भगवद गीता हिंदुओं का महानतम धार्मिक ग्रंथ है। जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं और एक सार्थक, संपूर्ण जीवन जीने के ढंग के विषय में खुलासा किया गया है। भगवद गीता का उपदेश भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को आज से हजारों वर्ष पूर्व दिया था और इसमें संकलित दिव्य ज्ञान आज के आधुनिक युग में भी उतना ही प्रासंगिक और उपयोगी है, जितना प्राचीन काल में था।
गीता में जीवन का सार निहित है। जीवन के आरंभ से अंत तक अपनी जीवन यात्रा के दौरान एक आम इंसान को नाना चिंताओं, समस्याओं और तनावों का सामना करना पड़ता है। यदि हम अपने बच्चों को बचपन से गीता में समाहित ज्ञान की जानकारी प्रदान करें तो वह अपने जीवन में हर प्रकार की परेशानी और दुविधा का मुक़ाबला सफलतापूर्वक करते हुए हर मायनों में एक सम्पूर्ण जीवन जी सकते हैं। तो आइए देखते हैं, श्रीमद भगवद गीता किस प्रकार आज भी बच्चों और विद्यार्थियों के लिए प्रासंगिक है।
कई बार बच्चे मेहनत तो पूरी करते हैं लेकिन उसके परिणाम की फिक्र उन्हें अपने शत-प्रतिशत प्रयत्न करने से विमुख करती प्रतीत होती है। परिणाम स्वरूप वे अनावश्यक तनाव एवं चिंता से ग्रस्त हो जाते हैं।
हमें अपने बच्चों को बचपन से यह सीख देनी चाहिए कि उन्हें अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बिना परिणाम की चिंता में उलझते हुए भरपूर मेहनत करनी चाहिए। तभी वह उसमें सफलता पाएंगे।
हमें नई पीढ़ी को गीता का एक अन्य मूल मंत्र समझाना चाहिए कि वह किसी भी परिस्थिति में क्रोध न करें। उस पर नियंत्रण करना सीखें। गीता में कहा गया है कि क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाते हैं और तर्क नष्ट होने पर हम किसी भी मुद्दे पर तर्क सम्मत भाव से विचार करने में असमर्थ हो जाते हैं। हमारे हाथ विफलता लगती है। अतः हमें अपनी नई पौध को बचपन से क्रोध के दुष्प्रभाव एवं उसे नियंत्रित करने के तरीके सिखाने चाहिए।
आज के गला काट प्रतिस्पर्धा के युग में विद्यार्थियों को कदम-कदम पर अपने आप को साबित करने की कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। गीता हमें सिखाती है कि हमें जीवन में आने वाली हर चुनौती का हिम्मत से सामना करना चाहिए। चुनौतियों का मुकाबला करते हुए ही इंसान के भीतर छिपे हुए विशेष गुण एवं स्वाभाव बाहर निकल कर आते हैं और हमें हमारी वास्तविक अंदरूनी क्षमता और ताकत का अंदाजा होता है। हमें हमारे जुझारूपन का परिचय मिलता है।
कुरुक्षेत्र के मैदान में अपने बंधु बांधवों, कौरवों का रक्त बहता देख अर्जुन विचलित हो गए और वह अपने कर्तव्य से विमुख हो गए थे। तभी श्री कृष्ण ने उन्हें अपना कर्तव्य करने की सीख दी थी।
हम सब जीवन के किसी न किसी मोड़ पर भय एवं संदेह का शिकार बनते हुए अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ लेते हैं। लेकिन ऐसे समय में अपने मन के डर और संदेह से लड़ते हुए हमें अपना कर्तव्य नहीं भुलाना चाहिए और उसे निरंतर करते रहना चाहिए।
अनेक विद्यार्थी स्टडीज़ में अच्छा प्रदर्शन न करने पर या परीक्षा में असफल होने पर इस भय एवं संदेह से ग्रस्त हो जाते हैं कि वे कभी स्टडीज में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे या उस परीक्षा को उत्तीर्ण नहीं कर पाएंगे। ऐसे समय में गीता द्वारा प्रदत्त यह सीख अवश्य उपयोगी सिद्ध होगी।
यह सीख विद्यार्थियों के लिए उस स्थिति में उपयोगी साबित हो सकती है जब वह किसी परीक्षा में असफल हो जाते हैं अथवा स्टडीज़ में संतोष जनक प्रदर्शन करने में असफल रहते हैं। याद रखना चाहिए कि उनकी असफलता भी चिरस्थाई नहीं है और समय के साथ कठिन परिश्रम से यह असफलता सफलता में परिवर्तित हो सकती है। अतः विद्यार्थियों को असफलता के समय हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और दृढ़ संकल्प एवं लगन से असफलता को सफलता में बदलने के लिए कठोर परिश्रम करना चाहिए।
गीता में समाहित यह शिक्षा हम सब को आत्मसात करनी चाहिए। आज विद्यार्थियों का एक बड़ा प्रतिशत आत्मविश्वास एवं अपनी क्षमताओं में विश्वास के अभाव से जूझ रहा है। अपनी क्षमता में संदेह एवं आत्मविश्वास में कमी से सफलता के मार्ग बंद होने लगते हैं। अतः गीता की इस सीख को अपने बच्चों को अवश्य दें।
बच्चों को सीख दें कि वे पौज़ीटिव बनें, पौज़ीटिव सोचें एवं पौज़ीटिव व्यवहार अमल में लाएँ। नेगेटिव रवैया लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग को बाधित करता है। अतः बचपन से उन्हें आशावादी बनने के लिए प्रोत्साहित करें।
भगवद गीता में मेडिटेशन के महत्व पर बहुत जोर दिया गया है। मेडिटेशन हमारे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभप्रद माना जाता है। यदि विद्यार्थी गीता की इस शिक्षा को अपने जीवन में उतारें तो वह उनका पावर ऑफ कंसंट्रेशन बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है जिससे वे स्टडीज में बेहतरीन प्रदर्शन कर सकते हैं। आज के गलाकाट प्रतिस्पर्धा के समय में विद्यार्थियों पर विभिन्न कम्प्टीटिव परीक्षाओं में बेहतरीन प्रदर्शन करने का दवाब निरंतर हावी रहता है। मेडिटेशन से वे परीक्षा संबंधित तनाव एवं एंग्ज़ाइटी से निजात पा सकते हैं।
भगवद गीता में एक जगह श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हमें बाधाएं अपने लक्ष्य से दूर नहीं रखती वरन लक्ष्य प्राप्ति के अपेक्षाकृत सरल सहज मार्ग अपेक्षित सफलता पाने से विमुख करती है। इसका तात्पर्य है कि हमें ऊंचे सपने देखने चाहिए। सहज रूप से प्राप्त लक्ष्यों की ओर नहीं भागना चाहिए वरन कठिनाई से प्राप्त होने वाले लक्ष्यों पर फोकस करना चाहिए।
तो देखा आपने, हजारों वर्षों पूर्व रची गई गीता के उपदेश आज के परिदृश्य में भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस वक्त थे। तो आज से ही अपने नौनिहाल को इन टाइम टेस्टेड सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारने के लिए प्रेरित करें जिससे वह जिंदगी की मुहिम के हर पड़ाव पर विजयश्री हासिल कर आपका, समाज एवं अंततोगोत्वा राष्ट्र का नाम रौशन कर सकें।
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