यूँ तो महाभारत में ऐसी कई कथायें हैं जिसमें दुष्टों का संहार किया गया है, लेकिन जयद्रथ के वध की कथा काफी अलग और विचित्र है। जयद्रथ के वध के सम्बन्ध में जानने के लिए ज़रूरी है कि हम जयद्रथ के जन्म सम्बन्धी कथा भी जान लें।
कौरवों की एकमात्र बहन दुशाला का पति था जयद्रथ। जयद्रथ सिंधु प्रदेश के राजा थे और वृद्धक्षत्र के पुत्र। वृद्धक्षत्र कई सालों से संतान विहीन थे और इसलिए उन्होंने कई वर्षों तक तप किया, तब जाकर उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।
जयद्रथ के जन्म पश्चात् ही उन्हें यह वरदान दिया गया था कि उनकी मृत्य किसी भी साधारण मनुष्य के हाथों से नहीं हो सकती है और जो भी उसे मार कर उसका सिर जमीन पर गिरायेगा उसके सिर के भी हज़ार टुकड़े हो जायेंगे।
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महाभारत के भीषण युद्ध के दौरान एक दिन अर्जुन युद्ध लड़ते- लड़ते युद्ध भूमि से दूर निकल गए। कौरवों ने इस सुनहरे अवसर का आभ उठाते हुए चर्कव्युह रचने की साजिश की।
चक्रव्यूह से लड़ने के लिए वीर अभिमन्यु आगे बढ़े और उसने सफलतापूर्वक चक्रव्यूह के छः अलग-अलग चरणों को पार कर लिया। लेकिन सातवें चरण में उसे कर्ण, दुर्योधन आदि योद्धाओं ने घेर लिया। ये सातों एक साथ मिलकर युद्ध के नियमों के विरुद्ध अभिमन्यु पर वार करने लगे।
उधर जयद्रथ, इस दौरान, चक्रव्यूह के द्वार पर खड़ा पांडवों के अन्य योद्धाओं जैसे कि युधिष्ठिर, भीम आदि को चक्रव्यूह में प्रवेश से रोकता रहा। इस कारण अभिमन्यु अकेला पड़ गया और अकेला कौरवों के प्रहार सहते-सहते वीरगति को प्राप्त हुआ।
यह खबर जब अभिमन्यु के पिता अर्जुन को लगी तो वो पुत्र-विरह में वे अपने आपे से बहार हो गए और प्रतिज्ञा कर ली कि अगले दिन सूर्यास्त के पहले या तो वो जयद्रथ को मार देंगे या फिर खुद आत्मदाह कर लेंगे।
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अर्जुन की इस प्रतिज्ञा को सुन जयद्रथ भयभीत हो गया क्योंकि उसे अर्जुन के कौशल पर पूर्ण विश्वास था और वो जानता था कि अर्जुन हर हाल में अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर उसे मारेगा।
अगले दिन रणभूमि में अर्जुन सिर्फ जयद्रथ को ढूंढ रहे थे लेकिन कौरवों ने उसे छुपा रखा था। जैसे जैसे समय व्यतीत हो रहा था वैसे वैसे अर्जुन का मन व्यथित हो रहा था और इधर कौरव यह सोच कर खुश हो रहे थे कि सूर्यास्त तक प्रतिज्ञा पूरी न होने की स्थिति में अर्जुन को आत्मदाह करना पड़ेगा।
अर्जुन की व्याकुलता देख कर श्री कृष्ण ने उनसे कहा “अर्जुन, जयद्रथ को कौरवों ने रक्षा कवच से सुरक्षित कर दिया है, इसलिए तुम आगे बढ़कर सबका संहार करते हुए जयद्रथ का वध कर दो।” इतना सुनते ही अर्जुन का उत्साह दोगुना हो गया। लेकिन लड़ते-लड़ते भी उन्हें जयद्रथ तक पहुंचना मुमकिन नहीं लग रहा था और सूर्यास्त का वक़्त भी करीब हो गया था।
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अर्जुन को इस तरह परेशान देख श्री कृष्ण ने अपनी लीला से सूर्य को बादलों के पीछे छिपा दिया जिससे जयद्रथ और सभी कौरवों को लगा कि सूर्यास्त हो चूका है और अर्जुन को आत्मदाह करना पड़ेगा। इसी क्षण को देखने के लिए जयद्रथ अपने सुरक्षा कवच से बाहर आ गया।
यह देख श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा, “अर्जुन वह देखो तुम्हारा शत्रु बाहर आ गया है, जाओ उसका वध करो क्योंकि अभी सूर्यास्त नहीं हुआ है,” और इसी के साथ श्री कृष्ण ने बादलों में छुपे हुए सूर्य को बाहर कर दिया।
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यह देख जयद्रथ अचंभित हो गया। इधर अर्जुन अपने शत्रु को मारने के लिए व्याकुल थे लेकिन श्री कृष्ण ने उन्हें सचेत करते हुए कहा, “हे अर्जुन जयद्रथ को वरदान है कि जो इसका सर जमीन पर गिरा देगा उसके भी सर के 1000 टुकड़े हो जायेंगे। यहाँ से 100 योजन दूर इसके पिता तप कर रहे हैं, तुम इसका सर ऐसे काट दो कि इसका मस्तक इसके पिता के गोद में ही गिरे।”
अर्जुन ने अपना शस्त्र उठाये और इससे पहले कि जयद्रथ कुछ समझ पाता अर्जुन अपना वार कर चुके थे। जैसे ही तीर जयद्रथ को लगा उसका सिर उसकी पिता की गोद में जाकर गिरा और वरदान के अनुसार उसकी मृत्य के साथ साथ उसके पिता के सिर के भी एक हज़ार टुकड़े हो गए।
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