“फूल वालों की सैर” दिल्ली में मनाया जाने वाला एक अद्भुत त्यौहार है, जिसे हिन्दू और मुसलमान दोनों एक समान श्रद्धा और प्यार से मनाते हैं। “फूल वालों की सैर” का अर्थ है “फूल वालों का मेला” जिसे दिल्ली के महरौली नामक स्थान पर हर साल मनाया जाता है। इस पर्व को सितम्बर महीने में तीन दिन तक मनाया जाता है। इस त्यौहार की ख़ास, बात है इसका धर्मनिरपेक्ष होना, इस में दोनों धर्मों की संस्कृतिओं का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है।
क्यों मनाया जाता है यह पर्व?
इस पर्व को मनाने का भी अपना महत्व और एक कहानी है। इस का सम्बन्ध मुगल काल के बादशाह बहादुर शाह ज़फर के भाई मिर्ज़ा जहांगीर से है।
उस समय मुगल सम्राज्य डूब रहा था और अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी का बोलबाला था। एक बार बहादुर शाह ज़फर के दरबार में अंग्रेजों के प्रतिनिधि रेज़ीडेंट सैटिन और मिर्ज़ा जहांगीर के बीच में कहासुनी हो गयी और मिर्ज़ा जहांगीर ने सैटिन पर गोली चला दी, जिसमे सैटिन का दोस्त मारा गया। क्रोधित हो कर ईस्ट इंडिया कंपनी ने मिर्जा जहांगीर को सजा सुनाई और इलाहाबाद भेज दिया।
मिर्जा जहांगीर की माँ बेगम मुमताज़ अपने बेटे से बहुत प्यार करती थी और उन्हें इलाहबाद भेजे जाने के बाद उनका रो रो कर बुरा हाल था। उस समय मुमताज़ ने एक मन्नत मांगी कि अगर उनके बेटे की सज़ा को माफ़ कर दिया जायेगा, तो वो सूफी संत ख्वाज़ा बख़्तियार काकी के दर पर फूलों की चादर चढ़ायेगी। उनकी यह दुआ बहुत जल्द ही कबुल हुई। अंग्रेजों और मुग़लों में सुलह हो गयी और मिर्ज़ा को रिहा कर दिया गया। इस खबर से खुश हो कर दिल्ली के महरौली में बहुत बड़ा त्यौहार मनाया गया जिसमे हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के सब लोग शामिल हुए। सूफी संत ख्वाज़ा बख़्तियार काकी के साथ साथ हिन्दू माता योगमाया के मंदिर को भी फूलों से सजाया गया। इस बात से खुश हो बादशाह बहादुर शाह ज़फर ने इसे हर साल मनाये जाने की घोषणा कर दी इसके बाद इस त्यौहार को हर साल मनाया जाने लगा और यही परम्परा आज भी ऐसे ही क़ायम है।हालाँकि सन 1942 में इस पर बैन लगा दिया गया था, लेकिन 1961 इसे फिर से शुरू किया गया।
क्या होता है इस त्यौहार में
‘फूल वालों की सैर” त्यौहार में फूलों की बहुत अहमियत है, इसमें तरह तरह के फूलों को सजाया जाता है, जिन्हें अलग अलग राज्यों से मंगाया जाता है।
इस मेले में हिन्दू और मुस्लिम दोनों लोग फूलों के पंखे, चादरें और छत्र चढ़ाते है। इसके अलावा इस त्योंहार में कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा कई मुकाबलों का भी आयोजन होता है जैसे कुश्ती, पतंगबाजी ,नृत्य आदि।
महत्व
“फूल वालों की सैर” उत्सव का हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिए ख़ास महत्व है। इसे दोनों समुदाय के लोग बरसों से मनाते आ रहे है। यह त्यौहार दोनों समुदायों के आपसी प्यार और सद्भाव का प्रतीक है और साथ ही यह त्यौहार दोनों धर्मों के मेलजोल का भी प्रतीक है ,यही कारण था कि पंडित जवाहर लाल नेहरू को इस पर्व से ख़ास लगाव था और वो हर साल इस में शामिल होते थे।
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