एक बच्चे के व्यक्तित्व में अच्छी आदतों की भूमिका बेहद अहम होती है। यह एक तथ्य है कि यदि अच्छी आदतों को शत-प्रतिशत अपने जीवन में उतारा जाए तो वे आपका स्वभाव बन जाती हैं। अतः आज मैं अपनी पाठिकाओं को अपने बच्चे में अच्छी आदतों के विकास के कुछ ऐसे तरीके बताने जा रही हूं जिन्हें अपना कर आप अपने बच्चे में निश्चित ही इन स्वस्थ आदतों की सुदृढ़ आधारशिला रख सकती हैं।
इस परिप्रेक्ष्य में एक बात याद रखें, बच्चा परिवार में अपने माता पिता एवं अन्य बड़ों का अनुकरण करने का प्रयास करता है। अतः आप जो कुछ बच्चे को सिखा रही हैं वह सब आपके व्यवहार में झलकना चाहिए। आपकी शख्सियत उन सभी अच्छी आदतों का हुबहू आईना होना चाहिए जिन्हें देखकर बच्चा उन्हें अपनाने के लिए स्वतः प्रेरित महसूस करें ।
माता-पिता को अपने बच्चे को अच्छी आदतों के मूल में छिपे कारण भी बताने चाहिए जिससे कि वह आश्वस्त हो सके कि यह आदतें उसके हित में है और उसे फायदा पहुंचाएगी।
जब भी आपका बच्चा आपकी बताई अच्छी आदतों को ईमानदारी से व्यवहार में लाएं, उसे शाबाशी दें और पुरस्कृत करें। ध्यान रखें उसे पुरस्कार में टॉफी और खिलौने जैसी चीजें ना दें। उसे अपना एक्स्ट्रा समय, एक प्यार की झप्पी, उसकी पसंदीदा कहानी या उसका पसंदीदा खाना बना कर दें। इस प्रकार आपका बच्चा सीखेगा कि असली खुशी चीजों की अपेक्षाकृत अच्छे अनुभवों में निहित हैं।
बच्चे के समक्ष सदैव सकारात्मक, उत्साह पूर्ण और प्रसन्न चित्त रहें। जीवन बहुत कठिन होता है और प्रतिकूल परिस्थितियों में अनेक लोग अपना मानसिक संतुलन खोते हुए डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। अपने बच्चे को भविष्य में इन नेगेटिव प्रवृत्तियों से बचाने के लिए घर में सदैव रिलैक्स्ड एवं खुशनुमा माहौल रखें।
अपने बच्चे की हर समस्या का समाधान आप स्वयं न करें। उसे स्वयं करने दें। वह अगर गिर जाए तो उसे उठाने के लिए दौड़े न जाए। किसी बच्चे से उसकी बहस या झगड़ा हो जाए तो बीच में न पड़ें। उसे स्वयं अपनी समस्या का हल करने दें। इससे उसमें कठिन परिस्थितियों से आसानी से बाहर निकलने का माद्दा आएगा।
अपने बच्चे को बताएं कि कड़ी मेहनत का कोई तोड़ नहीं। उसे समझाएं कि वह जो भी करें उसमें अपना सौ प्रतिशत दे। मात्र अच्छी किस्मत से सफलता नहीं मिलती । सफलता के लिए मजबूत इरादे और कड़ा श्रम आवश्यक है।
हम हर कार्य में अपना सौ प्रतिशत देते हुए उसमें श्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहते हैं। अपने बच्चे को सिखाएं कि जीतने से अधिक महत्वपूर्ण है अपनी हार को गरिमा से स्वीकार करना। इसके लिए बहुत उद्यम एवं हिम्मत की जरूरत होती है। बच्चे को समझाएं कि हारने पर निराश नहीं होना चाहिए वरन सफलता पाने के लिए फिर से पूरे जोश से दोबारा प्रयास करना चाहिए।
अपने बच्चे से हर वक्त टोका टाकी ना करें। बात-बात पर उसे ना झिड़कें, नांही डांटे।
इससे बच्चे का आत्मविश्वास कम होता है। कोई गलती करने पर उसे प्यार से समझाएं। उसकी उपलब्धियों पर प्रशंसा करें। उसे हरदम विश्वास दिलाएं कि आप सदैव उसके साथ हैं। उसे एहसास दिलाएं कि आप उससे बेशर्त प्यार करती हैं। उसे स्वतंत्र रूप से कार्य करने का मौका दें।
कभी भी अपने बच्चे के सामने अपने किसी परिचित अथवा रिश्तेदार की आलोचना करने से बचें। उसे बताएं कि किसी की बुराई करना या किसी पर रौब जमाना लोगों को आहत कर सकता है।
अपने बच्चे के लिए कुछ अपेक्षाएं निर्धारित करें। अपनी कक्षा में प्रथम 10 बच्चों में आना, विभिन्न प्रतियोगिताओं में अच्छा प्रदर्शन करना जैसी अपेक्षाएं उसे अपना बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित करेंगी।
यहां यह ध्यान रखें कि उसे अपनी सामर्थ्य से अच्छा प्रदर्शन करने के लिए उस पर हरगिज़ दबाव न डालें ।
जब भी वह आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरे, उसे शाबाशी अवश्य दें। उसे बता दें कि आप उसको हर क्षेत्र में सफल देखना चाहती हैं।
अपने बच्चे को अपने छोटे भाई या बहन के किसी कार्य का उत्तरदायित्व सौंपें । आप उसे अपनी छोटी बहन के कपड़े रोज तय करने की जिम्मेदारी दे सकती हैं या फिर उसकी फीडिंग बॉटल दूध पीने के बाद धोने की जिम्मेदारी दे सकती हैं।
यदि वह एक जानवर की जिम्मेदारी लेने लायक बड़ा हो तो उसे एक पालतू कुत्ते या बिल्ली की भेंट दें। यह उसे अपनी जिम्मेदारियां निभाने का व्यवहारिक पाठ अवश्य पढ़ाएगा ।
जब भी आपके घर आपके या आपके पति के माता-पिता आएं, उसे उनसे बातचीत करने, उनके काम करने या उनसे अपनी चीजें शेयर करने के लिए बढ़ावा दें।आप भी उनकी सेवा करने से पीछे न रहें। इससे आपके बच्चे में बड़े बुजुर्गों की सेवा करने का जज्बा विकसित होगा।
आप बाहर से घर लौटें तो अपने बच्चे को प्यार की झप्पी देते हुए उसे चूमें। उसके समक्ष अपने वात्सल्य का खुलकर प्रदर्शन करें। यह आपके बच्चे में स्नेह भाव विकसित करेगा।
यदि आप कोई गलती कर बैठती हैं तो उसके लिए उनके सामने क्षमा मांगने में संकोच न करें। आपका यह रवैया उन्हें नम्रता एवं विनय शीलता का सबक सिखाएगा ।
अपने बच्चे को सब का सम्मान करना सिखाए उसे अपने से कम सामाजिक स्थिति के लोगों से भी नम्रता से बोलना सिखाए ।
यदि आपका बच्चा कोई चीज लेना चाहता है तो फौरन उसकी मांग पूरी न कर दें। उसे धैर्य रखते हुए उस चीज को अपने सार्थक प्रयत्नों द्वारा हासिल करने दें।चीज पाने के बाद उसे अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए धन्यवाद कहना सिखाएं।
अपने बच्चे को स्तरीय कहानियां तब तक नियमित रूप से सुनाएं जब तक वह स्वयं पढ़ना शुरू कर दे। आपको भी उसके सामने किताबें पढ़नी चाहिए। इस तरह आपके बच्चे में पढ़ने की आदत पड़ेगी और इससे उसकी कल्पना शक्ति एवं जानकारी बढ़ेगी ।
अपने बच्चे की अपनी निगरानी में नए लोगों से मिलने जुलने की आदत को प्रोत्साहित करें । उसे नए बच्चों से मित्रता करने के लिए उत्साहित करें। इससे उसका सामाजिक कौशल एवं कम्युनिकेशन स्किल (संप्रेषण कौशल) में निखार आएगा।
टीवी, वीडियो गेम एवं कंप्यूटर पर असीमित समय बिताना आपके बच्चे के लिए घातक हो सकता है। इन साधनों द्वारा मनोरंजन की अपेक्षा उसे घर के बाहर जाकर खेलने के लिए प्रोत्साहित करें।
जब भी आपके घर परिचित अथवा रिश्तेदारों के बच्चे आएं, अपने बच्चे को उनसे अपने खिलौने और खाने की चीजें शेयर करने के लिए बढ़ावा दें।
उसे यह भी समझाएं कि उसे किसी के भी साथ अपना रुमाल, टूथब्रश अथवा कंघे जैसी व्यक्तिगत चीजें शेयर नहीं करनी चाहिए।
बचपन से ही अपने बच्चे में घरेलू कार्य करने की आदत डालें। अपने बच्चे को अपने खिलौने समेट कर रखने, अपना कमरा साफ करने और डाइनिंग टेबल से झूठे बर्तन सिंक में रखने जैसे कार्य करवाएं ।
अपने बच्चे को शिष्ट, सभ्य एवं जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए उसे समझाएं कि उसे घर के बाहर भी कुछ नियम मानने होंगे। उसे घर के बाहर सड़क पर कचरा फेंकने, थूकने, पब्लिक बिल्डिंग्स एवं स्मारकों को किसी भी तरह से क्षति पहुंचाने या बस, ट्रेन या हवाई जहाज में लोगों को अपने व्यवहार से परेशान करने जैसे कार्य नहीं करने चाहिए।
उसे घर के बाहर सही व्यवहार करने की आवश्यकता एवं गलत व्यवहार के दुष्परिणामों के विषय में जागरूक करें।
अपने खाली समय में आप अपने घर काम करने वाली सहायिका के बच्चों को पढ़ा कर अपने बच्चे के सामने नि:स्वार्थ सेवा का उदाहरण पेश कर सकती हैं।
उसके या अपने पति अथवा अपने जन्मदिन को किसी अनाथालय या वृद्धाश्रम में मना कर उसे अपनी खुशियां वंचित लोगों के साथ बांटने की सीख दे सकती हैं। बचपन में आत्मसात किए गए जीवन मूल्य जीवन पर्यंत उसके साथ रहेंगे।
आप चाहे कितनी भी व्यस्त क्यों ना हों, अपने बच्चे के जीवन में हर पल शामिल रहने का भरसक प्रयास करें। स्कूल में उसके कैसे संगी साथी हैं, खेल के मैदान में वह किन बच्चों के साथ खेलता है इन बातों की जानकारी रखें। बच्चे के स्कूल से आने के बाद उसे स्कूल की दिन भर की बातें आपसे शेयर करने के लिए प्रोत्साहित करें। इस प्रकार आप बच्चे पर अपनी सतर्क निगाह रख सकती हैं।
जैसे ही आपका बच्चा स्कूल जाना प्रारंभ करे, उसके पढ़ाई, खेलने एवं स्क्रीन का समय निर्धारित कर दें।
उसे खेलने के लिए पर्याप्त समय दें।
खेलने से बच्चे का शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है ।
बचपन में उसे आवश्यकता होने पर थैंक यू, सॉरी, प्लीज और वेलकम जैसे शिष्ट शब्द बोलने के लिए प्रेरित करें।
बचपन से उसे स्तरीय पुस्तकों की नैतिक मूल्यों की शिक्षा देती कहानियां सुनाएं। अच्छे साहित्य से परिचय उसे जीवन में सही व्यवहार, अनुशासन और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने में मदद करेगा।
उसे आप हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं की कहानियां पढ़कर सुनाएं। इससे दोनों भाषाओं पर उसकी पकड़ मजबूत होगी। उसमें पढ़ने की रुचि जागृत होगी और भविष्य में आप की यह आदत उसके जेहन में एक खूबसूरत स्मृति के रूप में संचित रहेगी ।
सदैव ईमानदारी बरतें, खासकर अपने बच्चे के सामने। उसे सदैव हर हालात में सच बोलने के लिए प्रेरित करें।
अपने बच्चे को समय का सही उपयोग, सही समय पर तैयार होने, दैनिक दिनचर्या का पालन करने एवं समय की पाबंदी के बारे में सिखाएं ।
इसके लिए किसी भी अवसर पर कहीं पहुंचने के लिए समय से तैयार होकर अपने बच्चे के सामने अपनी समय निष्ठा का उदाहरण रखें।
जब भी संभव हो, परिचित अथवा अनजान लोगों की मदद करने का कोई मौका न छोड़ें। यह आपके बच्चे में जरूरतमन्द लोगों के प्रति मददगार रवैया विकसित करने में बेहद सहायक सिद्ध होगा ।
बच्चे के साथ रोजाना कुछ समय व्यायाम, पैदल चलना, जौगिंग, तैरना या घर पर योग करने जैसी गतिविधियों में बिताएं। ये गतिविधियां उसे जीवन पर्यंत स्वस्थ, सक्रिय एवं निरोग बने रहने में सहायता करेंगी।
जैसे ही आपका बच्चा चीजें खरीदने लायक जिम्मेदार हो जाए, आप उसे अपने श्रम से कमाए धन के सही उपयोग के विषय में समझाएं। कभी-कभी आप उसे पॉकेट मनी देकर या अपनी गुल्लक में पैसे जमा करके पैसों की बचत की महत्ता भी समझा सकती हैं।
बचपन से ही अपने बच्चे में अध्ययन के प्रति गंभीर रवैया विकसित करें। उसे समझाएं कि जैसे आप नौकरी और घर का कार्य पूरी लगन के साथ करती हैं, उसी तरह उसकी जिम्मेदारी पढ़ाई करना है जिसे उसे पूरी पूरी गंभीरता एवं निष्ठा से निभानी है
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