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बच्चे का डायपर कितने घंटों बाद या कब बदलना चाहिए?

रेडीमेड डायपर के उपयोग से नवजात शिशु की नींद में खलल नहीं पड़ती है। माता-पिता भी बिस्तर गीले होने की समस्या से टेंशन फ्री रहते हैं। इसके अतिरिक्त शिशु को सफ़र पर ले जाने में भी बार -बार दायपर बदलने की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है।

जहाँ डायपर पहनाने के इतने सारे फायदे हैं। वही लापरवाही बरतने पर शिशु के नाजुक त्वचा में संक्रमण का खतरा होता है। जिससे खुजली, स्किन का लाल होना आदि समस्या के कारण शिशु के स्वभाव में चिड़चिड़ापन आना स्वाभाविक है।

इन समस्याओं से बचने के लिए डायपर पहनाने के बाद उसके गीले होने पर तुरंत बदलना आवश्यक है। तो आइये जाने शिशु को डायपर पहनाने के बाद कब और कितने घंटे में बदल देना आवश्यक है?

 

डायपर कितने घंटों बाद या कब बदलना चाहिए?

नवजात शिशु का डायपर द्वारा एक दिन में 20 बार तक यूरिन करना सामान्य है। इसका कारण नवजात शिशु के ब्लेडर (मूत्राशय) में केवल एक बड़े चम्मच के बराबर यूरिन रोकने की क्षमता होती है।

इसके लिए एक से पाँच महीने तक 24 घंटे में लगभग 8 से 10 डायपर बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है। जैसे-जैसे शिशु की आयु बढ़ती है, कम डायपर बदलने की आवश्यकता पड़ती है। सामान्यतः शिशु के डायपर को 2-3 घंटे में बदल देना चाहिए।

 

शिशु विशेषज्ञ की राय के अनुसार 0-12 महीने तक 24 घंटे में बदले जाने डायपर की संख्या निम्नलिखित है :

शिशु की आयु एक दिन बदले जाने वाले डायपर की संख्या
0-1 महीने का शिशु 10-12 डायपर
1-5 महीने का शिशु 8-10 डायपर
5-9 महीने का शिशु 8 डायपर
9-12 महीने का शिशु 8 डायपर

कैसे जाने डायपर गिला है?

डायपर गीला होने पर लटका हुआ नज़र आएगा और छूने पर स्पौंजी लगेगा। ऐसा दिखने पर २-3 घंटे के पहले भी डायपर बदल देना चाहिए। इसके अतिरिक्त यदि 3 घंटे बाद भी आपको लगे कि डायपर गीला नहीं हुआ है, तो खोल कर चेक किया जा सकता है।

यदि आपको डायपर में बनी लाइनिग के अन्दर का रंग बदला हुआ दिखे। तो शिशु कई बार यूरिन कर चूका है, ऐसा समझना चाहिए और डायपर तुरंत बदल देना चाहिए।

डायपर बदलने के दुरान शिशु के स्किन को पानी से गीले रुई या मुलायम कपड़े से पोछ कर सुखाने के बाद दूसरा डायपर पहनाना चाहिए। क्योंकि यदि स्किन में नमी रह जायेगी तो संक्रमण होने का खतरा हो सकता है।

डायपर बदलना क्यों आवश्यक है

यूरिन में स्किन को नुक्सान पहुँचाने वाले कैमिकल्स यूरिक एसिड, अमोनिया आदि होते हैं। जिनके स्किन में सूखने पर खुजली, स्किन में लाल चक्कते, सूजन आदि समस्या हो जाती है।

जो स्किन में फंगल संक्रमण का रूप धारण कर सकती है। संक्रमण होने की दशा में स्किन पर महीन – महीन दाने हो जाते हैं। जिनमें खुजली, जलन एवं दर्द होती है। शिशु की नाज़ुक स्किन पर संक्रमण होने पर बिना डाक्टर की सलाह के किसी प्रकार की मरहम या पाउडर का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

➡ नवजात शिशु का वजन कितना होना चाहिए? 

➡ नवजात हिन्दू बच्चों के लिए बिलकुल नए नाम – A, B, C और D अक्षरों से शुरू होने वाले

Ritu Soni

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