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अपने बच्चे को पढ़ाई-लिखाई में आत्मनिर्भर कैसे बनाएं?

अमूमन मांएं यह कहती हुई सुनी जा सकती हैं कि “मुझे तो पढ़ाई के लिए अपने बच्चे के पीछ- पीछे भागना पड़ता है। वह कभी बिना कहे अपने आप पढ़ने नहीं बैठता। जितनी देर उसके साथ बैठो, वह पढ़ लेता है, लेकिन मैं उसके पास से उठी नहीं कि वह भी पढ़ाई करना छोड़ देता है।”

इस समस्या के समाधान के लिए हमें अपने बच्चे को स्टडीज़ में आत्मनिर्भर बनाना होगा जिससे कि आपको हर वक्त अपने बच्चे की निगरानी न करनी पड़े यह देखने के लिए कि वह स्टडी कर रहा है या केवल पढ़ने का दिखावा कर रहा है।

यदि आप निम्न सुझावों पर अमल करेंगी तो यकीन मानिए, आपका बच्चा धीरे-धीरे स्टडीज में तो आत्मनिर्भर बनेगा ही, साथ ही उसके आत्मविश्वास में भी आशातीत वृद्धि होगी जो कि आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग की सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राथमिकता है।

उसे स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अवसर दें:

बच्चे के 5 वर्ष का होते ही उससे छुटमुट जिम्मेदारियां दे। आप उसे स्कूल से आकर अपने कपड़े, जूते, बैग सही जगह पर रखने के लिए कह सकती हैं। अपने झूठे बर्तन सिंक के पास रखने के लिए कह सकती हैं। उसे कोई चित्र अपने आप बिना आपके निर्देशों और गाइडेंस बनाने के लिए कह सकती हैं। अपने बच्चे को किसी भी कार्य की जिम्मेदारी दे आप पीछे हट जाएं।

इस प्रकार स्वतंत्र रूप से अपना कार्य करने से उनमें कार्य करने का कौशल और आत्मविश्वास दोनों विकसित होंगे जो उसे स्वतंत्रता की राह पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ाएंगे।

बच्चे के प्रयास और प्रगति की प्रशंसा करें:

आप मात्र बच्चे की परीक्षा के परिणाम की प्रशंसा करती हैं तब आपका फ़ोकस मात्र उसके परिणाम पर होता है। परिणाम के साथ-साथ उसे पाने में लगे बच्चे के श्रम एवं प्रयास की भी प्रशंसा करें।

“मेरी बेटी ने परीक्षा में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। इसके साथ-साथ यह भी जोड़ें, “वह रोज 5 घंटे की पढ़ाई करती है। रोजाना बहुत कड़ी मेहनत करती है।”

आपका यह कथन उसे और कठिन श्रम करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।

प्रारंभिक बचपन में बच्चे की स्टडीज की नींव मजबूत बनाएं:

5 वर्ष से 6-7 वर्ष की आयु तक उसकी स्टडीज अपनी देखरेख में करवाएं और स्टडीज़ में उसकी नींव बचपन से ही मजबूत करें। उसे उसके पाठ अच्छी तरह से समझाएं, उसके कॉन्सेप्ट्स क्लीयर करें। उसमें स्कूल में पढ़ाये गए लैसन्स को घर में दोहराने की आदत डालें। उसमें पढ़ते वक्त पूरी एकाग्रता से पढ़ाई करने की आदत डालें। 5 से 8-9 वर्ष की आयु तक उसे अपनी देखरेख में पढ़ाएं।

नियमित रूप से मन लगा कर पढ़ने से अपने आप उसकी स्वतंत्र ढंग से पढ़ाई करने की आदत विकसित हो जाएगी। यदि प्रारंभिक बचपन में उसकी मेहनत कर पढ़ने की आदत पड़ जाती है तो यकीन मानिए, 10-11 वर्ष का होते होते वह स्वयं स्वतंत्र भाव से मन लगाकर पढ़ाई करने लगेगा।

उससे समयबद्ध पढ़ाई करवाएं:

अपने बच्चे को अपने सामने गणित के 5 सवाल हल करने के लिए दीजिए। इस बात पर नज़र रखिए कि वह कितनी देर में वे सवाल हल कर लेता है। सवाल खत्म करने पर उससे कहिए, “वाह आज तुमने ये 5 सवाल मात्र 20 मिनट में खत्म कर लिए। अब कल हम एक गेम खेलेंगे। मैं तुम्हें 5 सवाल कल और दूंगी। तुम्हें उन्हें अपने आप करने होंगे। देखना तुम उन्हें आज से भी कम समय में कर लोगे।”

अगले दिन बच्चे से पांच और सवाल बिना अपनी देख-रेख के करवाएं। आप पाएंगे कि अधिकतर बच्चे जोश जोश में वे सवाल पिछले दिन से भी जल्दी हल कर लेंगे।

सवाल सही करने पर उन्हें शाबाशी दें एवं उनकी पीठ थपथपाएं। इस प्रकार आप उन्हें स्वतंत्र रूप से पढ़ाई करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं।

बच्चे से अपना किया हुआ काम स्वयं चेक करवाएं:

अपने बच्चे को एक लाल पेन दे दें। उसे अपने किए हुए सवाल, टेबल्स, उत्तर स्वयं शिक्षिका की तरह चेक करने और उन्हें नंबर देने के लिए कहें।

बच्चों को अपना किया हुआ काम स्वयं चेक करने में बहुत मजा आता है इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और वह आत्मनिर्भरता की दिशा में शीघ्रता से आगे बढ़ते हैं।

बच्चे में स्वयं पढ़ने की आदत डालें:

बच्चे में रोजाना कुछ देर स्वयं पढ़ने की आदत डालें। यदि आपके बच्चे को दस सवाल होमवर्क में मिले हैं तो पांच सवाल उन्हें अपने पास बिठाकर अपनी गाइडेंस में करवाएं। फिर अगले 5 सवाल उन्हें अकेले अपने आप करने के लिए कहें। शुरुआत में उन्हें अकेले सवाल करना कठिन लगेगा लेकिन समय के साथ वे बिना आपकी देखरेख के स्वयं सवाल करने लगेंगे।

अकेले स्वतंत्र रूप से स्टडीज़ करने के बाद बच्चे को कुछ रिवार्ड दें:

यदि आपका बच्चा स्वतंत्र रूप से स्टडीज़ करने के लिए अपनी घोर अनिच्छा जाहिर करता है तो उसे उसके बाद उसकी मनचाही गतिविधि या खाने की चीज प्रॉमिज़ करें। आप यह कह सकती हैं कि अगर तुम अपने आप सारे सवाल कर लोगे तो उसके बाद तुम अपनी मनपसंद कार्टून फिल्म देख सकते हो या तुम्हें चॉकलेट मिलेगी। आप उसे यह भी कह सकती हैं कि थोड़ी देर अकेले पढ़ने के बाद आप उसे कहानी सुनाएंगी या उसके साथ उसका मनपसंद खेल खेलेंगी।

पढ़ते वक्त बच्चे के साथ रहे लेकिन हर कदम पर उसे गाइड न करें:

इसका तात्पर्य है कि आप बच्चे के पढ़ते वक्त उसके साथ अवश्य रहें, लेकिन इसके साथ ही उसे स्वयं वह कार्य पूरा करने के लिए कहे। कदम कदम पर उसे गाइड कर उसे अपने आप पर इतना आश्रित ना बनाएं कि वह अकेला कुछ कर ही ना सके। याद रखें बच्चे के स्टडी टाइम के दौरान उसके निकट आप की उपस्थिति उसे सुरक्षा का भाव देती है। आप पास होते हुए भी उसे अपना कार्य खुद करने के लिए प्रेरित करें।

बच्चे को शिक्षक की भूमिका निभाने दें:

बच्चे को कोई पाठ समझाने के बाद आप उसे अपनी तरह आप को समझाने के लिए कहें। इससे उसका आत्मविश्वास तो बढ़ेगा ही साथ ही वह आत्मनिर्भर भी बनेगा।

बच्चे को अपनी क्षमताओं का यकीन दिलाएं:

यदि आपका बच्चा आपकी मौज़ूदगी में कोई कार्य अच्छी तरह कर लेता है लेकिन अकेले उसे हर्गिज़ नहीं करना चाहता, रोता झींकता है तो उसे यह कहते हुए विश्वास दिलाएं कि आपको उसकी क्षमता पर पूरा पूरा यकीन है, और वह उस काम को अकेले बहुत अच्छी तरह कर सकता है। उससे यह भी कहें कि आप उसकी तब तक सहायता नहीं करेंगी जब तक कि उसे वास्तव में उसकी जरूरत नहीं होगी। आपके लिए ना कहना मुश्किल हो सकता है, लेकिन ऐसा करने से आपके बच्चे में अपनी क्षमता के प्रति आत्म विश्वास पैदा होगा और वह आत्मनिर्भरता का सबक सीखेगा।

Renu Gupta

View Comments

  • Mera bachha 13sal ka hai lekin wo padhai karne jab baithta hai to bar bar idhar udhar karta jai. Aur dantne par gussa karta hai. Aur Mobile pe hi uska hamesa dhyan rahta h. Plz bataye mai kya Karu.

  • Meri daughter 10 yrs old h. Vo study m interest show nhi krti. Usko study krna pasand nhi h. Ham bahut pareshan h. Usko koi bhi word learn nhi hota. Abhi learn krti h 5 minutes baad bhul jayegi. Is saal usko 4th class m hi repear karvaya. Other activities m achhi h. Usko abhi nurseary standard level bhi nhi aat. Ham jaise hi usko study ke liye bolte h hmen rudely se jwab deti h mughe chahe maro jo bhi kro par m study nhi karungi. Councelling aur doctor ko bhi dika chuki hu. Please suggest me.

  • बच्चे जब तक स्वयं कुछ भी कार्य करे उसे मना नही करें बाद मे उसके साथ मिलकर खेल --खेल में ही उसे गलतियों का अहसास कराएंगे इस तरह बच्चा हमारे साथ पढने मे पीछे नहीं रूके गा

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