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गुरु पूर्णिमा का महत्व

शास्त्रों के ज्ञान के अनुसार अगर देखा जाए तो गुरु शब्द दो शब्दों को जोड़कर बनाया गया है जिसमें गु का मतलब होता है अज्ञानता व् अंधकार और रू का मतलब होता है निरोधक। अगर दोनों को जोड़ दिया जाए तो इसका अर्थ होता है अंधकार और अज्ञानता को दूर करने वाला।

 

भारत में गुरु शिष्य परंपरा सदियो ही पुरानी है और सिख धर्म में तो सबसे ज्यादा महत्व उनके दसों गुरुओं को दिया जाता है।

जो हमें ज्ञान का प्रकाश दे वह गुरु है, जो हमें अंधकार से दूर ले जाए वह गुरु है, जो निराशा में भी साहस भर दे वह गुरु है.  गुरु की महिमा का बखान शायद ही कोई शब्दों में कर पाया होगा . शास्त्रों में तो गुरु को ईस्ट ईश्वर के समान माना गया है और ईश्वर की हमेशा पूजा अर्चना की जाती है उनका सम्मान किया जाता है ऐसा ही  पर्व भारतवर्ष में भी मनाया जाता है जिसे हम सब गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के नाम से जानते हैं।

 

भारत में कई विद्वान गुरु हुए हैं। चाहे फिर वो चाणक्य हो या आर्यभट्ट। ऐसे ही एक महान गुरु हुए हैं महर्षि वेदव्यास। जिन्होंने महाभारत , 18 पुराण ,18 उपपुराण एवं चार वेदों की रचना की। उनका  जन्म आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हुआ था उन्हीं के सम्मान में आषाढ़ की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है।

गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह से ही अपने इष्ट या गुरु की आराधना की जाती है मंत्र उच्चारण किया जाता है वेद पाठ किया जाता है और अपने गुरु का सम्मान किया जाता है।

 

गुरु पूर्णिमा का महत्व

गुरु पूर्णिमा को सबसे उच्च स्थान दिया गया है. अगर देखा जाए तो आषाढ़ के मांस में पूरा आसमान बादलों से घिरा होता है और इसी कारण पूर्णिमा के दिन भी चंद्र अपना पूरा प्रकाश फैला नहीं पाता. परंतु फिर भी गुरु पूर्णिमा को ही सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है. अगर चंद्र प्रकाश को ताक पर रखकर देखा जाए तो शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र अपने पूरे सौंदर्य के साथ अपनी चांदनी को पूरे आकाश में बिखरा देता है इस प्रकार तो शरद पूर्णिमा को ही श्रेष्ठ कहा जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं  है।

गुरु पूर्णिमा का चांद उस गुरु की तरह है जो अपना प्रकाश पूरे विश्व में फैला देना चाहता है ।इस ज्ञान की चांदनी से पूरे जग के अंधकार को रोशन करना चाहता है ।और घिरे हुए काले बादल शिष्यों की तरह है, क्योंकि शिष्य तो कई प्रकार के हो सकते हैं चाहे वह अंधकार में डूबे हुए हो, यह हताशा से भरे हुए। आषाढ़ की पूर्णिमा का चांद इसी तरह अज्ञानता से भरे हुए बादलों से घिरा हुआ होता है ।और उस चांद का एकमात्र कर्तव्य यह है कि वह अपनी रोशनी उन सभी ज्ञान  दे इसलिए गुरु पूर्णिमा को ही श्रेष्ठ माना जाता है।

https://dusbus.com/hi/nag-panchami-kyu-kab-manai-jati-2017/

 

Jasvinder Kaur Reen

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