महाराजा भूपिंदर सिंह का परिचय :
आजादी से पूर्व हमारे देश में प्रत्येक रियासत पर महाराजाओं का राज्य था। ये सभी महाराजा अपनी शानो शौकत के लिए दुनिया भर में जाने जाते थे। इन्हीं में से एक पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह हुआ करते थे। जो अपनी रंगीन मिजाजी के अतिरिक्त अजीमो शानो शौकत के लिए दुनिया में मशहूर थे।
इनका जन्म पटियाला के मोती बाग महल में 12 अक्टूबर सन 1891 में सिक्ख परिवार में हुआ था। इन्होने 1900 से 1938 तक पटियाला रियासत पर राज्य किया था । इतिहासकारों के अनुसार महाराजा भुपिन्दर सिंह की 365 रानियाँ थीं।
इनके नाम पर हीं पटियाला पैग आज भी जानी जाती है। इनके खाना खाने के बर्तन सोने के होते थे, जिसे लन्दन की कंपनी द्वारा डिजाईन किया गया था। पटियाला रियासत के महाराजा के पास अपना एयरप्लेन था इसके अतिरिक्त महाराजा के पास 44 रोल्स रॉयस गाड़ियाँ थीं। इन्हें महँगे आभूषणों का शौक था और इनके पास एक बेशकीमती 2930 हीरों का हार था। जिसकी गुमशुदगी की चर्चा आज भी इतिहास के गलियारों में सिसकियाँ भर रही है।
महाराजा भूपिंदर सिंह के बेशकीमती हार की कहानी :
इतिहासकारों के अनुसार महाराजा भूपिंदर सिंह पटियाला के पास एक 2930 हीरो से निर्मित हार था। जिसमें दुनिया का सातवाँ सबसे बड़ा और कीमती हीरा जड़ा हुआ था। इतना हीं नहीं इस हार में ग्रह नक्षत्रों की दशा और दिशा को ठीक करने वाले 13 कीमती रत्न भी जड़ित थे।
कहते हैं राजा भूपिंदर सिंह 1926 में आभूषण खरीदने के लिए पेरिस गए थे। उन्होंने वहाँ की दुनिया भर में प्रसिद्ध आभूषण बनाने वाली कंपनी कार्टियर को कीमती रत्नों, हीरे एवं आभूषणों से भरा हुआ एक संदूक भेज कर एक अनोखे हार को बनाने का आर्डर दिया था।
महाराजा के आज्ञानुसार पेरिस की कार्टियर कंपनी को हार तैयार करने में पुरे तीन वर्ष का समय लगा था। हार में 2930 हीरे अपने आप में अनोखे होने के लिए काफी थे, पर इसके बेशकीमती और अनूठेपन में चार-चाँद लगाती थी उस जमाने की सातवें सबसे बड़े हीरे की रौनक।
यह हीरा 234 कैरेट का डी बीयर्स हीरा था। इस हार का वजन लगभग एक हज़ार कैरेट और कीमत 166 करोड़ थी। महाराजा भूपिंदर सिंह इस प्लेटीनम, हीरे और रत्नों से जड़ित बहुमूल्य हार को विशेष अवसरों पर हीं धारण करते थे।
इतिहासकारों के अनुसार महाराजा भूपिंदर सिंह का हार देश की आज़ादी के बाद चोरी हुआ। कहते हैं इसे टुकड़ों में तोड़-तोड़ कर बेच दिया गया था। इस अमूल्य हार के अवशेष के रूप में प्लेटिनम की चैन मात्र बची हुई है। जो 1998 में लन्दन के एक एंटिक आभूषण के स्टोर में कार्टियर कंपनी के अधिकारी को मिली थी।
कार्टियर कम्पनी द्वारा इस हार के अवशेष को खरीद कर, फिर से हार को तैयार करने की कोशिश की गयी। किन्तु इस बार हीरे की जगह सफायर और टोपाज का प्रयोग किये जाने के कारण हार में पहले वाली बात नहीं आ पाई। फिर कंपनी द्वारा दोबारा तोड़ कर इसमें जिरकोनियम एवं आर्टिफिशियल हीरे का प्रयोग करके हार की नकल तैयार की गई और इसे अपने कब्जे में एतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित कर लिया गया।
फिलहाल पटियाल के महाराजा भूपिंदर सिंह का 2930 हीरों से बना हार पेरिस के मशहूर आभूषण ब्रांड कार्टियर कम्पनी के पास संरक्षित है।
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