भगवान विष्णु ने इस पृथ्वी पर सत्य और धर्म की स्थापना करने के लिए कई बार अवतार लिया। उनमे से एक है श्री क़ृष्णावतार। उन्होंने अपने उस जन्म में एक सच्चे मित्र से लेकर एक पथ-प्रदर्शक सारथी के रूप में अपनी भूमिका निभाई। उन्होंने अपने उस अवतार में पूरे संसार के समक्ष यह सीख दी, कि जहाँ नारियों का सम्मान न हो वहाँ विनाश का क्रम तय है। अपनी प्रिय राधा से लेकर यशोदा मैया के द्वारा उन्होंने प्रेम का सच्चा अर्थ इस पूरे संसार को समझाया। ऐसे बहुत से कारण है, जिनकी वजह से उनका ये मानव अवतार बहुत ही विशेष है। उनके इस अवतार की शुभ तिथि को लोग एक पर्व की तरह मनाते हैं।
भगवान श्री कृष्ण का जन्म पर्व, जन्माष्टमी का इंतज़ार हर किसी वैष्णव को रहता है। जन्माष्टमी पूरे देश में अलग अलग नामों से प्रसिद्ध है। इसे कहीं कृष्णाष्टमी, तो कहीं गोकुलाष्टमी के नाम से जाना जाता है। इसे अष्टमी रोहिणी, श्री कृष्ण जयंती और श्री जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व को पूरे भारत में बड़े ही हर्षोल्लाष के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने में लोग किसी भी तरह की कमी नहीं आने देते हैं। पर धूमधाम से इसे मनाने से पहले इसकी तारीख जान लेना नितांत ज़रूरी है। जन्माष्टमी को हर वर्ष भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाया जाता है। इस वर्ष यह तिथि १४ अगस्त २०१७ को आती है। अब हमने जन्माष्टमी की तिथि जान ली, अब जानते हैं इसके पालन करने की विधि।
इस अष्टमी तिथि की समाप्ति १५ अगस्त को हो जाएगी। इस तिथि के साथ रोहिणी नक्षत्र का संगम सोने पर सुहागा जैसी स्थिति उत्पन्न करता है। इस संयोग को बहुत ही शुभ माना जाता है। यहाँ बहुत से लोग एकादशी का पालन तो करते हैं ही, इस व्रत के पालन करने के कुछ नियम भी हैं। परंतु यहाँ विशेष बात यह है, कि जो नियम एकादशी पर लागू होते हैं, उन्हीं नियमों का पालन कर हमें जन्माष्टमी के व्रत को पूरा करना है। जन्माष्टमी के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात एक निश्चित समय पर ही इस व्रत को पूर्ण किया जाता है। इस निश्चित समय को पारण समय के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल, जन्माष्टमी का पारण सूर्योदय के पश्चात अष्टमी तिथि एवं रोहिणी नक्षत्र की समाप्ति के बाद ही होनी चाहिए। लेकिन, यदि किसी भी परिस्थिति के चलते सूर्यास्त तक अष्टमी तिथि एवं रोहिणी नक्षत्र की समाप्ति नहीं होती है तो, इनमें से किसी भी एक के समाप्त होने के बाद पारण किया जा सकता है।
हमारे देश की एक और विविधता यह भी है, कि पूरे देश में इसे दो अलग अलग दिनों पर मनाया जाता है। उत्तर भारत के लोग इसे प्रायः एक दिन पहले मनाते हैं।
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