इतिहास में कुछ तारीखें समय की धूल में छिप जाती हैं तो कुछ चमकते सूरज की तरह हमेशा चमकती रहती हैं। ऐसी ही एक तारीख है 25 जनवरी 1987। यह तारीख वह है जिसने न केवल दूरदर्शन की दुनिया में, बल्कि पूरे भारत के हर उम्र के दर्शकों को एक सूत्र में बांध दिया था। इस तारीख को शुरू हुआ था रामानन्द सागर का सीरियल ‘रामायण’ जिसके प्रसारण पर एक ओर तो गलियों और सड़कों पर सन्नाटा छा जाता था, वहीं कुछ रेलवे स्टेशन पर तो रेल रामायण देखकर ही आगे बढ़ती थीं। इस सीरियल के मुख्य चरित्र राम और सीता को लोग भगवान की तरह पूजने लगे थे।
अब मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम के रूप में फिल्म कलाकार अरुण गोविल थे जो पहले ही फिल्म जगत के स्थापित कलाकार थे, लेकिन उनके सामने सीता के रूप में एक नयी कलाकार थीं – जिनका नाम दीपिका चिखलिया था।
अब सवाल यह है कि इतने बड़े बैनर के सीरियल में एक स्थापित कलाकार के सामने कम उम्र की एक नयी कलाकार को रोल कैसे मिल गया । तो आपको बताते हैं इस पहले का जवाब क्या है?
दरअसल रामायण सीरियल के निर्देशक रामानन्द सागर 1980 के दशक में फिल्मों के अलावा बच्चों के लिए सीरियल विक्रम-वेताल भी बनाते थे। ऐसे ही एक बार उस सीरियल की शूटिंग रामानन्द जी के बंगले पर हो रही थी। उन दिनों दीपिका उस सीरियल में एक राजकुमारी का रोल निभा रहीं थीं।

एक दिन दीपका ने वहाँ कुछ बच्चों की भीड़ देखी तब कौतूहलवश उन्होनें इस बात का कारण जानना चाहा। तब पता चला कि वहाँ रामानन्दजी के नए सीरियल रामायण के लिए ‘लव-कुश’ के चरित्रों का ऑडिशन चल रहा है। तब दीपिका ने पूछा, कि क्या सीता के रोल के लिए किसी का सिलेक्शन हो गया। तब दीपिका को पता लगा कि अभी सीता के लिए का चयन नहीं हुआ।
दीपिका ने हिम्मत करके रामानन्दजी से सीता के रोल के लिए फोन पर बात करने की कोशिश की। तब रामानन्दजी ने कहा कि उन्हें सीता के रोल के लिए ऐसी कलाकार चाहिए जो जब स्टेज पर भीड़ के साथ भी चले तब सीता के रूप में तुरंत पहचानी जाये। तो दीपिका ने हंसते हुए कहा कि सारे दिन तो मैं आपके स्टेज पर राजकुमारी का मुकुट पहनकर घूमती हूँ, कभी भी देख लीजिये कि क्या मैं सीता जैसी लगती हूँ या नहीं। तब रामानन्द जी ने दीपिका को सीता के रोल के ऑडिशन के लिए बुला लिया।
दीपिका ने रामानन्द जी के स्टुडियो में सीता के रोल के लिए कम से कम चार बार स्क्रीन टेस्ट दिये। आखिरकार दीपिका थक गईं और चिढ़ कर बोलीं कि लेना है तो लो वरना कोई बात नहीं।
आखिरकार रामनान्द सागर को दीपिका का स्क्रीन टेस्ट पसंद आ गया और अंत में दीपिका को सीता का रोल मिल गया।
इसके बाद तो जैसे इतिहास ही रच गया है। तीस वर्ष बाद, आज भी राम-सीता के रूप में अरुण गोविल और दीपिका चीखलिया को ही याद किया जाता है।
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