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क्यों दुल्हन के हाथ और पैरों में मेहँदी लगायी जाती है?

भारतीय संस्‍कृति में विवाह का बहुत ही ज़्यादा महत्‍व है, इसे जन्‍मों-जन्‍मों का बंधन माना जाता है। शादी के दौरान बहुत से रीति-रिवाज़ों व रस्‍मों को निभाया जाता है, जिनका सांस्‍कृतिक, धार्मिक व प्राकृतिक महत्‍व होता है। उनमें से ही एक है दुल्‍हन के हाथों व पैरों पर मेहँदी लगाने का

ऐसा माना जाता है, कि दुल्हन की मेहँदी का रंग भावी पति व सास का उसके प्रति प्रेम का सूचक होता है। लेकिन मेहँदी लगाने का आशय केवल इस सामान्‍य अवधारणा तक ही सीमित नहीं है, हालांकि यह मान्‍यता इस रस्‍म को काफी आकर्षक व प्रत्‍याशित परंपरा बना देती है, मगर इसके पीछे के मुख्‍य उद्देश्‍य को शायद आज भूला ही दिया गया है।

मेहँदी हाथों व पैरों को सुंदर व मनमोहक तो बनाती ही है, पर यह एक औषधीय जड़ी-बूटी भी है। शादी के समय भाग-दौड़ व नये जीवन को लेकर बेचैनी व उत्‍तेजना से दुल्‍हन का तनावग्रस्‍त हो जाना स्‍वाभाविक है, जिस कारण स्‍वास्‍थ पर विपरीत असर पड़ सकता है और सिर दर्द व बुखार की समस्‍या आम हो जाती है। ऐसे में मेहँदी लगाने से दिमाग तनावरहित व शरीर में ठंड का अहसास होता है। मेहँदी में एंटी-सेप्टिक गुण होते हैं, जो दुल्‍हन को इस महत्‍वपूर्ण समय किसी भी प्रकार के वायरल रोग से बचाने में मदद करते हैं। शादी के समय होने वाली रस्‍मों-रिवाजों के दौरान अगर दुल्‍हन को किसी प्रकार की हल्‍की चोट आदि लग जाएं, तो मेहँदी इन चोटों को ठीक करने में सहायक साबित होती है। मेहँदी रक्‍त परिसंचरण को बेहतर बनाकर शरीर के लिए स्‍वास्‍थवर्धक होती है। प्राचीन समय में मुख्‍य रूप से इसी वजह से मेहँदी लगाने का चलन प्रारंभ हुआ था।

शादी के समय जो मेहँदी लगाई जाती है, वो केवल मेहँदी पाउडर व पानी का मिश्रण नहीं होता है, बल्कि इसमें नीलगिरी का तेल, थोड़ा-सा लौंग का तेल एवं नींबू के रस की कुछ बूंदें भी मिलाई जाती है। जो न सिर्फ मेहँदी के रंग को गाढ़ा करते है, बल्कि इसके औषधीय गुणों को और ज़्यादा बढ़ा देते हैं। साथ ही इसकी मनमोहक सुगंध नवविवाहित युगल के दांपत्‍य जीवन को अधिक सरल व मधुर बनाने में अहम भूमिका निभाती है।

समय के साथ मेहँदी समारोह विस्‍तृत रूप लेता जा रहा है और आज यह शादी के पहले का सबसे महत्वपूर्ण आयोजन बन गया है, जिसमें बड़े धूमधाम से नाच-गाने के साथ इस रस्‍म  को निभाया जाता है। मेहँदी समारोह समृद्ध भारतीय संस्‍कृति को दर्शाता है, जिसमें मनोहर भावनाओं व मान्‍यताओं के साथ औषधीय गुणों को समाहित किया गया है।

 

शिखा जैन

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