गणेश वंदना के साथ कोई भी काम शुरू हो, यह परंपरा आदिकाल से हर हिन्दू घर में चली आ रही है। विधन्हारता, विध्न्विनाशक, मंगल मूर्ति आदि नामों से प्रसिद्ध गणेश भगवान की पूजा सिर्फ घरों में ही नहीं बल्कि पूरे देश में एक राष्ट्रीय पर्व की तरह की जाती है।
गणेश चतुर्थी की कथा
शिव-पार्वती के पुत्र गणेश जन्म की कथा वर्णन से पता चलता है की गणेश का जन्म न होकर निर्माण बल्कि पार्वती जी की शरीर के मैल से हुआ था। स्नान पूर्व गणेश को अपने रक्षक के रूप में बैठा कर वो चली गईं और शिव जी इस बात से अनभिज्ञ थे। पार्वती से मिलने में गणेश को अपना विरोधी मानकर उनका सिर काटकर अपने रास्ते से हटा दिया।
जब वास्तविकता का ज्ञान हुआ तो अपने गणो को उन्होंने आदेश दिया की उस पुत्र का सिर लाओ जिसके ओर उसकी माता की पीठ हो। शिव-गणो को एक हाथी का पुत्र जब इस दशा में मिला तो वो उसका सिर ही ले आए और शिव जी ने हाथी का सिर उस बालक के सिर पर लगाकर बालक को पुनर्जीवित कर दिया। यह घटना भाद्रमास मास की चतुर्थी को हुई थी इसलिए इसी को गणेश जी का जन्म मानकर इस तिथि को गणेश चतुर्थी माना जाता है।
सबसे अलग शरीर होने के कारण सभी देवताओं ने गणेश को सभी देवताओं का अग्र्ज़ बना दिया और तब से गणेश वंदना हर पूजा से पहले करी जाती है।
गणेश चतुर्थी: कब, क्यूँ और कैसे
सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधने वाला एकमात्र उत्सव, गणेश चतुर्थी, राष्ट्रीय एकता का ज्वलंत प्रतीक है। इतिहास की डोर थाम करे देखें तो पता चलता है की गणेश चतुर्थी का पूजन चालुक्य सातवाहन और राशट्रूक्ता शासनकाल से यह पूजन चलता आ रहा है। स्पष्ट विवरण तो छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल से मिलता है जब उन्होंने राष्ट्रीय संस्कृति और एकता को बढ़ावा देने के लिए गणेश वंदना का पूजन शुरू किया था।
पेशवा साम्राज्य के पतन के साथ गणेश पूजन एक राष्ट्रीय पर्व के स्थान पर व्यक्तिगत और पारिवारिक उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। लोकमान्य तिलक ने 1857 के असफल क्रांति के बाद देश को एक सूत्र में बांधने के उद्देश्य से यह उत्सव घरों के चारदीवारी से बाहर निकालकर सामाजिक और राष्ट्रीय पर्व के रूप में पुनः स्थापित किया। सामाजिक व्यवस्था में फैली वर्ण-विभाजन की बुराइयों को गणेश पूजा के माध्यम से दूर करने का तिलक का प्रयास रंग लाया और 1893 से गणेश पूजा एक राष्ट्रीय रूप में विधिवत मनाई जाने लगी जिसमें समाज के हर वर्ग के व्यक्ति ने बिना किसी भेद-भाव के हिस्सा लिया। दस दिन तक चलने वाली गणेश-पूजा, सामाजिक एकता के इस प्रयास ने अँग्रेजी शासन की जड़ों को हिलाने का काम बखूबी किया।
यह परंपरा तब से आज तक निर्बाध गति से चली आ रही है। दस दिनों तक पूजा के पंडाल में सभी जाती, धर्म और पेशे के व्यक्ति शामिल होते चले आ रहे हैं और कला के हर रूप यानि संगीत, नाटक और कविता के माध्यम से सामाजिक बुराइयों और राजनैतिक विसंगतियों का सफल मंचन किया जाता है। दस दिन तक गणेशमय वातावरण, गणेश प्रतिमा के विसर्जन के साथ ही चरम सीमा तक पहुँच कर शांत होता है।
भोगोलिक दूरियों के सिमट जाने के कारण अब गणेश उत्सव भी देश ही नहीं विदेशों में भी उसी शान से मनाया जाता है।
प्रातिक्रिया दे