Most-Popular

इत्र की राजधानी

कहा जाता है, कि महक में वो तासीर होती है, जो किसी भी मुरझाए मन को जिंदादिल, खुशमिज़ाज़ और तरोताज़ा बना देती है। महक चाहे वो फ़ूल की हो या फिर इत्र की, तन और मन को स्फूर्ति और रोमांच से भर देती है। बारात में आए बारातियों के स्वागत से लेकर देवी-देवताओं के पूजन में भी इत्र का प्रयोग कोई नया उपाय नहीं है। जयपुर का गोविंददेव जी का मंदिर हो या अजमेर शरीफ की दरगाह, एक मोटे अनुमान के अनुसार 10 हज़ार रुपए से लेकर 50 हज़ार रुपए रोज का खर्चा है, इत्र का जो त्योहारों में तो लाखों तक में पहुँच जाता है। दरअसल वैदिक काल से इत्र का उपयोग भारतीय संस्कृति में होता आया है, लेकिन कुछ खास इत्र का प्रयोग मुगल से शुरू हुआ था। इत्र के इतिहास के बारे में कुछ और रोचक तथ्यों पर प्रकाश डालते हैं ।

इत्र का इतिहास

भारत में इत्र का इतिहास उतना ही पुराना है जितने पुराने वेद हैं। रानी नूरजहां ने पहली बार गुलाब के इत्र का निर्माण करवाने के लिए फ्रांस से निपुण कारीगरों को बुलवाया था। ये सभी कारीगर आ कर कन्नौज में बस गए और वहीं से कन्नौज इत्र की राजधानी बन गया । सभ्यता के विकास के साथ इत्र का निर्माण भारत, फ्रांस और इटली में शुरू हुआ था, जो बाद में व्यापार में शामिल होकर अदल-बदल नीति के तहत पूरे विश्व में फैल गया।

कन्नौज की खुशबू

कहते हैं की देव-अर्चना से आरंभ हुआ इत्र का प्रयोग पहले औषधि के रूप में और बाद में नारियों के श्रृंगार का अनिवार्य अंग बन गया। भारत में हर्षवर्धन के साम्राज्य की राजधानी, कन्नौज को इत्र बनाने का तरीक़ा और नुस्खा फारस के कारीगरों से मिला था। ये कारीगर मलिका ए हुस्न नूरजहां ने एक विशेष प्रकार के इत्र जो गुलाब से बनाया जाता था, के निर्माण के लिए बुलाये थे। उस समय से लेकर आज तक इत्र बनाने के तरीकों में कोई विशेष अंतर नहीं आया है। आज भी अलीगढ़ में उगाये दमश्क गुलाब का, कन्नौज की फैक्ट्री में बना इत्र पूरी दुनिया में मशहूर है। इसके अलावा गेंदा, गुलाब और मेहँदी का इत्र विशेष रूप से प्रसिद्ध है। कन्नौज के इत्र किसी जमाने में उसी तरह से पसंद किए जाते थे, जैसे आज फ्रांस के ग्रास शहर के इत्र पसंद और उपयोग में लाये जाते हैं।

महक के रंग

कन्नौज की डिस्टेलेरी में तैयार इत्र पूरी तरह से प्राकृतिक गुणों से भरपूर और एल्कोहल मुक्त रखा जाता है। इसी कारण एक दवा के रूप में कुछ रोग जैसे एंग्जाइटी, नींद न आना और स्ट्रैस जैसे बीमारियों में इत्र की खुश्बू रामबाण का काम करती है। 1990 तक कन्नौज में लगभग 770 से अधिक कारखाने थे जिनकी संख्या अब बहुत कम हो गई है। लेकिन इत्र की खुश्बू को पसंद करने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है । आज भी परंपरागत इत्र की खुश्बू जिसमें गुलाब, केवड़ा, बेला,केसर, कस्तूरी, चमेली, मेंहंदी, कदम, गेंदा खुश्बुएं तो पहले वाली शिद्दत से ही पसंद की जाती रही है। इसके अलावा कुछ नाम ऐसे भी हैं, जिन्हें कोई शायद पहचानता भी नहीं है। इन नामों में शमामा, शमाम-तूल-अंबर और मास्क-अंबर जैसे इत्र प्रमुख हैं। सबसे कीमती इत्र अदर ऊद है, जिसे असम की विशेष लकड़ी ‘आसामकीट’से बनाया जाता है। बाजार में इसकी कीमत 90 लाख प्रति किलो है। इसी प्रकार गुलाब का इत्र भी 12 हज़ार से लेकर साढ़े तीन लाख रुपए, प्रति किलो के हिसाब से खरीदा जा सकता है।

कन्नौज के पुराने इत्रबाज़ों का कहना है की असली गुलाब इत्र की क्वालिटी को समझना और उसमें फर्क करना सबके बस की बात नहीं है।

 

 

Charu Dev

View Comments

  • पुष्प चंदन सेन्ट चाहिए कहॉ मिलेगी बताए

Recent Posts

चेहरे पर होने वाले छोटे-छोटे पिंपल्स को ठीक करने के घरेलू उपाय

खूबसूरत और चमकता चेहरा पाने की ख्वाहिश तो हर किसी की होती है लेकिन चेहरे…

2 वर्ष ago

मेथी से बनी हुई नाइट एंटी-एजिंग क्रीम – क्रीम एक, फायदे अनेक

मेथी एक ऐसी चीज़ है जो दिखने में छोटी होती है पर इसके हज़ारों फायदे…

2 वर्ष ago

कुणाल कपूर के अंदाज में बनी लजीज रेसिपी नवरत्न पुलाव रेसिपी

यूं तो नवरत्न अकबर के दरबार में मौजूद उन लोगों का समूह था, जो अकबर…

2 वर्ष ago

सर्दियों के लिए ख़ास चुने हुए डार्क कलर सूट के लेटेस्ट डिज़ाइन

वैसे तो गहरे और चटकदार रंग के कपडे किसी भी मौसम में बढ़िया ही लगते…

2 वर्ष ago

सर्दियों में डैंड्रफ की समस्या से बचने के असरदार टिप्स

डैंड्रफ एक ऐसी समस्या है जो आपके बालों को तो कमज़ोर बनाती ही है, साथ…

2 वर्ष ago

इंस्टेंट ग्लो के लिए टॉप 3 होममेड चावल फेस पैक

हमारी त्वचा बहुत ही नाजुक होती है। यदि इसकी सही तरह से देखभाल नहीं की…

2 वर्ष ago