विश्व का प्राचीनतम धर्म और सभ्यता, हिन्दू धर्म माना जाता है और भारत में इस सभ्यता और संस्कृति के आरंभिक चिन्ह विद्यमान हैं। संसार का तीसरा सबसे बड़ा धर्म और इसके अनुयायियों की सबसे अधिक संख्या भारत में ही है। लेकिन एक बहुत विरोधात्मक तथ्य, जिससे आप शायद अंजान हैं, कि विश्व का सबसे बड़ा और प्राचीनतम मंदिर भारत में नहीं है। यह सही है, कि भारत भूमि के हर दूसरे पग पर एक मंदिर है, लेकिन यह भी सत्य है, कि विश्व का सबसे बड़ा मंदिर भारत में नहीं है। तो आइये, इस तथ्य की गहराई में जाकर, सत्यता की परख करते हैं:
इतिहास के पन्ने पलटने से पता लगता है, कि रामायण और महाभारत काल में मंदिर और देव पूजा का चलन था। इससे पूर्व वैदिक संस्कृति में ऋषि-मुनि आश्रम व्यवस्था के अंतर्गत आश्रम या फिर जंगलों में हवन करके पूजा का काम करते थे। लेकिन राम-सीता का विवाह पूर्व गौरी पूजन और श्रीकृष्ण-रुक्मणी तथा अर्जुन-सुभद्रा का मंदिर पूजन के समय अपहरण कांड, उस समय मंदिरों के अस्तित्व का ठोस प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। लेकिन कालांतर में इन मंदिरों के भग्नावशेष भी शेष नहीं हैं।
इतिहास इस बात का साक्षी है की बौद्ध, गुप्तकाल आदि को हिन्दू मंदिरों का स्वर्णिम काल कहा जाता है। लेकिन विदेशी आक्रांता जिनमें मुस्लिम शासक प्रमुख रहे हैं, हिन्दू मंदिरों के ध्वस्त कर्ता सिद्ध हुए । एशिया के कुछ देश जिनमें हिन्दू और गैर हिन्दू दोनों संस्कृतियाँ शामिल हैं,अब हिन्दू मंदिरों के स्वामी नज़र आते हैं। इनमें से एक है कंबोडिया जो दक्षिणी-पूर्व एशिया का एक गैर हिन्दू देश है, यहाँ हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा और सबसे प्राचीन मंदिर शेष बचा है।
आधुनिक काल का अंकोरवाट, पुरातन काल का ‘यशोधरपुर’ था जिसकी स्थापना यशोवर्मा ने करी थी। इसी शहर में सम्राट राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने 1112-53 ई॰ में सबसे बड़े विष्णु मंदिर की स्थापना करी थी।
मंदिर के निर्माण का कार्य उनके भांजे धर्णिंद्र्वर्मन ने पूरा किया था। सूर्यवर्मन के पूर्ववर्ती शासकों ने शिव मंदिरों की स्थापना पर अपनी कला और धन का प्रयोग किया था। लेकिन सूर्यवर्मन ने विष्णु मंदिर के निर्माण का बीड़ा उठाया और वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने के तौर पर इस मंदिर का निर्माण किया। सिमरीप शहर में मीकंग नदी के किनारे 1 स्क्वेयर मिल क्षेत्रफल में फैले इस मंदिर का निर्माण एक 700 फीट चौड़ी खाई के बीच में करवाया गया। इस खाई को पार करने के लिए मंदिर के पश्चिमी ओर एक पुल बनवाया गया है, जिसके एक छोर पर मंदिर में प्रवेश के लिए 1000 फुट चौड़ा दरवाजा है, जो ज़मीन से सात फुट ऊपर उठा हुआ है । गुप्तवंश की कला का प्रदर्शन करते हुए मंदिर की दीवारों पर रामायण के विभिन्न प्रसंग अंकित किए गए हैं।
स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण देखने को मिलता है. यह मंदिर मिश्र और मेक्सिको के पिरामिडों के संरचना के आधार पर चबूतरों और खंडों पर बना है। इस मंदिर में तीन खंड हैं और अंतिम खंड में ही मूल मंदिर का निर्माण किया गया है। हर खंड में आठ गुंबद हैं। इस मंदिर का मुख्य शिखर 64 मीटर ऊंचा है, जबकि शेष आठ शिखरों की ऊंचाई 54 मीटर है।
विश्व की अनुपम धरोहर के रूप में इस मंदिर को कंबोडिया के राष्ट्रीय ध्वज में स्थान दिया गया है।
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Jo shuru me hota hai vo ant me hota hai shuru bhi hinduo se bhi se hua tha or last me bhi sare hidu sannatan dharm ko manege pr is me bhut hi samay lagega