हिंदू धर्म के अनुसार जो हजारों सालों से इस धरती में विद्यमान हैं, उन्हें ही चिरंजीवी कहा जाता है। आज हम आपको सात चिरंजीवी के बारे में जानकारी देंगे।
अश्वत्थामा महाभारत काल से ही इस धरती पर हैं और वे सात चिरंजीवियों में से एक हैं। ऐसी कथा प्रचलित है कि गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के सिर में अमर मणि है। अश्वत्थामा को कृष्ण के श्राप के कारण ही चिरंजीवी होना पड़ा था, वे इस दुनिया के अंत तक रहेंगे।
राजा बलि महान दानियों में से एक हैं। वे एक महान योद्धा भी थे, जिन्होंने इंद्रलोक पर भी अधिकार कर लिया था। उनके घमंड को खत्म करने के लिए भगवान ने वामन अवतार धारण किया और अपना तीसरा पग उनके माथे पर रख कर उन्हें पाताल पहुंचा दिया।
भगवान परशुराम भी इन महान 7 चिरंजीवियों में से एक हैं। वे हजारों वर्षों से इस धरती पर मौजूद हैं। जमदग्नि ऋषि के पुत्र परशुराम को भगवान शिव ने फरसा दिया था, जिससे उनका नाम परशुराम पड़ गया।
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विभिषण, रावण के छोटे भाई थे। वे भी एक चिरंजीवी हैं। विभिषण ने राम की भक्ति में अपने भाई रावण तक का त्याग कर दिया था।
महर्षि व्यास भी सात महामानवों में से एक हैं। वे यमुना के द्वीप में जन्मे थे और उनका रंग सांवला था। इनके रंग और जन्म स्थान के कारण ही इन्हें कृष्ण द्वेपायन भी कहा जाता है। वे ऋषी पराशर और माता सत्यवती की संतान थे।
अंजनी पुत्र हनुमान को भी अजर अमर रहने का वरदान मिला हुआ है। यह राम के काल में राम भगवान के परम भक्त रहे हैं। हजारों वर्षों बाद वे महाभारत काल में भी नजर आए थे। महाभारत में प्रसंग हैं कि भीम उनकी पूँछ को मार्ग से हटाने के लिए कहते हैं तो हनुमानजी कहते हैं कि तुम ही हटा लो, लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूँछ नहीं हटा पाता है।
कृपाचार्य अश्वथामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। शिकार खेलते हुए शांतनु को दो शिशु प्राप्त हुए थे। उन दोनों का नाम कृपी और कृप रखकर शांतनु ने उनका लालन-पालन किया। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे। कृप और कृपि का जन्म महर्षि गौतम के पुत्र शरद्वान के वीर्य के सरकंडे पर गिरने के कारण हुआ था।
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यह जानकारी हमें हमारी परस्म्पराओं से जोडती है
सातवें चिरंजीवी कृपाचार्य नहीं बल्कि महोबा के सेनापति उदल देव थे जिन्हें गुरु गोरखनाथ ने अमरता का वरदान दिया था