निःस्वार्थ प्रेम, अर्थात लौकिक जगत से परे औलोकिक प्रेम, इस सृष्टि की नींव है। ऐसा प्रेम सांसारिक दायरे से ऊपर होता है। शायद इसलिए ही भौतिक जगत में ऐसी प्रेम कहानियों का अंत तो हो जाता है, किन्तु अपने अपूर्व त्याग के कारण मोहब्बत के मिशाल के रूप में जग में अमर हो जाती हैं। फिर समय बीतने पर इन अद्भुत कहानियों के सच होने पर शंका होने लगती।
ऐसी ही एक प्रेम कहानी शहजादे सलीम और कनीज अनारकली की है।
जिसके सच होने की प्रमाणिकता से आज हम आपको परिचित करवाएंगे।
अमर प्रेम कहानी की दास्ताँ
सलीम अकबर का बड़ा बेटा था और अनारकली अकबर द्वारा नियुक्त दरबार की नृत्यांगना थी। अनारकली बला की खुबसूरत थी। सलीम दरबार में ऊसके नृत्य देखने के क्रम में उसके दीवाने हो गए थे।
शहंशाह अकबर नहीं चाहते थे कि उनकी राजगद्दी का वारिस किसी कनीज के प्यार में दीवाना होकर अपने होशोहवाश खो बैठे। उन्हें ये भी गवारा नहीं था कि महल की एक कनीज को हिन्दुस्तान की मल्लिका की उपाधि से नवाजा जाए। इस कारण उन्होंने सलीम को अनारकली से मिलने पर प्रतिबंध लगाए।
पिता के प्रतिबंधों से तंग आकर सलीम अकबर से बगावत पर उतर आये।

फलस्वरूप अकबर और सलीम के बीच युद्ध हुआ, जिसमें शहंशाह की सेना ने शहजादे सलीम को शिकस्त दे दी। परिणामस्वरूप अकबर ने अपने बेटे सलीम को बंदी बना लिया और उसके सामने अनारकली को भूल जाने या फिर मौत को गले लगाने का प्रस्ताव रखा।
सलीम अपनी मोहब्बत को भुलाने के बजाय मौत को स्वीकार करने को राज़ी हो गए। उधर सलीम की जान बचाने के लिए अनारकली मरने को तैयार हो गई। अकबर ने अनारकली को बंदी लिया और मौत से पहले उसकी आखरी ख्वाइश पूछने पर उसने शहजादे सलीम के साथ एक रात गुजारने की बात कही। तब शहंशाह ने अनारकली को सलीम को भूल जाने के एवज में जीवन दान देने की शर्त भी रखी। किन्तु अनारकली ने मौत को गले लगाना ही स्वीकार किया।
अनारकली और सलीम की कहानी के सच होने का प्रमाण
यूँ तो सलीम और अनारकली की प्रेम कहानी को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। ये कहानी भारतीय इतिहास की मशहूर प्रेम कहानियों में से एक है। इस अमर प्रेम कहानी को लेकर कई निर्देशकों ने फिल्म बनायी है। उनमें से सबसे मशहूर फिल्म है मुगल- ए- आजम।
इस कहानी के सच होने के प्रमाण की गवाह है लाहौर में अनारकली के मकबरे का होना। इस कब्र पर दो तारीख अंकित है। पहली तारीख 1008 हिजरी यानि 1599 ई. जो अनारकली के मौत की है और दूसरी 1025 हिजरी यानि 1615 ई. लिखी हुई है, जो मकबरे के निर्माण के पूर्ण होने की है।

शाहंशाह अकबर का देहांत 1605 ई. में हुआ था। कहते हैं सलीम ने अकबर की मौत के बाद महल में उसी स्थान पर अनारकली का मकबरा बनवाया था। जहाँ पर अकबर के आदेश पर उसे दीवार में चुनवाया गया था। सलीम की मौत सन 1627 ई. में हुई थी। ये तारीखे सलीम- अनारकली के दास्ताँ के आसपास होने के कारण कहानी की सत्यता को प्रमाणित करती हुई प्रतीत होती है।
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