क्या आप जानती हैं कि एक बेटी होने के नाते आप अपने पिता की संपत्ति में अपने भाई के समान बराबरी के हिस्से की हकदार हैं? यदि नहीं तो आपको अपने इस अधिकार के विषय में जानने के लिए यह लेख शुरू से अंत तक अवश्य पढ़ना चाहिए।
आज की तारीख में अपने पिता की पैतृक संपत्ति पर एक पुत्री का उतना ही अधिकार है, जितना कि एक पुत्र का। पिछले वर्ष 11 अगस्त 2020 को देश की माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
पैतृक संपत्ति के प्रकार:
हिंदू कानून के अनुसार पैतृक संपत्ति दो प्रकार की हो सकती है:
पुरखों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति:
ऐसी संपत्ति जो पिछली चार पीढ़ियों से पुरुषों को मिलती आई है, यानी उस दौरान उस का बंटवारा नहीं हुआ, वह इस श्रेणी की संपत्ति कहलाती है। कानून के अनुसार, बेटी हो अथवा बेटा, ऐसी संपत्ति पर दोनों का जन्म से समान अधिकार होता है।
कानून के तहत कोई पिता ऐसी संपत्ति को अपने मन से किसी के नाम नहीं कर सकता अर्थात वह अपनी बेटी को ऐसी संपत्ति में उसका हिस्सा देने से वंचित नहीं कर सकता। बेटी का चार पीढ़ियों से उत्तराधिकार में मिली संपत्ति पर जन्म से अधिकार होता है।
पिता द्वारा अर्जित आय से खरीदी संपत्ति:
यदि पिता ने अपने द्वारा कमाई गई आय से संपत्ति खरीदी है, तो वह इस तरह की संपत्ति को अपनी इच्छा से किसी भी संतान को दे सकता है। बेटी इसमें अपनी आपत्ति नहीं जता सकती। इस संदर्भ में बेटी का पक्ष कमजोर रहता है।
पहले नियम क्या था?
देश में 9 सितंबर 2005 से हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून 2005 लागू हुआ। इसके तहत बेटियों को पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा पाने का कानूनी अधिकार प्रदान किया गया। इसके अंतर्गत बेटी तभी अपने पिता की संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी का दावा कर सकती थी जब पिता 9 सितंबर 2005 को जीवित रहे हों। यदि पिता का देहांत इस तिथि से पहले हो गया हो, तो बेटी का पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं माना जाता था।
अब नियम क्या है?
11 अगस्त 2020 के माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले में उपरोक्त कानून को बदलते हुए कहा गया है कि पिता की मृत्यु से इसका कोई लेना देना नहीं।
यदि पिता 9 सितंबर 2005 को जीवित नहीं थे तो भी बेटी को उनकी पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलेगा। यानी 9 सितंबर 2005 से पूर्व पिता की मौत के बावजूद बेटी का हमवारिस (coparcener) होने का अधिकार नहीं छीनेगा।
यदि पिता की मृत्यु बिना वसीयत बनाए हो जाए:
यदि पिता का देहांत बिना वसीयत बनाए हो जाए, तो इस स्थिति में सभी उत्तराधिकारीयों का संपत्ति पर समान अधिकार होगा। इन उत्तराधिकारियों में विधवा, बेटी और बेटे या अन्य शामिल है। हर उत्तराधिकारी प्रॉपर्टी का एक हिस्सा लेने का हकदार होता है, अर्थात पैतृक संपत्ति में बेटी का बराबर का हिस्सा होता है।
यदि बेटी विवाहित हो तो:
वर्ष 2005 से पूर्व हिंदू उत्तराधिकार कानून अविवाहित बेटियों को हिंदू अविभाजित परिवार के सदस्य के रूप में मानता रहा है, यद्यपि विवाह के उपरांत वे हिंदू अविभाजित परिवार का हिस्सा नहीं मानी जाती थी। वर्ष 2005 के संशोधन के पश्चात बेटी को हमवारिस माना गया है। यानी वैवाहिक दर्जे से पति पर बेटी के अधिकार का लेना देना नहीं रह गया है। शादी के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार रहता है।
बेटी के देहांत पर उसके बच्चे हकदार:
अपने 11 अगस्त 2020 के निर्णय में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि बेटी की मौत 9 सितंबर 2005 से पहले हो गई हो, तो भी पैतृक संपत्ति में उसका हक बना रहता है। अर्थात यदि बेटी के बच्चे अपनी मां के पिता यानी नाना की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी लेना चाहते हैं तो वे इसका दावा न्यायालय में ठोक सकते हैं। उन्हें अपनी मां के अधिकार के दम पर नाना की पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलेगा।
यदि पिता की मृत्यु 9 सितंबर 2005 से पूर्व हो गई हो तो:
9 सितंबर 2005 से लागू हुआ हिंदू उत्तराधिकार संशोधन कानून 2005 के अनुसार यदि पिता की मौत 9 सितंबर 2005 से पूर्व हो गई हो तो भी पुत्रियों का पिता की पैतृक संपत्ति पर अधिकार होगा।
माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया कि बेटियों को बेटों के बराबर अधिकार देना ही होगा क्योंकि बेटी पूरी जिंदगी दिल के करीब रहती है। बेटी आजीवन हमवारिस ही रहेगी, भले ही पिता जिंदा हों या नहीं।
बेटी ने कब जन्म लिया? – इससे कोई फर्क नहीं
हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून 2005 के अनुसार कोई फर्क नहीं पड़ता कि बेटी 9 सितंबर 2005 से पहले पैदा हुई अथवा बाद में, पिता की संपत्ति में उसका अधिकार भाई के समान ही होगा। वह संपत्ति चाहे पुरखों द्वारा प्राप्त की गई हो अथवा पिता की आय से खरीदी गई हो।
शिक्षित, सचेत और सशक्त बेटियां किसी भी परिवार, समाज और अंततोगोत्वा राष्ट्र का वर्तमान और भविष्य दोनों को संवारने की ताकत रखती है। बदलते वक्त में शिक्षा के प्रसार के साथ बेटियां जीवन के हर पक्ष में बेटों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर एक उन्नत एवं बेहतर कल के निर्माण में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रही हैं। आज वे वृद्धावस्था में अपने माता पिता के कमजोर कंधों को सहारा भी देती नज़र आ रही हैं। तथापि पैतृक संपत्ति के विभाजन में उनके प्रति वर्षों से चला आ रहा भेदभाव भरा रवैया निसंदेह बेहद दुखद था जिसके चलते महिलाओं को अनगिनत तकलीफ़ें सहनी पड़ीं।
पिछले वर्ष 11 अगस्त 2020 को माननीय सुप्रीम कोर्ट के अहम कानूनी फैसले से राष्ट्र की बेटियों के हाथ मजबूत हुए हैं। आशा की जानी चाहिए कि यह फैसला लैंगिक असमानता से महिलाओं के जीवन पर आने वाली हर बाधा एवं संकट पर कुठाराघात करेगा। इससे बेटियों के प्रति हमारे कुटुंब एवं समाज में सोच और व्यवहार के स्तर पर दोहरे मानदंडों के ताबूत में कील ठुकेगी एवं महिलाओं के सशक्तिकरण को गति मिलेगी।
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