एक शिक्षिका के रूप में मुझे अक्सर ऐसे अभिभावकों से मिलने का अवसर मिलता है, जो अपने बच्चे के पढ़ाई में निराशाजनक अथवा औसत दर्जे के प्रदर्शन से बेहद परेशान एवं खिन्न रहते हैं।
यहां मैं यह कहना चाहूंगी कि पढ़ाई में बच्चों के खराब प्रदर्शन के लिए बहुत हद तक उनके अभिभावक ही जिम्मेदार होते हैं। यदि माता-पिता बचपन से बच्चे की पढ़ाई के प्रति गंभीर नज़रिया विकसित करें, उनकी पढ़ाई से संबंधित छोटी-बड़ी समस्याओं को हल करते हुए उसमें नियमित अध्ययन की आदत डालें, उसमें नियमित रूप से पढ़ाए गए लैसन रिवाइज़ करने की आदत डालें, तो निस्संदेह उनका बच्चा पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन करेगा।
याद रखें, बच्चे के आगत शैक्षणिक जीवन की नींव प्रारम्भिक बचपन में ही रखी जानी चाहिए, जिससे बच्चा ऊंची क्लास में पहुँच कर भी पढ़ाई में अपना सौ प्रतिशत देते हुए हमेशा श्रेष्ठ प्रदर्शन कर सके।
पढ़ाई में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हेतु बच्चे में लगभग 5 वर्ष की आयु से घर में नियमित रूप से अध्ययन करने की आदत डालनी चाहिए। अभिभावकों को अपने बच्चे को अत्यंत धैर्यपूर्वक नर्सरी से ही उस दिन क्लास में पढ़ाए गए पूरे लैसन को पढ़वा कर रिवाइज़ करवा देना चाहिए जिससे कि वह टॉपिक बच्चे को अच्छी तरह से समझ में आ जाए। उस टॉपिक संबंधित उसके सभी संदेहों का हल कर दें। उसे पूरा लैसन पढ़कर अच्छी तरह से समझने के बाद ही उस लैसन के प्रश्नोत्तर याद करने चाहिये।
अभिभावक जूनियर क्लास में अपने बच्चे को बात बात पर जैसे किसी सामाजिक कार्यक्रम अटेंड करने, मेहमान के आने, पिक्चर, पिकनिक या किसी पारिवारिक मित्र या रिश्तेदार के घर आने के बहाने स्कूल में छुट्टी करवा देते हैं। यह प्रवृत्ति उसे स्कूल और पढ़ाई को अत्यंत हल्के में लेने के लिए प्रोत्साहित करती है, जो कि ऊंची कक्षाओं में गंभीर समस्या में बदल सकती है।
अतः अभिभावकों को बच्चे को बिना किसी गंभीर कारण के स्कूल से छुट्टी नहीं दिलवानी चाहिए ।
साथ ही घर पर उनकी पढ़ाई के समय पर किसी सिनेमा, सोशल विज़िट, पिकनिक या बाहर जाने का कार्यक्रम नहीं बनाना चाहिए। याद रखें स्कूल और घर के पढ़ाई के समय के प्रति आपका गंभीर रवैया ही आपके बच्चे में इनके प्रति गंभीरता विकसित करेगा।
बच्चे को कहें कि उसे क्लास में शिक्षिका के लैसन के एक्सप्लेनेशन को अत्यंत एकाग्रता से सुन कर अच्छी तरह से समझना चाहिए जिससे कि वह परीक्षा के लिए उसे याद रख उसे अच्छी तरह से लिख सके।
परीक्षाओं में उत्कृष्ट रिज़ल्ट के लिए रटने के महत्व को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता। मैथ्स के फ़ौर्मूलाज़, थ्योरम्स, ऐतिहासिक तिथियां, और वर्ष आदि को रटने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। अतः अपने बच्चे से कहें कि रटने वाले तथ्य वह सुबह के समय कंठस्थ करे जिससे वह उन्हें परीक्षा में ज्यों के त्यों लिख सके। उसे यह अवश्य बताएं कि कुछ भी रटने से पहले उसके लिए उसे अच्छी तरह से समझना जरूरी है क्योंकि समझने के बाद किसी भी तथ्य को कंठस्थ करना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है।
बच्चे से स्कूल में सभी सब्जेक्ट की पढ़ाई के बारे में समय-समय पर पूछती रहें कि उसे सभी सब्जेक्ट की पढ़ाई स्कूल में अच्छी तरह से समझ में आ रही है या नहीं। यदि वह किसी सब्जेक्ट में दिक्कत महसूस कर रहा हो, या किसी विशेष सब्जेक्ट की टीचर का पढ़ाना उसे समझ में नहीं आ रहा हो, तो उस विशेष सब्जेक्ट की स्कूल टीचर से बात कर उसकी समस्या का समाधान तुरंत करें, जिससे कि बच्चा पढ़ाई में किसी तरह की बाधा महसूस ना करे।
अपने बच्चे को विभिन्न सब्जेक्ट्स की पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त हिंदी और इंग्लिश की रोचक, रंग बिरंगी कहानियों, कविताओं की किताबें, महापुरुषों की आत्मकथाएं, जीवनी, समाचार पत्र आदि उसके खाली समय में पढ़ने के लिए ला कर दें और उन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। यह आपके बच्चे की दोनों भाषाओं पर पकड़ मजबूत करेगी।
यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि जिन बच्चों में पढ़ने की आदत होती है, वे शैक्षणिक गतिविधियों में ज्यादा रुचि लेते हैं और क्लास में अधिक समय तक एकाग्रचित्तता से पढ़ाई करते हैं।
अमूमन हर स्कूल में बच्चों की समस्याओं के समाधान के लिए हर माह पैरेंट टीचर मीट आयोजित की जाती है। अभिभावकों को यह मीट हर हाल में अटेंड करनी चाहिए जिससे कि उन्हें टीचर से अपने बच्चे की शैक्षणिक प्रगति का लेखा-जोखा नियमित रूप से मिलता रहे। स्कूल में आयोजित हर पैरेंट मीट अटेंड करने से बच्चे पर इस बात का दबाव बना रहता है कि स्कूल में उसकी सभी गतिविधियों को आपके साथ साझा किया जाएगा। परिणामस्वरूप वह स्कूल में अधिक निष्ठापूर्वक पढ़ाई की ओर ध्यान देगा।
अपने बच्चे के साथ रोजाना स्कूल और वहां की पढ़ाई और विभिन्न गतिविधियों के बारे में बातें करें जैसे उसे किस टीचर की पढ़ाई अच्छी लगती है, किस टीचर की पढ़ाई समझ में नहीं आती, कौन सा सब्जेक्ट सबसे अच्छा लगता है, कौन सा सब्जेक्ट सबसे मुश्किल लगता है आदि ? इन सब के बारे में उससे खुलकर चर्चा करें। इससे आप अपने बच्चे के जीवन में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकती हैं और उसे पढ़ाई संबंधित आवश्यक परामर्श दे सकती हैं।
कभी-कभी आपके बच्चे को होमवर्क करने में सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है, और ऐसी स्थिति में अभिभावकों को हमेशा उनकी सहायता करनी चाहिए।
अभिभावकों को अपने बच्चे को होमवर्क करने में मात्र आवश्यक गाइडेंस देनी चाहिए, ना कि पूरा होमवर्क करवा देना चाहिए। इससे बच्चे में स्वतंत्र रूप से होमवर्क करने की आदत विकसित होती है ।
अभिभावकों को अपने बच्चे को टेस्ट या परीक्षा के दौरान उनकी तैयारी करते वक्त गाइड करना चाहिए।
आप उन्हें बता सकती हैं कि उसे अपने मुश्किल लैसन को सुबह के वक्त याद करने चाहिए। उसे एक घंटे की पढ़ाई के बाद 10 से 15 मिनट का ब्रेक लेना चाहिए।
पूरे सेशन के दौरान उसे विभिन्न सबजेक्ट्स के पूरे लैसन की रीडिंग करनी चाहिए, लेकिन परीक्षा एवं टेस्ट से पहले मात्र महत्वपूर्ण पौएंट्स एवं लैसन्स का सारांश रिवाइज़ करने चाहिए।
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