना कर रहे थे तब इंद्र वेश बदल कर ब्रह्मा  के रूप में आये और कर्ण से उनके कवच और कुण्डल की मांग की। सूर्य ने कर्ण को कवच और कुण्डल देने से मना किया था पर कर्ण किसी को निराश नहीं करते थे इसलिए उन्होंने अपना कवच और कुण्डल का दान कर दिया। कर्ण ये जानते थे की यह दान उनकी मृत्यु का कारन बन सकता है, तब भी उन्होंने अपने हित के बारे में बिना सोचे दान कर दिया, और एक बार फिर ये साबित कर दिया के उनसे बड़ा दानवीर और कोई नहीं है।

नम्रता सिंह

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