धर्म और संस्कृति

होली के पीछे छिपा वैज्ञानिक कारण

हिन्दू धर्म के तीज-त्योहारों और रीति-रिवाजों के पीछे अक्सर कोई न कोई वैज्ञानिक कारण छिपा होता है। होली भारत के दो प्रमुख त्योहारों में से एक है, और इसके पीछे भी कई सारे वैज्ञानिक तर्क हैं। आइये, आपको होली के विज्ञान से रूबरू करवाते हैं।

हिन्दू कैलंडर के अंतिम चक्र में आने वाली शिशिर ऋतु की विदाई और ग्रीष्म ऋतु के आगमन पर जिस समारोह का आयोजन किया जाता है उसे होली का त्यौहार कहा जाता है। इस समय जाती हुई सर्दी की कुनकुनी धूप के साथ ग्रीष्म ऋतु की पहचान का ठंडा पानी जब शरीर पर पड़ता है तब प्रत्येक मन उल्लास से भर जाता है। इसके अलावा होली के त्योहार के अन्य तथ्य भी हैं जो इसके वैज्ञानिक महत्व को सिद्ध करते हैं। आइये देखते हैं कि होली का विज्ञान क्या कहता है :

1. आलस और थकान को दूर करें:

जाती हुई सर्दी और दरवाजे पर दस्तक देती गर्मी मौसम में कुछ इस प्रकार का माहौल बना देती है कि शरीर में बिना कारण के ही आलस और थकान महसूस होने लगती है। ऐसे में होली खेलते समय इस्तेमाल किए जाने वाले प्राकृतिक रंग शरीर में नयी स्फूर्ति और उत्साह की भावना भर देते हैं। यह रंग विभिन्न फूलों, फलों और सब्जियों के पत्तों के द्वारा बनाए जाते हैं। इसलिए कभी भी होली खेलने के लिए रासायनिक रंगों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

2. बीमारी को दूर रखें:

आमतौर पर होली का त्यौहार मार्च के महीने में आता है जब सर्दी का असर काफी कम होने लगता है। इस समय क्योंकि गर्मी की शुरुआत भी मानी जाती है, तब इन दो ऋतुओं के मिलने के कारण हवा में काफी बैक्टीरिया पनप जाते हैं। इसलिए यह वह समय है जब अधिकतर लोग कफ संबंधी बीमारियाँ जैसे सर्दी-खांसी और फेफड़ों संबंधी बीमारियों की गिरफ्त में जल्दी आ जाते हैं।

इस समय होली का उत्सव लोगों को अग्नि परिक्रमा का मौका देता है जिसके कारण अप्रत्यक्ष रूप से मिलने वाली गर्मी न केवल सर्दी के असर को खत्म करती है बल्कि शरीर के बैक्टीरिया को भी दूर करके रोग को दूर करने में मदद करती है।

3. संगीत थेरेपी:

विश्व भर के वैज्ञानिक अब संगीत का उपयोग विभिन्न प्रकार की शारीरिक और मानसिक रोगों के उपचार के लिए एक थेरेपी के रूप में करने लगे हैं। लेकिन भारत में होली के त्यौहार में मस्ती में गाये जाने वाले गीत और उसमें साथ देने के लिए बजाए जाने वाले वाध्य शरीर में नयी ऊर्जा का संचार करते हैं।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि ढफली पर गाते फाग, हवा में उड़ता गुलाल और टेसू के फूल से बना पीला पानी जब शरीर पर पड़ता है तब मन से आलस्य और बीमारी के दूर होने के साथ ही तन और मन नए काम के लिए पूरी तरह तैयार हो जाता है।

Charu Dev

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