“फिर से तुम मेरे लिए ब्रांडेड शर्ट्स ले आई, और वह भी पाँच,पाँच । बहुत फिजूलखर्ची करती हो मीता तुम भी। कितनी बार कहा है अब रिटायर हो गया हूँ, लेकिन तुम पर कोई असर ही नहीं होता।”
“अरे बाबा, वहाँ सेल भी थी, तीन पर दो फ्री। इस लिए ले आई।”
“तुम भी न, पैसा खर्च करना तो कोई तुमसे सीखे।”
“मुझे तो शॉपिंग में बहुत मजा आता है। जरा अपनी बात भी तो करो, तुम्हें भी तो शेयर्स खरीदने का चस्का है। इधर बैंक में रुपया आया नहीं, उधर तुमने शेयर्स खरीदे”।
“इन शेयरों के दम पर रिटायरमेंट के बाद भी इतने गहने और साड़ियाँ खरीद लेती हो।
एक मैं ही हूँ जो तुम्हारे ऊल जलूल खर्चे झेल रहा हूँ।”
“तो तुम मुझे झेल रहे हो?”
“मेरा ही जिगर है जो तुम्हारे अनाप शनाप खर्चों पर उफ नहीं करता। और कोई होता तो कब का मैदान छोड़ कर भाग गया होता।”
“अरे तो तुम भी चले जाओ न, किस ने रोका है? यहाँ किसी को किसी की परवाह कब है?”अरे चला जाऊंगा, चला जाऊंगा, तुमसे, तुम्हारी रोज की चाँय चाँय से तो जान छूटेगी।”
बगल के फ्लैट में रहने वाले शर्मा दंपत्ति की बेवक्त की महाभारत सुन कर बहुत मजा आ रहा था। दोनों योद्धा ताल ठोक कर मैदान में डटे हुए थे। अब देखें, ऊंट किस करवट बैठता है, मन ही मन मुसकुराते हुए मेरे भीतर की खोजी, लंबी नाक वाली औरत ने सोचा था।
“चलो, चलो, ज्यादा गरजो मत, ब्लड प्रैशर बढ़ जाएगा। अजी सुनते हो मौसम बहुत सुहाना हो रहा है, लगता है बारिश आएगी आज। कुछ चटपटा, पकौड़े वकौड़े बना लूँ? “
“अरे बिलकुल बना लो, नेकी और पूछ पूछ”।
दोनों खिलखिला कर हंस दिये। तूफान आया और गुजर गया, लम्हों की रेत पर प्यार के निशान छोड़ते हुए।
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