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हिन्दू धर्म की ४ कुप्रथाएँ जिनको पूरी तरह से बंद कर दिया जाना चाहिए

हिंदू धर्म में कई ऐसी परम्पराएँ और प्रथाएँ हैं जो सदियों से चली आ रही हैं। हम यह तो नहीं जानते कि इनका निर्माण किसने और कब किया था परंतु यह जरूर जानते हैं कि इनमें से कुछ प्रथाएं ऐसी भी है जो निश्चित ही पूर्व जमाने में पूर्व काल में नहीं होती होंगी ।कुछ ऐसी प्रथाएँ भी हैं जो इंसान के मानव होने पर ही उंगली उठाती हैं। धर्म के नाम पर क्या अमानवीय कृत्य को अंजाम देना सही है ।अपनी मनमानी चलाने के लिए अगर उसे प्रथा का नाम दे दिया जाए, तो यह कहाँ तक उचित है. प्रथाएँ और परम्पराएँ तो हमें आपस में जोड़े रखने के लिए और हमें सही राह दिखाने के लिए होती है ।ना कि हमसे कोई गलत कृत्य करवाने के लिए। हम पीढ़ी-दर-पीढ़ी कुछ ऐसी परम्पराएँ आगे बढ़ा रहे हैं जिससे कि हमारे समाज को क्षति पहुंच रही है. आज कुछ ऐसी ही कुप्रथाओं के बारे में हम जानेंगे जिसेे पूरी तरह बंद कर देना ही हमारे, हमारे समाज और इस संसार के हित में होगा।

कुछ अज्ञान लोग इन प्रथाओं की आड़ लेकर अपनी मनमानी करते हैं और इसका पुष्टिकरण करने के लिए वेदों की उलाहना देते लेकिन किसी भी धर्म शास्त्रीय वेद में कोई भी ऐसी बात नहीं लिखी है जो किसी को भी हानि पहुंचाए या उससे समाज में नकारात्मकता फैले।

कुछ ऐसी ही कुप्रथाओं के बारे में यहाँ दिया जा रहा है जिसे जल्द से जल्द बंद कर देना चाहिए।

दहेज प्रथा 

इस प्रथा  में लड़की के विवाह के दौरान उसके माता पिता को वर पक्ष के लोगों को अनमोल तोहफे, धन ज़मीन जायदाद जैसी चीज़े देनी होती है। वर पक्ष के लोग अपने बेटे के लिए मोलभाव करते हैं ।और अगर वधू पक्ष की आर्थिक परिस्थिति ठीक नहीं भी हो, तो भी उन्हें  यह सब देना ही पड़ता है ।अगर वह यह देने में असमर्थ हैं, तो उनकी कन्या का विवाह या तो बहुत देरी से होता है या फिर वह कुंवारी रह जाती है। चाहे मध्यम वर्गीय लोग हो या उच्च वर्गीय सभी इस प्रथा का पालन करते आ रहे हैं, जो कि गलत है ।जो माता पिता अपनी बेटी को दहेज नहीं दे पाते ,उसे ससुराल में दहेज के लिए  प्रताड़ित किया जाता है ।इसी वजह से कितनी ही नवविवाहिताओं ने आत्महत्या कर ली ,कई घरेलू हिंसा की शिकार हो गई ।दहेज़ देने के डर से कई मां बाप कन्या भ्रूण हत्या जैसे घोर पाप को भी अंजाम दे देते है।

 बली प्रथा

जानवरों की बलि देने की प्रथा भी एक कुप्रथाओं में शामिल है, जब भी किसी के घर में कोई शुभप्रसंग होता है या कोई मानता रखी जाती है या किसी के घर बेटा पैदा होता है ,तो वह भगवान को कोई भी पशुओं की बलि चढ़ाते हैं ।शास्त्रों के ज्ञान के अनुसार अगर देखा जाए तो किसी भी शास्त्र में ऐसा नहीं लिखा गया है, कि आप मासूम व असहाय जानवरों की बलि चढ़ाए।

जाती भेदभाव

ईश्वर ने जब इंसान की संरचना की थी तो उन्होंने कोई भेदभाव नहीं किया था. यह हम  इंसान ही हैं, जो इस धरती पर आने के बाद एक दूसरे से भेदभाव करते हैं ।चाहे वह वर्ण के आधार पर हो या जाति के आधार पर, जातिगत भेदभाव करना बहुत गलत है ।इसके लिए कई संवैधानिक प्रावधान भी हैं. लेकिन आज भी लोगों के मन में से जातिगत भेदभाव नहीं जा पाया। वह ऊंची जाति और नीची जाति मैं फर्क समझते हैं ।यह कुप्रथा को बंद कर देना ही हमारे समाज के लिए कल्याणकारी साबित होगा।

बाल विवाह

उचित उम्र से पहले ही शादी करा देना बाल विवाह होता है ।कानून में यह एक दंडनीय अपराध है. परंतु आज भी कई मां-बाप ऐसे हैं जो, अपनी बेटी का विवाह 18 वर्ष की उम्र से पहले ही करा देते हैं ।जिसकी वजह से उसे उसकी आने वाली जिंदगी में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ।जैसे की घरेलू हिंसा, स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं आदि। सही समय पर उचित शिक्षा देने के बाद ही लड़की का विवाह किया जाना चाहिए. जिससे कि उसे अपने आने वाले जीवन में परेशानियों का सामना ना करना पड़े ।

Jasvinder Kaur Reen

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