उत्कट क्रोध से उफनती सांची अपनी गाड़ी में बैठी और उसे एक स्पा की ओर घुमाते हुए बड़बड़ाई, भाड़ में जाओ तुम और तुम्हारा यह घर। मैं तो चली वुमेंस डे मनाने।”
वहां मद्धम रौशनी में पार्श्व में गूँजते मंद, मधुर संगीत और बदन को सहलाते ट्रेंड हाथों ने उसके अदम्य क्रोध से तने स्नायुओं को रिलेक्स किया और अनायास आज सुबह का घटनाक्रम उसकी आँखों के सामने तिर आया।
नन्हें के प्ले ग्रुप स्कूल में अगले शुक्रवार नए सत्र के लिए बुक्स खरीदने का आखिरी दिन था। और उसी दिन उसके आफिस में उसके डायरेक्टर का इंस्पेक्शन था। उसने असीम से कहा, “इस शुक्रवार नन्हें के स्कूल तुम चले जाना, मेरे आफिस में उस दिन डायरेक्टर साब का इंस्पेक्शन है, मैं छुट्टी नहीं ले पाऊँगी।”
लेकिन असीम तो उसकी बात सुनते ही भड़क गए, और बोले, “सांची, आजकल मैं एक प्रोजेक्ट में बेहद बिज़ी हूँ, मैं भी छुट्टी किसी हालत में नहीं ले पाऊँगा।”
इस पर गुस्से में तमकते हुए उसने जवाब दिया, “नन्हें की सारी जिम्मेदारियाँ क्या मेरी ही हैं? अगर तुम्हें मुझे कोओपेरेट नहीं करना था तो नौकरीपेशा बीवी लाए ही क्यूँ?”
“अरे बाबा, गुस्सा थूको? शुक्रवार को अचानक बीमार पड़ जाना, छुट्टी अपने आप हो जाएगी।”
“नहीं, नहीं, उस दिन डायरेक्टर साब को मुझे बहुत सारी रिपोर्ट्स दिखानी हैं। फिर झूठ बोल कर छुट्टी लेना मेरे सिद्धान्त के खिलाफ़ है।”
“हाँ, हाँ बच्चे और घरपरिवार की जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ना ही तुम्हारा सिद्धान्त है।”
और बस असीम की यह बात सुनकर उसकी सहनशक्ति का फ्यूज़ उड़ गया और वह चीख कर बोली, “इतना मरती खपती हूँ, तुम्हारे लिए, तुम्हारे परिवार के लिए, यही सुनने के लिए ? अब मैं तुम्हें वाकई में दिखाऊँगी, जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ना क्या होता है?”
और फिर अदम्य क्रोध से बह आए आसुओं को पोंछते हुए वह चिल्लाई, “तुम्हारी इन बातों से अपना मूड खराब कर रोने सिसकने वाली नहीं हूँ मैं। न मैं किसी को हक़ देती हूँ मेरा अच्छा भला मूड खराब कर मेरा छुट्टी का दिन बर्बाद करने का। मेरे मूड का रिमोट कंट्रोल सिर्फ और सिर्फ मेरे पास रहता है ………”, कि तभी उसकी मसाज हो चुकी थी और वह एक झटके से वर्तमान में लौटी।
नई ताजगी और स्फूर्ति से भर कर अब वह मार्केट की ओर चल पड़ी। ढेरों मनपसंद कपड़े, कॉस्मेटिक्स और किताबें खरीद कर उसने एक बढ़िया होटल में लज़ीज़ खाने का लुत्फ़ उठाया।
यूं अपने ढंग से दिन भरपूर एंजॉय कर वह प्रफुल्ल मन घर पहुंची। चेहरे पर एक चौड़ी मुस्कुराहट के साथ उसने असीम से पूछा, “नन्हें के साथ दिन कैसा बीता? मैंने तो आजका वुमेंस डे जी भर कर एंजॉय किया।”
सांची सोच रही थी, असीम के चेहरे पर बारह बज रहे होंगें। लेकिन उसने कहा था, “मैडमजी, अपनी भी बढ़िया गुजरी। अमन आगया था। उसी ने बहुत बढ़िया बिरयानी बनाई। हाँ सुनो शुक्रवार को मैं सुबह हाफ़डे ले लूँगा। दोपहर बाद तुम हाफ़डे ले लेना।”
“ठीक है”।
“और, कितने रुपयों का भड़ाका कर आई आज?”
“बस पाँच हज़ार।”
“उफ़, गई भैंस पानी मैं, हाँ भई, कमाऊ बीवी का यह अत्याचार तो सहना ही पड़ेगा। ऊपर से महिला दिवस और था आज। तो बलि का बकरा तो बनना ही था इस गरीब को।”
“बलि का बकरा और तुम,” आंखे बड़ी कर सांची ने असीम की ओर देखा। और दोनों ठठा कर हंस पड़े।
खुशियों का उजास चारों ओर फैल गया।
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रेणु जी की चुलबुली कथा आज के दिन के लिये वास्तव में सुंदर बन पड़ी है। कथा व्यवस्था अति रोचक व पठनीय।