दफ्तर में समय बिताने वाली की गई गपशप हो या दोस्तों के साथ होने वाली चाय पार्टी हो, एक बात तो सबके बीच उठती ही है। वो है बचपन की न भूलने वाली कोई बुरी याद। देखा गया है कि इस सवाल के जवाब में अधिकतर वयस्क व्यक्ति, महिला हो या पुरुष, बचपन में पड़ी हुई मार को कभी नहीं भूलते हैं।
यह मार चाहे होमवर्क न करने पर स्कूल में पड़ी हो या फिर घर में की गई गलती के लिए पड़ी हो, एक बुरे धब्बे के रूप में हर व्यक्ति के दिमाग पर गहरी छाप छोड़ देती है। क्या आप जानते हैं कि बच्चों को मारने से उनके मानसिक विकास पर कुप्रभाव पड़ता है। आइये देखते हैं बच्चे के गाल पर पड़ा एक थप्पड़ क्या नुकसान करता है।
जब आप अपने बच्चे को अनुशासित करने के लिए मार का सहारा लेते हैं तब आप उन्हें यह सीखा रहे हैं कि अनुशासन लाने के लिए मारना ही जरूरी होता है। ऐसे में बच्चे खुद बड़े होकर यही पाठ अपने बच्चों को भी सिखाने की कोशिश करते हैं।
जिन बच्चों को बचपन में हर बात पर मार पड़ती है वो बचपन से ही अपना आत्मविश्वास खो देते हैं। यह बच्चे मैं गलत हूँ की भावना के साथ बड़े होते हैं और इसीलिए परिवार और समाज से कट जाते हैं। हमेशा मन में अपराधी होने की भावना, हकलाना, अंतर्मुखी व्यवहार, जरूरत से ज्यादा गुस्सा करना आदि इन बच्चों में अधिकतर देखा जाता है।
जो बच्चे घर हो या स्कूल, किसी न किसी बात पर जब मार खाते हैं तब वे अपने बड़ों को अपना प्रतिद्वंद्वी मान बैठते हैं। ऐसे में माता-पिता हों या शिक्षक वे उनकी कही हर बात को ज़बरदस्ती थोपा गया फरमान मानते हैं जिसका पालन न करना उनकी ज़िद बन जाती है। ऐसे में ये बच्चे अपने मन में बड़ों के प्रति आदर की भावना लाने में असफल रहते हैं।
छोटे बच्चों पर उठाया गया हाथ उनके शरीर से ज़्यादा मन और मस्तिष्क को घायल करता है। इस प्रकार घायल बचपन अपने मन में हर व्यक्ति और रिश्ते के प्रति केवल क्रोध की भी भावना रखता है। बड़ा होने पर यह क्रोध का ज्वालामुखी कभी-कभी घातक हिंसा में भी बदल जाता है। अधिकतर हिंसक अपराधी बचपन में पड़ी मार को ही अपने जीवन का पहला सीखा हुआ पाठ बताते हैं।
जो बच्चे घर और स्कूल में अधिक मार का सामना करते हैं वो बड़े होकर यही मानते हैं कि अनुशासन के लिए केवल मारना ही एक सबसे अच्छा तरीका हो सकता है। ये बच्चे मार के आगे भूत भागता है वाली कहावत को अपना मूल मंत्र मानते हुए जिंदगी में हर समय अपनाने में गर्व महसूस करते हैं।
देखा जाये तो बच्चों के मन और तन दोनों ही कोमल होते हैं। ऐसे में उनपर उठा हुआ एक हाथ उनके तन से ज्यादा कोमल मन पर चोट करता है। इसलिए कोमल मस्तिष्क को मार से नहीं बल्कि प्यार से मजबूत करना चाहिए।
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