इंसान अपने आप को भी भगवान से ज़्यादा प्रेम करता है.शायद यही वजह रही होगी की समय समय पर देव गण को इस धरती पर अवतरित होना पड़ा, ताकि वो मानवजाति का कल्याण कर सकें . ऐसे में हम मनुष्य अवतरित देव गण को अपने जीवन का आदर्श मानकर सदैव उनके दिखाए मार्ग पर चलते हैं.
भगवान श्री कृष्ण का जन्म भद्र मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन मध्यरात्रि में हुआ था.वे विष्णु के ८वे अवतार है, जिन्होंने द्वापर युग में जन्म लिया, ताकि वे लोगों को अपने मामा कंश द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों से बचा सकें. क्योंकि भगवान विष्णु सीधे इस धरती पर अवतरित हुए इसलिए उस दिन को कृष्णाष्टमी या जन्माष्टमी कहते हैं.
माना जाता है, कि मथुरा राज्य में कंश नामक राजा हुआ करता था, जिन्होंने सत्ता की लालच में अपने पिता तक को कारागृह में बंदी बना दिया और उनपर यातनाएं करने लगा.धीरे-धीरे उनकी यातनाएं इस कदर बढ़ गयी, कि उनकी अपनी बहन देवकी की शादी के दिन आकाशवाणी हुई, कि देवकी की आंठवी संतान ही उनका वध करेगा .
इसे सुनकर कंश आग बबूला हो गए और अपनी लाड़ली बहन देवकी और वासुदेव को मरने हेतु अस्त्र उठा लिए. उसे रोकते हुए देवकी ने वचन दिया, कि जैसे ही उनकी संतान का जन्म होगा कंश उसे मार दे.
ऐसे करते करते कंश ने देवकी की ६ संतानों को मार दिया.तभी सारे देवगणों ने मिलकर योजना रची और देवकी की सातवीं संतान को नन्द की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भाशय में स्थापित कर दिया बिना कंश को पता चले . इन्होंने ने ही बलराम के रूप में जन्म लिया.
आकाशवाणी के कहे अनुसार आठवीं संतान के जन्म के समय एक एक कर सारे पहरेदार सो गए और कारागृह के सारे दरवाज़े भी खुल गए . नन्द ने श्रीकृष्ण को अपने सर पर उठाया और गोकुल में रह रहे नन्द महाराज के घर की ओर प्रस्थान किया .उन्होंने नन्द के घर जन्मी बेटी को श्रीकृष्णा से बदल दिया.
जब कंश वध करने पंहुचा तो उस बच्ची के रूप में जन्मी देवी योग माया ने उसे इस सत्य से अवगत कराया, कि उसके काल का जन्म हो चुका है .ये सब सुनकर धूर्त कंश ने मथुरा में जन्मे सारे बच्चों को मरवाने का हुक्म दिया. तरह तरह के मायावी राक्षसों की भी मदद ली मगर सफल न हो सका .
कृष्णा जी ने बड़े होने के पश्चात मल्ल युद्ध में कंश का वध कर दिया और मथुरावासियों को उनके अत्याचारों से मुक्त किया.
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