हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में गरूड़ पुराण का एक विशिष्ट स्थान है। इस पुराण के देव भगवान विष्णु है, इसलिए यह विष्णुू पुराण भी कहा जाता है। इसमें भगवान विष्णु और पक्षीराज गरूड़ के मध्य हुआ संवाद वर्णित है। बाद में, गरूड़ के द्वारा यह ऋषि कश्यप को सुनाया गया, जिन्होंने इसे संकलित किया। इसमें लगभग 19,000 हजार श्लोकों का संग्रह है, जिन्हें दो भाग ‘पूर्व खंड’ व ‘उत्तर खंड’ में विभाजित किया गया है। इस पुराण को सात्त्विक पुराण की श्रेणी में रख गया है। समय के साथ इसमें कई संशोधन हुए और जो नवीनतम संस्मरण आज उपलब्ध है, उसे ऋषि वेदव्याहस द्वारा संशोधित किया गया था।
गरूड़ पुराण में भगवान विष्णु, के विभिन्न अवतारों, ब्रम्हांड की उत्पत्ति व भौगोलिक संरचना, सृष्टि व देवी-देवताओं की वंशावली आदि के बारे में बताया गया है, परंतु मुख्य रूप से मृत्यु के बाद आत्मा की दशा का वर्णन है। इसके साथ विभिन्न प्रकार की तप-तपस्या, पूजन विधि-विधान, पापों के प्रायश्चित्त एवं दिव्य व पवित्र मंत्रों के बारें में विस्तार से बताया गया है। धर्म शास्त्र व धर्म नीति, ज्योतिष शास्त्र, पतिव्रत धर्म महत्व, अष्टांग योग, आत्माशुद्धि आदि का उल्लेख मिलता है।
गरूड़ पुराण की विशिष्टता इस तथ्य में है, कि केवल इस पवित्र पुराण में मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति, पाप-पुण्य के अनुसार आत्मा की दशा व पुनर्जन्म के बारे में वर्णन मिलता है। इस पुराण में यमलोक, नरक लोक, प्रेत लोक व प्रेत योनि का विवरण भी स्पष्ट रूप से किया गया है। इसमें आत्मा् के जन्म-मरण के बंधन, कर्म सिद्वांत, कर्म फल व अशुभ कर्म या पाप के दंड का विस्तृत उल्लेख है। इसमें अंतिम संस्कान की विधि व मृत्यु के उपरांत एक वर्ष तक किये जाने वाले विभिन्न अनुष्ठा न व दान-दक्षिणा के फल का वर्णन भी है।
गरूड़ पुराण में मृत्यु देव ‘यमराज’ द्वारा मनुष्य को अशुभ कर्म या पाप के लिए दिये जाने वाले भंयकर, कष्टयदायक व पीड़ायुक्त दंड का विवरण विस्तार से है। इसमें वर्णित है, कि नरक लोक में पापी मनुष्य को एक क्षण मात्र के लिए भी दुख से राहत नहीं मिलती है। वहाँ की तपती धरती पर पैर रखते ही जल जाते है । पेड़ों के पत्ते किसी तलवार की तरह शरीर को छिन्न-भिन्न कर देतें है। अत्य धिक भूख-प्यास लगने पर भी न तो अन्न का एक दाना मिलता है और न ही पानी की एक बूंद उपलब्ध होती है। अपने सुख के लिए जीव-जंतुओं पर अत्याचार करने वालों को गर्म तेल में तला जाता है। इस प्रकार अलग-अलग पापों के लिए निर्धारित दंडों का वर्णन किया गया है।
हिंदू परंपरा के अनुसार, परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के उपरांत तेरह दिनों तक गरूड़ पुराण का वाचन करना बताया गया है। मान्यता है, कि इसे पढ़ने व सुनने वालों को असीम पुण्यार्जन होता व दिवंगत आत्मा को शांति व मुक्ति प्राप्त होती है। सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है, तथा इस जन्म व अगले जन्म में सुख की प्राप्ति होती है। माना जाता है, कि गरूड़ पुराण के अध्ययन से ब्राह्मण को विद्या, क्षत्रिय को वीरता व वैश्य को धन की प्राप्ति होती है।
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