संगीत का संबंध आत्मा से उसी प्रकार से जुड़ा है जैसे शरीर का भोजन से जुड़ा है। संगीत का जिक्र आए तो तानसेन का नाम लेना लाजिमी ही है। बचपन में शेर की दहाड़ से लोगों को डराने वाला बालक संगीत सम्राट बन गया। संगीत के गगन को तानसेन ने असंख्य राग-रागिनियों से सजाया है। जंगल में पशु-पक्षियों की आवाजें निकालने वाले बालक ने ऐसे संगीत की रचना की जिसको सुनकर मानव ही नहीं प्रकृति को भी आँसू लाने को मजबूर कर दिया था। कहते हैं संगीत सम्राट तानसेन के द्वारा बनाए संगीत को सुनकर जंगल में मोर भी नाचने लगते थे। दीपक राग से बुझे हुए दिये जलाने और मेघ मल्हार राग से बारिश करवाने की दंत कथाएँ तो हर पीढ़ी ने अपने बुजुर्गों से सुनी हैं। लेकिन क्या सचमुच ऐसा होता था? आइये समय के गलियारों से गुजरते हुए थोड़ा इतिहास के झरोखों से झांक कर देखें और पता करें की क्या तानसेन राग मल्हार का आलाप कर सच में वर्षा करवा देते थे……..
महान गुरु हरि दास ने तानसेन को बचपन में जंगल से शेर की दहाड़ निकालते हुए सुना था। नन्हें बालक तन्ना मिश्र की प्रतिभा को पहचानकर उन्होने उसे अपनी शरण में लेकर विधिवत संगीत की शिक्षा देनी आरंभ करी। वहाँ उस बालक ने सरगम और तानपूरे से शुरुआत करके अलग-अलग राग-रागिनियों में महारत हासिल करी और तानसेन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके बाद मुहम्मद गौस से शिक्षा लेते हुए वे राजदरबारों में अपनी कला का प्रदर्शन करते रहे। उनकी कला की खुशबू ग्वालियर से निकलकर मुगल शहंशाह अकबर के दरबार में महकने लगी। अकबर ने तानसेन को मियां तानसेन के खिताब से नवाजते हुए उन्हें अपने नवरत्नों में शामिल कर लिया।
अकबर के दरबार में तानसेन की कला और संगीत आसमानी बुलंदी पर थे। शहँशाह तानसेन से इतना प्रसन्न था की उन्हें अपने महल के पास रहने के लिए घर दिया । इसके अलावा, तानसेन के संगीत सुरलहरी उनके महल में गूँजती रहे , इसका प्रबंध भी था। तानसेन वास्तव में वो संगीत रत्न थे जिन्होनें प्रकृति और संगीत के रिश्ते को समझ लिया था। यही कारण है की उनके संगीत में वास्तविक जादू था। उनके द्वारा रचे गए संगीत और गीत को सुनकर पूरी प्रकृति अपना आपा खो देती थी।
भारतीय संगीत की सबसे बड़ी खूबी यह है की इसका हर सुर, राग और हर पल, घड़ी, दिन और मौसम के हिसाब से रचे गए हैं। किस समय किस राग को गाया जाना चाहिए, इसकी जानकारी संगीतज्ञों को होती है। जैसे दीपक राग में दिये जलाने की शक्ति है, यह वैज्ञानिक रूप से सत्य है। इसका कारण, इस राग में सुरों की संरचना इस प्रकार की है की गायक के शरीर में गर्मी उत्पन्न हो जाती है। यही गर्मी वातावरण में भी आ जाती है और ऐसा प्रतीत होता है मानों अनेक दिये जल गए। यही नियम राग मेघ-मल्हार के संबंध में भी है। दरअसल मेघ-मल्हार राग की रचना, दीपक राग की गरम तासीर को कम करने के लिए करी गयी थी। इसलिए जब मेघ-मल्हार राग गाया जाता था तो वातावरण ऐसा हो जाता था, मानों कहीं बरसात हुई है।
तानसेन द्वारा मेघ-मल्हार को गाना और बरसात का होना, मात्र संयोग हो सकता है, जो बार-बार नहीं होता।
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