हिन्दू देवी-देवता और उनके वाहनों के पीछे की कहानी बहुत ही रोचक है। धार्मिक ग्रंथो से पता चलता है कि एक बार सभी देवी-देवता पृथ्वी पर विचरण करने आये। विचरण करते-करते वे थक जाते हैं। ऐसे में पृथ्वी के पशु-पक्षी उन्हें, अपना वाहन बनाने का अनुरोध करते हैं। इसप्र कार देवी देवता अपने वाहन का चुनाव करते हैं।
इन समस्त देवी-देवताओं के वाहन हमें जीवन जीने के लिए भिन्न-भिन्न सन्देश भी देते हैं। हमें जीने का सही तरीका समझाते हैं। आज इस लेख में हम आपको उन देवी-देवताओं और उनके वाहनों के नाम बताएँगे।
भगवान शिव का वाहन बैल है, जिसे नंदी के नाम से भी जाना जाता है। शांत, भोले और दयालु स्वभाव वाले शिव भगवान का वाहन नंदी भी उन्ही की भांति शांत और भोले स्वभाव का है। नंदी भगवन शिव के परम भक्त हैं। नंदी का सफ़ेद रंग उनकी स्वच्छता और पवित्रता को दर्शाता है।
माँ दुर्गा का वाहन शेर है, जिस पर वह सवार रहती हैं। इसी कारण उन्हें शेरावाली माता के नाम से भी पुकारा जाता है। माँ दुर्गा का वाहन जंगल का शेर, निडरता और साहस का प्रतीक है।
गणेश जी का वाहन है, चूहा (मूषक)। मूषक को अज्ञानता का प्रतीक माना जाता है, जो बिना किसी चीज़ की परख किए उसे कुतर देता है। गणेश जी जो कि ज्ञान और बुद्धि के देवता हैं, मूषक (अज्ञानता के प्रतीक) पर विराजमान हैं।
अत्यधिक शक्तिशाली, भारी एवं मेहनती जानवर, सफ़ेद हाथी माँ लक्ष्मी जी का वाहन है। माँ लक्ष्मी का एक अन्य वाहन उल्लू है, जो कर्म का बोध कराता है। ऐसा माना जाता है कि माँ लक्ष्मी हर वर्ष कार्तिक आमावश्या को पृथ्वी पर विचरण करने आती हैं। अँधेरे में उल्लू ने उन्हें सबसे पहले देखा और खुद को अपना वाहन बनाने का अनुरोध किया। तब से उल्लू भी उनका वाहन बन गया।
श्वेत हंस, माँ सरस्वती जी का वाहन है। गुण और अवगुण की सही पहचान करने वाला यह श्वेत हंस चालक प्रवृति का प्राणी माना जाता है। गुण और अवगुण की पहचान ज्ञान के बिना संभव नहीं।
भगवान शिव के पुत्र एवं देवताओं के सेनापति कार्तिकेय, मोर पर सवार होकर युद्ध में विजय प्राप्त करते हैं। मोर चंचलता का प्रतीक है। कार्तिकेय द्वारा इन्हे अपना वाहन बनाना, चंचल रूपी मन को वाश में करने का प्रतीक है।
चित्र श्रेय: मेजिक मंत्र – यूट्यूब चेननल
पक्षीराज गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन हैं। पक्षीराज गरुड़ दूरदर्शी हैं, जिनके नाम पर गरुड़ पुराण लिखी गई। गरुड़ राजा के अलावा आदिशेष (एक पांच सिरों वाला नाग) को भी भगवान विष्णु का वाहन माना जाता है।
माँ गंगा का वाहन मगरमच्छ है। मगरमच्छ एक प्रतीक है, जिसके अनुसार जल में रहने वाला हर प्राणी परिस्थिक तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। हमें जल में रहने वाले हर प्राणी की रक्षा करनी चाहिए।
भगवान इंद्र देव का वाहन श्वेत हाथी है। जो बलशालिता का प्रतीक होता है। इसे इंद्र कुंजर के नाम से भी जाना जाता है। सामन्य हाथी कि मुकाबले इन्हे अधिक समर्थ माना जाता है। इसलिए कुछ धार्मिक ग्रंथो में इसके दाँत की संख्या चार और सूंड की संख्या पांच बताई गयी हैं।
मृत्यु के देवता यमराज, भैंसे पर सवार रहते हैं। भैंसे का झुंड किसी प्रकार के मुश्किलों का सामना मिल कर करते हैं। इस से हमें यह संदेश मिलता है कि हमें भी अपने परिवार वालों और संबंधियों के साथ मिल कर रहना चाहिए। इससे हम किसी भी मुश्किल का सामना कर पाएंगे।
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