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बड़े बुजुर्ग जीवन के प्रति अपना खोया उत्साह कैसे जगाएं ?

कल ही हमारी कॉलोनी की महिलाओं की किटी पार्टी थी, जिसमें न जाने कैसे घर के उम्रदराज लोगों का मुद्दा छिड़ गया। नीरा बोल उठी, जब से उसकी सासू मां की मृत्यु हुई है, उसके ससुरजी बेहद दुखी और अवसाद ग्रस्त रहने लगे हैं । वह अपने जीवन से बेहद निराश हो चुके हैं । तभी आभा बोल पड़ी कि उसके ससुरजी को तो रिटायर हुए दस साल बीत चले हैं, लेकिन वह अभी तक अपनी इस स्थिति को खुले मन से स्वीकार नहीं कर पा रहे । हर समय बस यही कहते रहते हैं, कि अब वह परिवार पर एक अनचाहा बोझ बन कर रह गए हैं। एक अर्थहीन, बेमकसद जिंदगी जी रहे हैं।

इस पर मेघा बोली कि उसके घर में भी कमोबेश यही हाल है। उसके ससुरजी भी रिटायरमेंट के पांच साल बाद तक अपने जीवन से संतुष्ट नहीं है। हर समय यही रोना रोते रहते हैं कि घर में किसी को उनकी परवाह नहीं है। सब अपने जीवन में व्यस्त हैं, उनके लिए तो किसी के पास वक्त ही नहीं है। तभी सृष्टि बोल पड़ी, मेरे ससुरजी की मृत्यु के बाद मेरी सासूमां ने घर के सभी कार्य करना लगभग छोड़ दिया है। वह तो दिन दिन भर भगवान की पूजा उपासना में लीन रहती है। ससुरजी की मृत्यु के बाद से बेहद चिड़चिड़ी हो गई हैं। कोई भी बात क्यों ना हो, वह उसे लेकर अपनी असंतुष्टि जाहिर करने से बाज नहीं आतीं। उनके इस रवैए से घर का सुख चैन छिनता जा रहा है।

किटी पार्टी से घर लौट कर भी यही मसला मेरी सोच का केंद्र बिंदु बना रहा। मैं यह सोचने पर मजबूर हो गई कि आखिर जीवन के सांध्य काल में हमारे बड़ों की इस हताशा भरी मानसिकता का कारण क्या है?

बहुत विश्लेषण करने पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची कि बुजुर्गों की इस मानसिकता के पीछे मुख्यतया बड़ी उम्र में एक उद्देश्यहीन जीवन बिताना है।

मैंने गौर किया कि मेरे अपने घर में मेरे ससुर जी के साथ यह समस्या बिल्कुल नहीं है, क्योंकि रिटायरमेंट के बाद भी वह एक समयबद्ध दिनचर्या का पालन करते हुए एक व्यस्त एवं सक्रिय जीवन बिता रहे हैं। अपनी व्यस्तता के चलते वह बेहद खुशहाल हैं।

तो आज हम इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे कि हमारे बड़े बुज़ुर्ग आखिरकार जीवन के प्रति अपना खोया उत्साह वापस कैसे पा सकते हैं?

उम्र जनित परिवर्तित परिस्थितियों को स्वीकारें:

कई बुजुर्ग इस बात को लेकर बेहद परेशान एवं खिन्न रहते हैं कि पहले जहां पूरे घर में उनका एक छत्र साम्राज्य था, उनकी मर्जी के बिना घर में एक पत्ता तक नहीं खड़कता था, वहां आज घर की धुरि उनका विवाहित बेटा और बहू बन चुके हैं। यदि आप अपनी इस सोच से मायूस रहते हैं तो उसे बदलें। अपनी दिनों दिन बढ़ती उम्र और उसके साथ अपनी गृहस्थी में अपनी बदली हुई भूमिका को खुले मन से स्वीकार करें, ना कि इस बात को लेकर मन में अनावश्यक तनाव एवं कुंठा पालें। लचीले बनते हुए नई पीढ़ी को भी अपने जायज पर मनमर्जी का जीवन जीने की स्वतंत्रता दें।

टकराहट से बचें:

अपने दृष्टिकोण में संतुलित बनते हुए नई पीढ़ी को पूरा सम्मान और अधिकार दें। उनके साथ किसी भी मुद्दे पर सप्रयास टकराहट से बचें। आप पाएंगे कि आपके द्वारा दिए गए संस्कारों से पुष्पित, पल्लवित और शिक्षित बेटे बहुएं संतुष्ट मन से आपको भी वही हक और सम्मान दे रहे हैं, जिसकी कि आप अपेक्षा करते हैं।

व्यस्त रहें:

उम्रदराज लोगों की नई पीढ़ी पर निरर्थक बोझ होने की और इससे दुखी होने की मानसिकता का मुख्य कारण है, उनका खाली रहना। तनिक सोचिए, जो पुरुष या महिला सेवानिवृत्ति तक दिन के 9 घंटे अपने ऑफिस की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा रहा था, वह रिटायर होते ही अपने आप को पूरी तरह से किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी से मुक्त पाता है। रिटायरमेंट तक जहां वह समाज की एक कार्यशील व्यस्त इकाई के रूप में एक सार्थक जीवन बिता रहा था, वहीं रिटायर होते ही उससे उसकी सारी जिम्मेदारियां छिन जाती हैं । तो ऐसी स्थिति में उसका कुंठित और निराश होना पूरी तरह से जायज है।

इस परिदृश्य में बड़ी उम्र के लोगों अपने आप को किसी न किसी तरह की अपनी रुचि की गतिविधियों में व्यस्त हो जाना चाहिए।

व्यस्त रहें, पर कैसे?

अब प्रश्न यह उठता है कि बड़े बुजुर्ग आखिर व्यस्त रहें तो कैसे? सेवानिवृत्त पुरुष एवं महिलाएं रिटायरमेंट के पश्चात अपने आपको किसी एनजीओ, अस्पताल, वृद्द्धाश्रम, अनाथालय या अन्य किसी चैरिटेबल संस्थान से स्वयं को संबद्ध कर दिन भर में कुछ घंटे अपनी सुविधा अनुसार वहां अपनी स्वैच्छिक सेवाएं दे सकते हैं। यह व्यस्तता यकीनन उनके जीवन में मकसद और सार्थकता का अर्थ पूर्ण रंग घोलेगी और उन्हें अनूठी संतुष्टि का अहसास देगी।

हॉबी:

जीवन की सांझ में पुरुष एवं महिलाओं के पास भरपूर समय होता है। हर इंसान की कुछ पसंदीदा गतिविधियां या हॉबी होती हैं, जिन्हें वह अपनी किशोरावस्था या प्रारंभिक युवावस्था में पूरे मन से करता है। पर नौकरी अथवा व्यापार, घर गृहस्थी, बच्चों की जिम्मेदारियों में उलझ वह धीरे-धीरे उनसे कटता चला जाता है, और एक स्थिति वह आती है जब वह उन्हें पूरी तरह से भूल जाता है ।
बड़ी आयु में आप अपनी उन गतिविधियों में एक बार फिर से व्यस्त हो सकते हैं, जिन्हें आप अपने विविध उत्तरदायित्यों के मकड़जाल में फंसकर बहुत पहले बिसरा चुके थे।

अपने जीवन को मकसद दें:

बड़ी उम्र में किसी भी परिस्थिति में यह न सोचें कि अब तो आपके जीवन का ढलान है। अब आप कुछ महत्वपूर्ण नहीं कर सकते । अपनी पसंदीदा गतिविधि तलाशें। तनिक सोचें, युवावस्था में आपको क्या करना सबसे अच्छा लगता था?

फिर उसी क्षेत्र में आगे बढ़ें। यदि आप युवावस्था में गायन, पेंटिंग, स्केचिंग, भ्रमण, खाना बनाना, कपड़े सिलना कढ़ाई, शिक्षण, योग, किसी तरह की क्राफ़्ट, लेखन, आदि जैसा कोई भी शौक रखते थे, तो उस शौक को अपना

समय दें। पूरी लगन से उस क्षेत्र में आगे बढ़े और उस में सफलता पाने का प्रयास करें।
नेट पर समान अभिरुचियों के लोगों के अनेक फेस बुक ग्रुप्स हैं जिन्हें आप जॉयेन कर सकते हैं। यदि आपको लेखन या पढ़ना पसंद है तो नेट पर कोई साहित्यिक ग्रुप जॉयेन कर लें जहां आप अपनी कविताएं या कहानियां प्रकाशित कर सकते हैं, या अन्य लोगों की रचनाएं पढ़ सकते हैं । यदि आपको गायन, क्राफ्ट, नृत्य आदि पसंद है, तो आप अपने वीडियो या ऑडियो यूट्यूब पर डाल सकते हैं । आप अपनी कला को अपने पड़ोस के बच्चों को सिखा सकते हैं। पास पड़ोस के बच्चों को पढ़ा सकते हैं। यह व्यस्तता आपको अपने सेवानिवृत्त जीवन की निरर्थकता से मुक्ति दिलाएगी और आपको एक अनोखे उत्साह से लबरेज़ करेगी।

जीवन की साँझ में आपका यह सकारात्मक नजरिया निस्संदेह आपको अनोखी सकारात्मकता से भर देगा और आपका निरर्थक होने का भाव देखते-देखते छूमंतर हो जाएगा

घर की जिम्मेदारियां ओढ़ें:

आप पुरुष हों अथवा महिला, ढलती उम्र में आप घर की जिम्मेदारियां पहले की अपेक्षा कहीं अधिक सक्षमता से निभा सकते हैं।

अमूमन बेटे की शादी के बाद घर की गृहणियां और पुरुष घर चलाने की पूरी पूरी जिम्मेदारी बेटे और बहू के कंधों पर यह सोचते हुए डाल देते हैं, कि उन्होंने तो अपने हिसाब से जिंदगी जी ली, घर चला लिया, अब यह जिम्मेदारी बेटे बहू की है। लेकिन इस परिदृश्य में यह न भूलें कि आज अधिकतर दंपत्ति नौकरी पेशा है। आपके बेटा बहू भी सुबह के घर से निकले, थके हारे शाम को घर पहुंचते होंगे। यदि घर के बुजुर्ग पुरुष एवं महिलाएं घर के विभिन्न कार्यों, जैसे खाना बनाने, बाजार से राशन, दूध, सब्जी, फल लाने, बच्चों को पढ़ाई में भरसक मदद करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों में अपनी सामर्थ्य एवं रुचि के अनुरूप कुछ जिम्मेदारियों का भार अपने ऊपर ले लें, तो इससे आपके बेटा बहू बहुत राहत का अनुभव करेंगे, और यह आपको भी खुशी का अहसास देगा।

स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं:

बढ़ती उम्र में अपने स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान दें, क्योंकि स्वास्थ्य है तो जहान है। पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित भोजन लें। भरपूर नींद लें। नियमित अंतराल पर अपना मेडिकल चेकअप करवाते रहें, जिससे किसी भी बीमारी का निदान प्रारंभिक अवस्था में हो जाए। याद रखें, अच्छे स्वास्थ्य और उत्साह और खुशी के एहसास का मजबूत संबंध है।

आर्थिक रूप से स्वतंत्र रहें:

रिटायरमेंट पर मिला फंड जीवन के अंत तक अपने पास रखें। पैसों से खुशियां नहीं खरीदी नहीं जा सकतीं, यह सत्य है परंतु इसका अभाव किसी को भी दुखी कर सकता है। पैसों की कमी से आप अपनी आवश्यकताओं के लिए अपनी संतान पर निर्भर हो जाएंगे, जो कि आपकी मानसिक खुशी पर कुठाराघात कर सकता है।

अतः ताउम्र उत्साहपूर्ण एवं खुश रहने के लिए किसी पर भी निर्भर ना रहें ।

Renu Gupta

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