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फ़ादर्स डे स्पेशल स्टोरी: ख़्वाब

“पापा, देखिये, आज मुझे इस सितारे के साथ फ़ौजी वर्दी में देखने का आपका ख्वाब पूरा हुआ। आपकी बेटी अब लेफ्टिनेंट देवसी के नाम से जानी जाएगी। यह आपके ही आशीर्वाद और प्रेरणा से संभव हुआ है। आप मुझे आर्मी जॉइन करने के लिए मोटिवेट नहीं करते तो यह कभी मुमकिन नहीं हो पाता। थैंक यू पापा, थैंक यू सो वेरी मच,” देवसी अपने मृत श्वसुर के फोटो के सामने अपने कंधे पर लगे सितारे को छूते हुए बुद्बुदाई और कुछ देर आंखें बंद करके वहीं बैठ गई ।
पापा की फोटो के सामने बैठे बैठे कब वह बीते दिनों की खट्टी मीठी यादों के सैलाब के साथ बह निकली, उसे भान न हुआ।

आज भी उसकी स्मृति में वे पल जीवंत हैं जब उसने पहली बार शादी के बाद ससुराल के बड़े से बंगले में सुर्ख जोड़े में पायल छनकाते हुए गृह प्रवेश किया था। पापा ने उसी क्षण से उसे अपनी बेटी बना लिया। उसे अपने लाड़ दुलार की शीतल छांव में समेट लिया। ससुराल में जब वह नाते रिश्तेदारों की भीड़ में पति काव्यम के साथ किसी पूजा के बाद श्वसुर के पैरों को छूने झुकी, उन्होंने उसे कंधों से थाम अपने से तनिक चिपटा लिया और बोले “मैं तुझसे पैर कभी नहीं छुलवाऊंगा। तू तो मेरी बेटी है। बेटियां पिता के पैर कभी नहीं छूतीं।”

उन्होंने अपना यह वायदा मरते दम तक निभाया। शादी के बाद शुरू शुरू में उसने बहुत बार ससुर के पैर छूने का प्रयास किया लेकिन हर बार वह उसे इसके लिए दृढ़ता से मना कर देते ।

मातृपितृविहीना देवसी पति और ससुर के असीम प्यार की छाँह तले अपने दिन हंसी खुशी बिताने लगी। दिन सोने के थे तो रात चांदी की। उसके मुंह से बात निकलती नहीं कि वह पूरी हो जाती ।

ससुराल के नए माहौल में खुद को ढालने में उसे कोई भी कठिनाई नहीं हुई। काव्यम घर की इकलौती संतान थे और पिता की भांति एक फौजी थे। उसके विवाह से माह भर पहले ही श्वसुर फौज से रिटायर हुए थे। तो जब काव्यम की पोस्टिंग ऐसी जगह होती जहां परिवार को रखना संभव ना होता, वह ससुर के साथ उनकी बेटी बनकर रहती। दोनों ही एक दूसरे का भरसक ख्याल रखते।

लेकिन कहते हैं ना सुख सौभाग्य को बहुत जल्दी दुख का ग्रहण लग जाता है। देवसी की खुशियों को भी न जाने किसकी नज़र लग गई। विवाह की तीसरी वर्षगांठ बहुत धूमधाम से मनाने के बाद काव्यम अपनी पोस्टिंग के शहर फ़ौज की जीप से जा रहे थे कि उनकी जीप दुर्घटनाग्रस्त हो गई और उन्होंने दुर्घटना स्थल पर ही दम तोड़ दिया।

पति की अकाल मृत्यु के बाद देवसी की मानो दुनिया ही उजड़ गई। पति की असमय मृत्यु से उसे बहुत गहरा सदमा लगा। उन दिनों वह दिन दिन भर बिना नहाए, खाए एक ही जगह पर गुमसुम बैठी शून्य में ताकती रहती। कच्ची उम्र में पति की मौत के आघात से वह अपनी सुध बुध खो बैठी थी।

घोर मानसिक यंत्रणा के उस समय में श्वसुर ने ही उसे संभाला। इकलौते पुत्र की मृत्यु के दुख का हलाहल गटक वह अब अपने जीवन के एकमात्र अवलंब देवसी को सामान्य करने के प्रयास में जी जान से जुट गए । पति की मौत से देवसी गहरे अवसाद में चली गई। ससुर ने उसे अपने स्नेहिल व्यवहार से उसे सामान्य किया। उसकी जिजीविषा जगाने के लिए उसे पढ़ाई कर आर्मी में कमीशन्ड ऑफिसर बनने का सपना उसकी आंखों में भरा।

वक्त वह शै है जो बड़े से बड़े घाव पर मरहम लगा देता है। समय के साथ श्वसुर के असीम लाड़ दुलार भरे सानिध्य से उसका दुख कम होने लगा और जिजीविषा जगने लगी।श्वसुर के कहने पर अब उसने पढ़ाई कर कमीशन्ड अफसर बनने का सपना अपनी आंखों में सजा लिया। दिन रात उसके लिए मेहनत करने लगी। न जाने कितनी रातों की नींद उसने पढ़ाई के लिए तजी।

उन दिनों श्वसुर उसे गाइड करते। अपने फौजी होने का अनुभव उससे साझा करते।रात रात भर उसके साथ जगते। अपना लक्ष्य प्राप्त करने का ज़ज़्बा उसमें जगाते। हर घंटे उसके हाथ में कॉफी का प्याला थमाते।

आर्मी की कड़ी ट्रेनिंग के अनुरूप उसका फ़ीज़ीकल स्टैमिना बढ़ाने के लिए शाम को उसे देर तक दौड़ाते। उससे कई तरह की ऐक्सरसाइज़ करवाते।

यूं श्वसुर की गाइडेंस और सहयोग से देवसी ने पहली बार में ही फौज की प्रवेश परीक्षा और इंटरव्यू क्लियर कर लिए। अब उसे ओ टी ए चेन्नई जाना था ट्रेनिंग के लिए।

देवसी को आज भी अच्छी तरह से याद है वह दिन जब पापा ने उसे नम आंखों से चेन्नई के लिए विदा किया था। उनके मन में जहां एक और अपनी इस बेटी को जीवन में प्रतिष्ठित पद पर स्थापित देखने का संतोष था, वही ट्रेनिंग के लिए उसे अपने से दूर भेजने का तनिक अफ़सोस भी था।

देवसी को ट्रेनिंग पर गए 5 माह बीत चले थे। पापा बेसब्री से उसकी ट्रेनिंग खत्म होने का इंतजार कर रहे थे कि कब उसकी ट्रेनिंग खत्म हो और वह देवसी के साथ पुराने दिनों की तरह एक बार फिर से हंसी खुशी दिन गुजार सकें लेकिन प्रारब्ध को यह मंजूर न था। देवसी के ससुर एक दिन जो रात को सोए तो सुबह सोते ही रह गए। वह चिरनिद्रा में लीन हो चुके थे।

श्वसुर की मौत से देवसी एक बार फिर से भरी दुनिया में तन्हा हो गई। इस बार उसके मकसद ने उसे टूट कर बिखरने से बचाया। उनकी मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार निपटा वह मन में अपनी ट्रेनिंग को सफलतापूर्वक पूरी करने के संकल्प से चेन्नई पहुंची।

आखिरकार उसकी ट्रेनिंग खत्म हुई और उसे फौज में कमीशन मिला। पासिंग आउट परेड में अन्य साथियों के माता-पिता को उनके कंधों पर सितारे लगाते देख उसे पापा की याद शिद्दत से आई थी। जब फ़ौज के एक अधिकारी उसके कंधे पर सितारा लगा रहे थे, उसके कानों में पिता समान श्वसुर के शब्द गूंजने लगे, “बेटा अब तो जिंदगी में बस एक ही तमन्ना बची है, पासिंग आउट परेड में तेरे कंधे पर सितारा लगाने की।” अपने मकसद को सफलतापूर्वक अंजाम देने के सुकून से उसके होठों पर मुस्कान थी, लेकिन आंखों की कोरों में आंसू छिपे थे। मन में मलाल था उसके प्रिय पापा आज मौजूद नहीं थे जिनकी वजह से आज उसका खुली आंखों से देखा ख्वाब पूरा हुआ था।
कि तभी उसके कमरे के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी और वह चैतन्य हुई। पापा को मन ही मन प्रणाम कर उसने जल्दी से उठ कर दरवाजा खोला। सामने लेफ्टिनेंट विभु खड़े थे। ट्रेनिंग के दौरान उनसे एक बहुत ही आत्मीय मित्रता हो गई थी देवसी की। लेफ्टिनेंट विभु मन ही मन देवसी को बहुत पसंद करने लगे थे। उन्हें देवसी की जिंदगी की पूरी कहानी मालूम थी। देवसी की आंखों की कोर में छिपी आंसू की बूंद उनसे अनदेखी न रही।

“कौंग्रेच्स लेफ्टिनेंट देवसी। कमीशन मिलने की खुशी में हम सब मैस में पार्टी कर रहे हैं। आप भी चलिए ना कल से तो सब अलग-अलग अपनी राह चले जाएंगे। आज तो मिलकर जश्न मना लें। आप चल रही हैं ना?”

“जी बिल्कुल चलिए आज के दिन तो पार्टी बिल्कुल बनती है।”

लेफ्टिनेंट विभु के साथ कदम से कदम मिलाते हुए चलती देवसी की आंखों में एक मकसद भरे सतरंगे जीवन का हसीं ख़्वाब झिलमिला रहा था।

Renu Gupta

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  • बहुत ही उम्दा चित्रण किया है और यह कहानी दिल को छू लेने वाली है I

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