एक ही शख्सियत रखते हुए ,कभी बाप-बेटे,दोस्त तो भाई-पति भी होते हैं फिर हर नारी के मन में यही ख्याल आता है, क्या सभी मर्द एक जैसे होते हैं!!
जी हाँ, बचपन से लेकर वृद्धधा अवस्था तक आते हुए, कभी न कभी हर नारी के साथ कुछ ऐसा हो जाता है, जिससे उनका मन आहत हो जाता है। ऐसे में उनके मन और होंठों से यही आवाज़ निकल ही जाती है कि, क्या सभी मर्द एक जैसे होते हैं?
हालांकि इस सवाल के जवाब को हल करने में सदियों से मनोवैज्ञानिक ही नहीं साहित्यकार भी अपनी कलम तोड़ बैठे हैं, लेकिन शायद सही जवाब ढूंढ पाने में वो भी अब तक नाकाम ही दिखाई देते हैं। आइये आज हम इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश करते हैं:
समाज चाहे आधुनिक रहा है या ऐतिहासिक, अधिकतर शोषक के रूप में किसी न किसी पुरुष का नाम ही लिया जाता है। प्राचीन काल में हिंसक राजा, अधिकारी, कर्मचारी या फिर सेनापति के रूप में दिखाई देता है। आधुनिक समाज में न केवल घर से बाहर किसी भी रूप में बल्कि घर में भी किसी न किसी रिश्ते में दिखाई दे सकता है। लेकिन यह सत्य नहीं है। सारे मर्द शोषक नहीं बल्कि शोषण को रोकने वाले भी होते हैं। ईश्वर चंद विध्यासागर जिन्होनें विधवा विवाह का विरोध करके इसके लिए कानून बनवाया। पश्चमी भारत के ज्योतिबा फूले ने महिला शिक्षा पर ज़ोर देकर अपनी पत्नी के साथ मिलकर स्कूली पढ़ाई शुरू करवाई। इसी तरह इतिहास में ही नहीं आधुनिक समाज में भी नारी उत्थान के लिए काम करने वाले पुरुष हमें मिल सकते हैं।
यह पूरी तरह से सत्य नहीं है। केवल वो ही पुरुष इस श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने ऊपर आतींविश्वास नहीं होता है। जो पुरुष केवल भावनाओं के सहारे नारी को जीत कर अपनी जिंदगी बिताना चाहते हैं, वो ही नारी ही नहीं किसी बालक या वृद्ध की भी भावनाओं की कद्र नहीं करते हैं। आज के समाज में दशरथ मांझी जैसे अनपढ़ और साधनहीन पुरुष भी हैं जिन्होनें अपनी पत्नी की समस्या को समझते हुए सम्पूर्ण नारी जगत की भावनाओं को समझा और अकेले ही उसे हल किया।
यह केवल एक मिथ्या भावना है क्योंकि आज के इन्टरनेट युग में लॉन्ग डिस्टेन्स रिलेशनशिप में ऐसे रिश्ते भी बनते देखे गए हैं जहां दोनों साथियों ने एक दूसरे को देखा भी नहीं। अगर इतिहास की बात करें तो कहते हैं कि मजनूँ ने जिसके लिए अपनी जान दी, वो लैला कोई पारंपरिक सुंदरी नहीं थी। सच्चे पुरुष केवल मन का सौन्दर्य देखते हैं, तन का नहीं।
किसी भी रिश्ते में पहले मन का रिश्ता जुड़ता है और फिर उसके बाद अगर ज़रूरी हो तब तन का रिश्ता जुड़ता है। जीवन-साथी का रिश्ता इसी श्रेणी में आता है। लेकिन कभी-कभी इस तरह के रिश्ते केवल दोस्ती तक ही सिमट कर रह जाते हैं। भक्ति काल के साहित्यकारों ने राधा-कृष्ण के रिश्तों को बेशक प्रेम का नाम दिया हो,लेकिन वास्तविकता तो यह है कि दोनों चरित्रों में केवल दोस्ती थी, जो आज भी पवित्र मानी जाती है। आज भी कॉलेज में पढ़ने वाले अनेक नवयुवक अपने साथ पढ़ने वाली युवतियों कि दोस्त के रूप में मदद करते हैं, इस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
शायद यही बात पुरुष समाज महिला-वर्ग के लिए भी कह सकता है। सोशल मीडिया पर पत्नी के केंद्र में रखकर बनाए चुट्कुले इस बात का साक्षात प्रमाण है। क्या वजह है कि पति-पत्नी जैसे पवित्र रिश्ते को मज़ाक बनाकर सबके बीच में हंसा जाता है। कहीं इसके पीछे किसी न किसी नारी की स्वार्थपरता तो नहीं। हो सकता है एक युवती हर पुरुष को अपने अधिकार में रखना चाहती हो, तब उसके मुंह से यह वाक्य हर समय निकल सकता है।
कहने का अर्थ यह नहीं कि सभी पुरुष अच्छे होते हैं, या सारा नारी समाज खराब होता है। दरअसल पुरुष हो या स्त्री दोनों एक इंसान हैं और दोनों एक ही साथ अच्छे और बुरे हो सकते हैं। इसलिए यह कहना बिलकुल सही नहीं है कि सारे पुरुष एक जैसे होते हैं।
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