Fashion & Lifestyle

एक साड़ी की कहानी

वैदिक काल से लेकर आज के आधुनिक युग तक के सफर में साड़ी को  भारतीय नारी ने हमेशा पसंद ही नहीं किया बल्कि  नैशनल ड्रैस का दर्जा भी दिया है। चाहे वार्डरोब कितने ही तरह के कपड़ों से भर जाए, लेकिन जब तक उसमें कुछ डिजाइनर, ट्रेडीशनल, कैजुल और फ़ेस्टिव साड़ी का कलेक्शन न हो, लगता ही नहीं की कोई कपड़ा है। पीढ़ी दर पीढ़ी, समाज के हर वर्ग और हर आयु की औरत के पहनावे में साड़ी पहली पसंद की जाती रही है। जयपुर राज घराने की रानी हो या शंभु चौकीदार की बीबी हो, साड़ी तो वो पहनेगी ही।

1. साड़ी का जन्म

इतिहास के पन्ने पलट कर देखें तो पता लगता है कि भारत में साड़ी का प्रचलन वैदिक काल से चला आ रहा है। ऋग्वेद की संहिता में इस नियम के बारे में कहा गया है जहां यज्ञ या हवन में बैठने के लिए ऋषि पत्नियों को साड़ी पहनने का निर्देश दिया गया है। आप सबको द्रौपदी के चीर हरण के बारे में तो पता ही होगा। यह घटना महाभारत काल में साड़ी के होने का पता देती है। इसके बाद सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों से भी पता चलता है कि उस समय भी समाज में स्त्री परिधान साड़ी ही थी। हाँ, उसका पहनने का तरीका आज के तरीके से थोड़ा अलग था। वे औरतें कमर से नीचे, घेरे में लपेटकर साड़ी पहनती थीं। शरीर के ऊपरी हिस्से को किसी बेल्टनुमा कपड़े से ढँक लिया जाता था। धीरे-धीरे समय के साथ संस्कृति के विकास के साथ-साथ मेरे रंग रूप और बनाने और पहनने के तरीके भी बदल गए हैं।

2. साड़ी और संस्कृति

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जैसा कि हम सब जानते हैं, साड़ी भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। केवल यही एक चीज है जो भारत को एक सूत्र में बांधती है और अनेकता में एकता का संदेश देती है। पारंपरिक कला के साथ ही विभिन्न राज्यों की सदियाँ उन स्थलों की संस्कृति का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक और पूर्व से लेकर पश्चिम भारत तक की कल्चर वहाँ की साड़ियों में दिखाई देती हैं। उत्तर के बनारस की बनारसी साड़ी तो दक्षिण भारत से कंजीवरम साड़ी राजसी लुक के लिए पसंद करी जाती हैं। पूर्व में बंगाल की काँथा साड़ी की पहचान है तो पश्चिम से गुजरात की बांधनी साड़ी मन को मोह लेती है।

3. आज के फैशन में साड़ी

हम सब जानते है की साड़ी भी फैशन के प्रभाव से अछूती नहीं रही है। वक़्त बदलने के साथ-साथ साड़ी के बनाने और पहनने के तरीके भी बदल गए हैं। केवल हथकरघों पर ही बुनी जाने वाली साड़ियाँ अब मशीनों से भी बनने लगी हैं। बड़े शहरों में होने वाले फैशन फ़ेस्टिवल्स में साड़ी को पहनने के नए-नए तरीके दिखाये जाते हैं। आधुनिक युवतियाँ साड़ी को पारंपरिक विधि से तो साड़ी पहनती ही हैं, साथ ही कभी अँगरखे के तौर पर पहनना पसंद करती हैं तो कभी जैकट के साथ पहन लेती हैं। लहंगा साड़ी तो हर उत्सव की जान समझी जाती है। कामकाजी औरतों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए, रेडीमेड साड़ी भी बाज़ार में आ गयी है जिसे पेन्ट की भांति पहना जा सकता है।

कोरपोरेट जगत ने साड़ी में एक और रोमांचक बदलाव किया है। इन्हें इंडो-वेस्टर्न साड़ी कहा जाता है जिन्हें स्कर्ट और जाकेट के साथ इस तरह पहना जाता है कि साड़ी का पल्लू अलग से लगाया जाता है।

न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में साड़ी को पहना और सराहा जा रहा है। बढ़ते हुए अंतरराष्ट्रीय फैशन ट्रैंड और बौलीवूड की मशहूर हस्तियों के साड़ी प्रेम ने इसे अन्य पश्चिमी परिधानों के समकक्ष खड़ा कर दिया है। बॉलीवुड की ही भांति हॉलीवुड में भी साड़ी प्रेम के अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। पामेला एंडरसन, ऐशले रेबेलों, ऐशले जुड़ और सेलेना गोम्स जैसी हस्तियाँ कुछ उदाहरण हैं जिन्होनें विभिन्न मौकों पर वैसट्र्न फैशनेबल कपड़े न पहनकर साड़ी को प्रेफेरेंस दिया है।

Charu Dev

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