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जानिये असम की महिलाओं की २-पीस साड़ी के बारे में

भारत की रंगारंग कला और संस्कृति पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसकी विविधता में ही एकता झलकती है। इसके विभिन्न प्रदेशों में से एक है असम। यूं तो असम अपनी संस्कृति और अनेक कलाओं के लिए प्रसिद्ध है, परंतु इसकी अनोखी वस्त्र कला लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। “साड़ी” एक ऐसा भारतीय वस्त्र है, जिसे हर कद-काठी की महिला बड़ी ही सहजता से पहन सकती है और ख़ूबसूरत लग सकती है। ऐसा ही एक वस्त्र है, असम की २-पीस साड़ी। इस विशेष साड़ी को “ मेखला चादर ” के नाम से भी जाना जाता है। आइये, जानते हैं इस २-पीस साड़ी के विषय में कुछ विशेष तथ्य।

इस पारंपरिक साड़ी को विशेषकर रेशमी धागों से बुना जाता है, हालांकि कभी कभी हमे यह साड़ी कपास के धागों से बुनी हुई भी मिल सकती है, तो कभी कभी इसे कृत्रिम रेशों से भी बुना जाता है। इस साड़ी पर बनी हुई विशेष आकृतियाँ (डिज़ाइन्स) को केवल पारंपरिक तरीक़ों से ही बुना जाता है, तो कभी कभी मेखला और चादर के छोर पर सिला जाता है। इस पूरी साड़ी के तीन अलग अलग हिस्से होते हैं, ऊपरी हिस्से के पहनावे को चादर और निचले हिस्से के पहनावे को मेखला कहते हैं। “मेखला” को कमर के चारों ओर लपेटा जाता है। “चादर” की लंबाई पारंपरिक रोज़मर्रा में पहने जाने वाली साड़ी की तुलना में कम ही होती है। चादर साड़ी के पल्लू की तरह ही होती है, जिसे मेखला के अगल-बगल में लपेटा जाता है। इस २-पीस साड़ी को एक ब्लाउज़ के साथ पहना जाता है। एक विशेष तथ्य यह भी है, कि मेखला को कमर पर लपेटते वक़्त उसे बहुत से चुन्नटों(प्लीट्स) में सहेजा जाता है और कमर में खोंस लिया जाता है। परंतु, पारंपरिक साड़ी पहनने के तरीक़े के विपरीत, जिसमें चुन्नटों को बाएँ ओर सहेजा जाता है, मेखला की चुन्नटों को दायीं ओर सहेजा जाता है।

इस २-पीस साड़ी को किसी भी ख़ास मौके पर पहना जा सकता है। यह किसी भी महिला को ख़ूबसूरत और विशेष दिखा सकती है। अक्सर २-पीस की पूरी साड़ी एक ही रंग की होती है, जिसमें अलग-अलग रंगों का कुछ अंश भी शामिल होता है। अधिकतर इसे हरे और लाल रंग के जोड़े में ही पाया जाता है।

वैसे तो यह पारंपरिक २-पीस साड़ी ने आज भी अपनी विशेषता बरक़रार रखी है, फिर भी आज कल के ज़माने की क़द्र करते हुए इसे एक नए अंदाज़ में पेश करने के लिए इसमें अलग-अलग रेशों का प्रयोग होने लगा है। स्थानीय रेशमी धागों के अलावा बनारसी रेशम, कांजीवरम और शिफॉन के रेशों का भी प्रयोग आज कल होने लगा है।

आज कल जोर्जेट,क्रेप, शिफॉन से बनी २- पीस साड़ियों के अत्यधिक चलन की वजह इस लिबास के वजन में आने वाली कमी भी है। एक ओर जहाँ ये साड़ियाँ हल्की होती जा रही हैं, वहीं कृतिम रेशों के प्रयोग ने इन्हें और सस्ता बना दिया है और पहनने में भी ये उतनी ही आसान हो गयी हैं।

शिवांगी महाराणा

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