नवरात्री नज़दीक आ रही है। ऐसे में सब आखिरी मिनट के शॉपिंग और तैयारी में लगे है। अब बिना गरबा के नवरात्री कैसे पूरी लग सकती है? नवरात्री में डांडिया रास और गरबा का अलग महत्व है। सिर्फ देश में ही नहीं विदेशो में भी गरबा की खासी धूम है। यू.के, अमेरिका , कनाडा में काफी जोश और उल्लास से भारतीय और विदेशी गरबा नाइट्स का आयोजन करते है । गरबा का महत्व क्या है? कैसे शुरू हुआ यह नृत्य और क्यों किया जाता है गरबा नवरात्री की दौरान?
गरबा शब्द का जन्म संस्कृत शब्द गर्भ से हुआ है और दिप से हुआ है। गरबा गुजरती समुदाय का पारंपरिक नृत्य है जिसे वे नवरात्री के 9 दिन माँ की मूर्ति या दिप के सामने गोलाकार में घूमते हुए करते है।
माँ की फोटो या प्रतिमा और दीप उस गोलाकर के बीच में होती है। उनका ये मानना है कि माँ आदिशक्ति ऊर्जा का स्रोत है और ये दीप उनकी ऊर्जा का एक अंश। जब वे लोग इसके सामने नृत्य करते है तो उन्हें भी अध्यात्म की ऊर्जा महसूस होती है और उनके जीवन का अंधकार भी दूर होता है । वे हर्ष और उल्लास के साथ इसे मनाते है। अब समय के साथ पारंपरिक तरीके के साथ साथ आधुनिकता भी आई और इसी तरह डांडिया रास का उद्गम हुआ । डांडिया रास पहले पुरुष किया करते थे; धीरे-धीरे ये प्रचलन बदला और अब डांडिया रास एक ऐसा नृत्य बन गया जिसमें महिला और पुरुष,दोनों ही, जमकर हिस्सा लेते हैं। डांडिया और गरबा दोनों एक साथ मिलकर एक ऐसा नृत्य बन जाते हैं जो काफी ज्यादा एनेरगेटिक होते है। हज़ारो की संख्या में लोग गरबा नाइट्स में हिस्सा लेते है।
परिधानों की बात करे तो पारंपरिक गरबा में महिलाएं और बच्चियां चनिया चोली पहनती है। ये एक 3 लेयर पोशाक होती है जिसके साथ ब्लाउज और दुपट्टा होती है। दुपट्टे को भी पारंपरिक गुजरती तरीके से पहना जाता है।
इसके अलावा महिलाए मांगटीका, चूड़ी, कड़ा, बाजूबंध , कमरबंध सब पहनती है – 16 सृंगार करती है। पुरुष भी इस मामले में पीछे नहीं रहते है। कुर्ता ,पाजामा , सिर पे टोपी ,कड़ा , मोजरी उनकी लुक को कम्पलीट करते है। उनका कुर्ता भी अलग तरह का होता है जिसमे घेर होते है । उसे घाघरा कहा जाता है । पुरे पारंपरिक परिधान में लोग देवी माँ की आराधना करते है खुशिया मनाते है।
वही मॉडर्न डांडिया में लोग नार्मल कुर्ता-पाजामा, लहँगा चोली हलके परिधान पहनते है। क्योंकि डांडिया रास का महत्वपूर्ण भाग डांडिया स्टिकस है तो लोग तरह तरह के डांडिया स्टिकस खरीदते है। फिर क्या बॉलीवुड के गानों पे , फाल्गुनी पाठक गरबा क्वीन के गीतों पे शुरू जो जाते है। पारंपरिक गरबा न सिर्फ गुजरती समुदाय के जीवन का हिस्सा है उनका जीवन बिना गरबे के हो ही नहीं सकता । उनके लिए गरबा एक खुशिया मनाने का ज़रिया है। कोई भी खुसी का माहौल हो गुजरती लोग ” ऐ हालो” बोलकर शुरू हो जाते । उनका मतलब होता है – आओ हमारे साथ मिलकर खुशिया मनाते है।
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