भगवान श्री कृष्ण की जन्मतिथि को पूरे विश्व में जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है। इसे प्रति वर्ष भद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष इस व्रत का पालन १४ अगस्त को किया जाएगा। वैसे तो इसे पूरे देश में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन वैष्णवों के लिए यह पर्व कुछ अलग से ख़ास मायने रखता है।
इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा के साथ साथ व्रत का भी पालन किया जाता है। लोग इस व्रत में अपनी पूरी श्रद्धा तो मिलाते ही हैं, पर बहुत ही कम लोगों को इसकी सही विधि मालूम होती है। इस लेख के जरिये हम आपको जन्माष्टमी की सही और सम्पूर्ण विधि बताएँगे।
कहा जाता है, कि श्री कृष्ण का जन्म मध्य रात्री में हुआ था तो इसी कारणवश जन्माष्टमी की पूजा मध्यरात्रि से ही आरंभ हो जाती है। इस दिन मध्याह्न में स्नान कर एक छोटा सा सूतक कक्ष बनाना चाहिए।
उसे विभिन्न प्रकार के फूलों से जितना हो सके उतना सजाया जाता है। उसके छोटे से द्वार पर रक्षा के लिए तलवार, कृष्ण छाग, मुशाल आदि रखना चाहिए। उसकी दीवारों पर पवित्र एवं शुभता के चिह्न स्वस्तिक को बनाना चाहिए। उस छोटे से सूतक कक्ष में भगवान श्री कृष्ण के साथ माता देवकी की मूर्ति स्थापित करें।
इन सबकी स्थापना के पश्चात एक छोटे से पालने या झूले पर भगवान श्री कृष्ण की बाल गोपाल रूपी तस्वीर या मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए। इसके पश्चात विभिन्न प्रकार के फूलों एवं फलों से बाल गोपाल की पूरी भक्ति के साथ अर्चना करें। आप धूप, अक्षत, नारियल इत्यादि भी चढ़ा सकते हैं।
चूंकि भगवान श्री कृष्ण का जन्म मध्य रात्री में हुआ था, इसलिए जन्माष्टमी के दिन भगवान के जन्म की आरती करें एवं इसके पश्चात प्रसाद बांटें। विधि के अनुसार व्रत का पालन करने वाले को नवमी तिथि के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन करवाना चाहिए। इसके पश्चात उसे दान दक्षिणा दे कर संतुष्ट करना चाहिए। जन्माष्टमी के व्रत का पालन करने वाले को नवमी के दिन ही व्रत का पारण करना चाहिए।
ऐसा माना जाता है, कि जन्माष्टमी के व्रत का पालन करने वाले भक्तों की सारी इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं। इसके विषय में ऐसा भी कहा जाता है, कि इस व्रत का पालन करने वाले को मृत्यु के पश्चात सीधे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है एवं उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाता है।
भारत के कई सारे प्रान्तों में दही हांडी की भी प्रथा है। दरअसल यह एक मनोरंजक खेल है। कई सारी जगहों पर तो श्री कृष्ण लीला भी देखने में मिलती है। यह एक ऐसा खेल है, जिसमें छोटे बालक भगवान के माखन चुराने का अभिनय करते हैं।
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