“मैम, मेरा बेटा स्टडीज़ में बिल्कुल रुचि नहीं लेता। दिन भर खेलता चाहता है। पढ़ने के लिए कहो तो रोना झींकना शुरू कर देता है।” अपने पच्चीस वर्षों से अधिक के शिक्षण करियर के दौरान कई बार मैंने अभिभावकों के मुंह से ऐसे जुमले सुने हैं।
मेरे अनुसार इस समस्या का मुख्य कारण है स्वयं अभिभावकों का स्टडीज़ को वह महत्व नहीं देना जो कि वास्तव में दिया जाना चाहिए। जरा सोचिए, क्या आप बच्चे की स्टडीज़ को वह महत्व देती हैं जो कि उसे वाकई में दिया जाना चाहिए?
क्या आप बच्चे को एक कोने में पढ़ने को बैठा स्वयं फोन पर बातें करने में व्यस्त हो जाती हैं या खुद टीवी देखने में व्यस्त हो जाती हैं अथवा उसके पढ़ाई के वक्त संगीत सुनती हैं या फिर किसी घर आए मेहमान से बातचीत में व्यस्त हो जाती हैं या फिर बच्चे की अनिच्छा के बावजूद किसी पारिवारिक समारोह, पिकनिक या मूवी जाने का कार्यक्रम बना लेती हैं।
यदि आप इनमें से कुछ भी करती हैं तो आपके बच्चे की स्टडीज में अरुचि का कारण स्वयं आप हैं और कोई नहीं। तनिक सोचें, इतने सारे डिस्ट्रेक्शन्स में आपके बच्चे का मन आखिर पढ़ाई में कैसे लगेगा? आप अपने रवैये से बच्चे को यह जता रही हैं कि बच्चे की पढ़ाई आपके फोन पर बात करने, आपके टीवी देखने, संगीत सुनने, मेहमान को अटेंड करने या पिकनिक, पारिवारिक समारोह, अथवा मूवी देखने से कम महत्वपूर्ण है। आप ही बताइए कि इस स्थिति में यदि आपका बच्चा मन लगाकर नहीं पढ़ता तो यह किसकी गलती है? इस परिस्थिति में यकीनन इसके लिए आप जिम्मेदार हैं।
बच्चे के पांच छै वर्ष का होते ही आपको उसे यह जताना चाहिए उसकी स्टडीज़ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यदि बच्चे के सामने आप अपना यह रवैया रखती हैं तो यकीन मानिए आपका बच्चा भी स्टडीज़ को उतनी ही गंभीरता से लेगा।
उससे कहिए कि जैसे आप घर का काम और नौकरी करती हैं, पापा का काम ऑफिस जाना है, बिल्कुल उसी तरह से उसका एकमात्र कार्य अच्छी तरह से पढ़ाई करना है, और आप उसमें किसी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं करेंगी।
चलिए अब हम आपको बताते हैं, बच्चे की स्टडीज में रुचि कैसे विकसित की जाए?
पुस्तकों की अद्भुत दुनिया से परिचय करवाएं:
बच्चे के 2 वर्ष का होते ही उसके लिए खिलौनों के साथ रंग बिरंगी किताबें लाना ना भूलें। वह उन्हें पढ़ तो नहीं पाएगा लेकिन पुस्तक में आकर्षक चित्र देखकर वह अपने इर्द-गिर्द की दुनिया को बेहतर जानेगा और समझेगा। चित्र उसकी समझ, शब्दकोश, कल्पनाशीलता और चिंतन क्षमता में वृद्धि करेंगे।
इसी उम्र में उसे पुस्तक में चित्र दिखाते हुए कहानियां पढ़कर सुनाएं। उससे कहानी पर सवाल जवाब करें। इस प्रकार इंटरएक्टिव ढंग से कहानियां पढ़ कर सुनाने से उसका अटेंशन स्पैन बढ़ेगा और यह उसकी एकाग्रता को बढ़ाएगा, जो भविष्य में उसकी एकाग्रचित्तता से स्टडीज़ करने की क्षमता में वृद्धि करेगा। यह उसके श्रवण कौशल (Listening Skill) एवं कल्पनाशीलता में भी इजाफा करेगा।
एक शोध के अनुसार जिन बच्चों को प्रारंभिक बचपन में कहानियां सुनाई जाती हैं वह स्टडीज़ में बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
अतः बच्चे के 2 वर्ष का होते ही उसके इर्द-गिर्द उसकी पहुंच में रंग बिरंगी पुस्तकें रखें जिससे वह जब चाहे उन के पन्ने पलट सके। एक अध्ययन के अनुसार बच्चों को चर्चा करते हुए पुस्तक पढ़कर सुनाने से उनका IQ बढ़ता है।
कहानियों की किताबें आपके बच्चे की सोचने की क्षमता, लॉजिक, संबंधों, स्थितियों, व्यक्तित्व और अपनी दुनिया में अच्छे बुरे की समझ विकसित करता है जो भविष्य में उसकी स्टडीज़ में सहायक सिद्ध होगा।
5-51\2 वर्ष की आयु से उसे किताबें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। उसके सामने आप भी कुछ समय के लिए रोज किताबें पढ़ें। बच्चे अपने बड़ों का अनुकरण करते हैं। इस प्रकार आपको पढ़ता देख वह भी किताबें पढ़ना शुरू करेगा। इस प्रकार रोचक कहानियां पढ़ना उसके लिए एक सुखद खुशनुमा अनुभव बनेगा और भविष्य में वह पाठ्य पुस्तकों को पढ़ने से कभी नहीं कतराएगा और उनमें रुचि लेगा।
बच्चे का दैनिक रूटीन निर्धारित करें:
स्कूल जाने वाले दिन और अवकाश के दिन उसका टाइम टेबल बना दें जिसमें स्टडी टाइम, खेलना और पढ़ने का समय तय हो। यह उन्हें अनुशासित करने के साथ-साथ पढ़ाई को समुचित समय देना सिखाएगा।
स्टडी टाइम में बच्चे के साथ बैठे:
जब आपका बच्चा पढ़ाई करे, उस वक्त आप उसके साथ ही बैठें। उस समय अपने मोबाइल और लैपटॉप से दूर रहने का प्रयास करें। उस समय आप अपना ऑफिस का कार्य या कोई किताब पढ़ सकती हैं। उसे कभी भी अकेले किसी कमरे में बैठकर पढ़ने के लिए ना कहें।दस ग्यारह वर्ष की उम्र तक पढ़ते वक्त हमेशा उसके साथ रहें।
स्टडी टाइम से पहले आधे घंटे के लिए बच्चे को खेलने दें:
अपने बच्चे को स्टडी टाइम से पहले आधे घंटे के लिए खेलने दें। शारीरिक गतिविधि से उसके अध्ययन में फोकस करने की क्षमता बढ़ेगी।
बच्चे को रिवॉर्ड दें:
पांच-छह वर्ष या अधिक के बच्चे का स्टडी टाइम एक से डेढ़ घंटे का रखें। उनसे कहें कि यदि वे निर्धारित अवधि में स्टडी करते हैं तो उन्हें उसके बाद उनकी मनपसंद खाने की चीज या टीवी पर उनकी फेवरेट कार्टून फिल्म देखने या खेलने की अनुमति होगी। रिवार्ड देना उसे पढ़ने के लिए प्रेरित करने के लिए बहुत आवश्यक है। स्टडी खत्म करने के बाद आप उसकी प्रशंसा करते हुए एक जादू की झप्पी भी दे सकती हैं। यह उसे कुछ करने के साथ-साथ उसे स्टडीज़ में अपना शत-प्रतिशत देने के लिए प्रेरित करेगा।
यदि आपका बच्चा किसी विषय में अच्छा प्रदर्शन करे तो उसकी प्रशंसा करें। अपने बच्चे की छोटी से छोटी उपलब्धि की बड़ाई करें।
बच्चे के साथ स्टडीज़ पर चर्चा करें:
रोजाना क्लास में प्रत्येक विषय में क्या पढ़ाया गया, उससे पूछें। इस प्रकार जानकारी लेना उसे कक्षा में अधिक सतर्क एवं सजग रखेगा। यदि उसे किसी विषय में किसी लेसन या कांसेप्ट को समझने में दिक्कत आ रही है तो आप उसे वह समझाने का प्रयास करें। यदि आप उसे नहीं समझा सकतीं तो स्कूल जाकर विषय की शिक्षिका से उस बारे में बात करें। शिक्षिका से नियमित रूप से उसकी स्टडीज़ की प्रगति का लेखा-जोखा लेती रहें और बच्चे से इस बाबत चर्चा करें।
बच्चे को अपनी असफलता से सबक लेना सिखाएं:
यदि आपका बच्चा स्टडीज़ में अच्छा प्रदर्शन नहीं करता है तो उसे डांटने, झिड़कने या उसकी तुलना अन्य बच्चों से करने की अपेक्षा उससे कहें कि असफलता जीवन का हिस्सा है और उनसे निराश होने के बदले हमें उससे सबक लेना चाहिए। नई उर्जा से कड़ी मेहनत कर असफलता को सफलता में बदलने का प्रयास करना चाहिए।
छोटे बच्चे को खेल-खेल में पढ़ाएं:
आप बच्चे के साथ साथ हंसते बोलते ड्रॉइंग करें, स्क्रिबल करें, पढ़ें या सम्स करें। कभी उसे मम्मी का रोल निभाते हुए आपको बच्चे के तौर पर कुछ टास्क देने के लिए कहें। बच्चे खेल-खेल में कठिन कांसेप्ट्स शीघ्र समझ जाते हैं। टेबल याद करते वक्त कभी उससे सुने कभी आप उन्हें दोहराएं और उसे अपनी गलती निकालने के लिए कहें। खेल-खेल में उससे गणित के मौखिक सवाल पूछे। यह इन सब में उसकी रुचि बढ़ाएगा।
सीखने पर जोर दें न कि ग्रेड्स या नंबर्स पर:
यदि आपका बच्चा स्टडीज़ में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहा एवं अच्छे ग्रेड लाने के लिए संघर्षरत है तो उसे बस स्टडी पर फोकस करने का मशवरा दे। बिना डांट डपट किए विभिन्न विषयों में उसकी समस्याओं का पता लगाएं और उन्हें सुलझाएं और अच्छी ग्रेड्स लाने का टेंशन ना लेने की सलाह दें।
स्टडी टाइम के दौरान नियमित अंतराल पर ब्रेक का प्रावधान रखें:
एक अध्ययन के अनुसार स्टडी टाइम के दौरान ब्रेक लेने से फोकस और अटेंशन में सुधार आता है। टेंशन कम होता है और बच्चा पढ़े गए पाठ को अधिक समय तक याद रखता है। अतः छोटे बच्चों को हर 25 से 30 मिनट की पढ़ाई के बाद 8 से 10 मिनट का ब्रेक दें जब वे अपनी मनचाही गतिविधि कर फ्रेश हो सकें।
दैनिक जीवन में विभिन्न विषयों की प्रासंगिकता समझाएं:
अपने बच्चे को अपने पढ़े जाने वाले विषयों के दैनिक जीवन में उपयोग के विषय में बताएं। यह उसकी रुचि उनमें विकसित करेगा। आप उसे बता सकती हैं कि जोड़ना घटाना सीख कर वह चीजों की खरीददारी स्वतंत्र रूप से कर सकता है। उसे विभिन्न चीजें जैसे सड़क, फुटपाथ, ट्रैफिक लाइट्स, बस स्टैंड, नदी, पहाड़, झरना, हवा, फूल पत्तों के बारे में बताएं। जब भी घर से बाहर निकलें, अपने परिवेश की सभी चीजों की चर्चा उससे करें। इस तरह से जब वह इनके विषय में कक्षा में पढ़ेगा, उस विषय में उसकी जिज्ञासा बढ़ेगी और वह उनके बारे में जानने के लिए उनमें रुचि लेगा।
स्टडीज़ में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए बच्चे को निरंतर प्रेरित करते रहें:
स्टडीज़ में रुचि बढ़ाने के लिए उसे प्रेरित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। नौ दस वर्ष की आयु से उसे अपने जीवन में उच्च पद पर स्थित विभिन्न परिचितों, रिश्तेदारों के विषय में बताएं कि उन्हें यह सफलता उनकी स्टडीज़ में कड़ी मेहनत के दम पर मिली है। उसे समझाएं कि स्टडीज़ जीवन में खुशी, संतुष्टि, धन दौलत, नाम, पद, शोहरत दिलवा सकती है।
Pooja Gupta
बहुत बढ़िया आर्टिकल है,helpful
पंकज कुमार
आपने बेतरीन जानकारी शेयर की।
रेणु गुप्ता
बहुत बहुत शुक्रिया।
Rekha singh
Very nice apne bahut ache se samjhaya.kai baar hum bhi ye galtiya karte hai
Yaad karwane ke liye or sujhav dene ke liye shukriya. Thank you
रेणु गुप्ता
बहुत बहुत शुक्रिया।