पारंपरिक तौर पर अमूमन बच्चों की परवरिश में पिता का योगदान आंशिक माना जाता रहा है। गुजरे जमाने में मां चूल्हा चौका संभालती थीं और घर की चहारदीवारी में ही पूरा दिन बिता देती थीं। रोजी रोटी कमाने पिता घर से बाहर निकलते थे। इस परिदृश्य में पिता बच्चों को अधिक समय नहीं दे पाते थे, लेकिन आज जब अधिकतर महिलाएं पुरुषों के समान शिक्षा प्राप्त कर घर से बाहर कदम रख रही हैं, पूरे दिन घर से बाहर रहती हैं, तो इस परिदृश्य में आजके पिता बच्चों की परवरिश समेत घर की अन्य बहुत सी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर लेने लगे हैं ।
यदि आपके पति बेहद व्यस्त रहते हैं और इसके चलते बच्चों के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते हैं तो प्रयत्न करें कि वह जब भी घर में हो, अधिक से अधिक समय अपने बच्चे के साथ बिताएं।
पिता की बच्चे से घनिष्ठता बच्चे के संपूर्ण, बौद्धिक और मनोवैज्ञानिक विकास को प्रभावित करती है। पिता से आत्मीय रिश्ते के बंधन में बंधे बच्चे आत्मविश्वास से परिपूर्ण होते हैं। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, पिता उनके मित्र, पथ प्रदर्शक और गुरु की भूमिका ग्रहण कर लेते हैं।
जब पिता बच्चे की किलकारी का जवाब देते हुए उसके साथ खेलते हैं, बच्चा उनसे घनिष्ट हो जाता है और खुशी और सहजता का एहसास करता है।
अनेक अध्ययनों के अनुसार पिता की शिशु से घनिष्ठता शिशु के ज्ञान संबंधी(cognitive development) विकास पर गहरा प्रभाव डालती है। यह प्रभाव पाँच माह जैसी प्रारंभिक अवस्था तक में भी दिखता है।
नन्हे बच्चे को अपने करीब रखने से शिशु सुरक्षित महसूस करता है।
जब पिता नन्हे बच्चे से बात करते हैं, उन्हें कहानियां पढ़कर सुनाते हैं, और गाने सुनाते हैं, वह पिता की आवाज से सहज महसूस करते हैं।
इसलिए पति को शिशु के साथ अधिक से अधिक समय खेलने के लिए प्रेरित करें।
तनिक बड़े बच्चे अपने पिता के घोड़ा बनने, बॉल से खेलने और किशोर वय में उनके साथ वीडियो गेम खेलने में साझेदारी की अपेक्षा करते हैं। यहीं दोस्ती की मजबूत आधारशिला रखी जाती है।
खेल के दौरान पिता बच्चे को जीवन के कई बेशकीमती पाठ जैसे अपनी चीजों की साझेदारी, जीत और हार का सामना करना सिखाते हैं।
बच्चे के साथ खेलने का उद्देश्य मात्र मनोरंजन नहीं होता। जब नन्हे बच्चे पिता के साथ खेलते हैं, वह अपने परिवेश का परिचय प्राप्त करते हैं और दूसरों के प्रति व्यवहारिकता सीखते हैं। खेल के माध्यम से बच्चे खुशी, निराशा और उत्तेजना का अनुभव करना सीखते है। वे इन भावनाओं को एक सुरक्षित भरोसेमंद और करीबी रिश्ते के संदर्भ में नियंत्रित करना सीखते हैं ।
बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं वह कम अवसाद, भावनात्मक पीड़ा, डर और अपराध भावना के साथ संतुष्ट जीवन जीना सीखते हैं।
पिता के साथ करीबी महसूस करने वाले और उनके साथ विभिन्न गतिविधियां करने वाले बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याएं कम दिखाई देती हैं ।
सुबह सवेरे आप घर की जिम्मेदारियों के चलते बेहद व्यस्त रहती होंगी और उस वक्त स्कूल जाने से पहले बच्चे को नहलाने, स्कूल के लिए तैयार करने, स्कूल बस तक पहुंचाने की जिम्मेदारी आप अपने पति को बखूबी सौंप सकती हैं।
आपके पति बच्चे के साथ ढेरों बातें कर उसे जीवनभर के लिए एक अटूट रिश्ते के बंधन में बांध सकते हैं। उसमें संस्कारों का बीज बो सकते हैं। उसे नई-नई बातें बता कर शिक्षित कर सकते हैं। उससे तनिक हंसी मजाक कर उसका मनोरंजन कर सकते हैं। उससे हल्की फुल्की बातें कर उसे अपना दोस्त बना सकते हैं। उससे कैसा व्यवहार करना चाहिए और कैसा नहीं, यह बताते हुए उसे अनुशासन का पाठ पढ़ा सकते हैं। उसकी जिज्ञासा और कौतूहलपूर्ण प्रश्नों का समुचित उत्तर दे उसका भरोसा जीत सकते हैं। इस का तात्पर्य यह है कि वह उसे अपना थोड़ा सा समय रोजाना दे उससे एक अटूट मधुर रिश्ता जोड़ सकते हैं।
पिता के साथ एक सुदृढ़ भावनात्मक रिश्ता बच्चे के स्वतंत्र और संपूर्ण विकास में एक अति महत्वपूर्ण भूमिका कैसे निभाता है, अब हम इस बात की चर्चा करेंगे ।
बच्चे के लालन-पालन में पिता का सक्रिय योगदान बच्चे के विकास को निम्न तरीकों से प्रभावित करता है:
जीवन में पिता की सक्रिय भागीदारी आपके बच्चे की भावनात्मक इंटेलिजेंस और समस्याएं हल करने की क्षमता में वृद्धि करता है। एक अध्ययन के अनुसार बच्चे के प्रथम वर्ष में उसके साथ सक्रिय जुड़ाव से बच्चे का ज्ञान संबंधी विकास बेहतर होता है। ऐसे बच्चे की जिज्ञासा तीव्र होती है और ऐसे बच्चे में छानबीन की प्रवृत्ति बेहतर होती है। ऐसे बच्चे मौखिक और गणित में निपुण होते हैं और अपराधों की ओर आकर्षित नहीं होते ।
जिन बच्चों को पिता का भरपूर प्यार और उनकी परवाह मिलती है, ऐसे बच्चों के आत्मसम्मान का भाव बेहतर होता है और वह सामान्यतया अधिक खुश और आत्मविश्वास से परिपूर्ण होते हैं। ऐसे बच्चे तनाव, निराशा, कुंठा के प्रति बेहतर सहनशक्ति, नई परिस्थितियों में कम संकोच और भय का प्रदर्शन करते हैं। ऐसे बच्चे दोस्तों के दवाब का सामना बेहतर ढंग से कर पाते हैं। ऐसे बच्चे विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी आवाज उठाते हुए देखे जा सकते हैं।
जिन बच्चों के जीवन में पिता एक सक्रिय भूमिका निभाते हैं, ऐसे पिता अपने बच्चे के आदर्श अथवा रोल मॉडल होते हैं। वे बच्चे को अच्छा व्यवहार करने के लिए प्रेरित करते हैं। परिणामस्वरूप ऐसे बच्चों में व्यवहार संबंधी कम समस्याएं देखने को मिलती हैं। उनका अटेंशन स्पैन लंबा होता है और वह स्वाभाव से सामाजिक होते हैं। ऐसे बच्चे में करुणा और उदारता का भाव होता है और वे अन्य लोगों की आवश्यकताओं और अधिकारों के प्रति सचेत रहते हैं ।
बच्चे अपने जिज्ञासु स्वभाव के चलते मां और पिता से अनवरत अनगिनत प्रश्न करते रहते हैं। माता और पिता उनके प्रश्नों का उत्तर अपने-अपने नज़रिए से देते हैं। इस प्रकार बच्चा विभिन्न दृष्टिकोणों से परिचित होता है। पिता जीवन के प्रति अपना नजरिया और अहम जीवन कौशल की सौगात अपने बच्चे को देते हैं।
एक स्नेही पिता बच्चे को उसके प्रति अपने असीम वात्सल्य भाव का एहसास कराता है। पिता के लाड़ दुलार की छांव तले बच्चे आत्मसम्मान के प्रबल भाव के साथ प्रसन्न और स्वस्थ व व्यक्तित्व में विकसित होते हैं।
जिन बच्चों के पिता उनके जीवन में सक्रिय भूमिका निभाते हैं वे पढ़ाई में भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं। जो पिता पढ़ाई लिखाई में अपने बच्चे की मदद करते हैं, उन बच्चों की पढ़ाई की क्वालिटी में बढ़ोतरी होती है।
पिता अपने बच्चों को नई नई गतिविधियां करने की चुनौती देते हैं। जब बच्चे उनका सामना करते हैं और इन्हें पूरा करने में संघर्ष करते हुए सफलता प्राप्त करते हैं, वह कठिन कार्यों को करने की अपनी काबिलियत पर विश्वास करने लगते हैं ।
तो देखा आपने, एक बच्चे के संपूर्ण विकास की पृष्ठभूमि में पिता की करीबी घनिष्ठता कितनी अहम होती है? तो देर न करें, आज अभी अपने पति को भी यह लेख पढ़ाएं और उन्हें बच्चे के जीवन में एक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए दिए गए सुझावों को अपनाने के लिए भरसक प्रेरित करें ।
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