भारत हमेशा से ही पुरुष प्रधान समाज रहा है। यहाँ पर घर के अहम फैसले या बहार के अत्यंत महत्वपूर्ण काम सभी पुरुषों द्वारा किए जाते हैं या यूँ कहे कि इन सभी कामों के लिए पुरुषों को ही उत्तम समझा जाता है, तो इसमें कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है।
यहाँ पर स्त्रियाँ भी पुरुषों का सम्मान करती है और उन्हें भी इस बात से कतई एतराज नहीं रहा है। लेकिन जब बात मौलिक अधिकारों की आ जाती है, तो एक स्री को इस के लिए लड़ना ही पड़ता है।
हम इस आर्टिकल में बात कर रहे हैं, तीन तलाक़ पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए ऐतिहासिक फैसले की। मुस्लिम समुदाय में भी पुरुषों का वर्चस्व अक्सर ज्यादा ही रहा है। बहु विवाह और तीन तलाक का प्रचलन उनके यहाँ कब शुरू हुआ कब नहीं यह कोई बहस का विषय नहीं रहा। परन्तु इसके वजह से कितन ही घर बर्बाद हुए और कितनी ही महिलाओं की जिंदगी बर्बाद हुई यह जरूर चिंताजनक विषय है।
तीन तलाक का अर्थ ही यही था की अगर किसी शौहर ( पति) द्वारा अपनी पत्नी को या पत्नी द्वारा अपने पति को तीन बार तलाक कह दिए जाये तो इसके बाद से ही उन दोनों के बीच कोई भी रिश्ता नहीं रह जायेगा।
उनका उसी वक़्त तलाक स्वीकार हो जायेगा। इसी नियम के चलते कई घर टूट गए। जब भी दो लोग साथ रहते हैं, तो उनमे थोड़ी बहुत अनबन होना तो स्वाभाविक है किन्तु अगर इस छोटी छोटी लड़ाई के चलते गुस्से में आकर किसी ने तीन बार तलाक कह दिए, तो शादी जैसे पवित्र बंधन का टूट जाना कहा तक उचित होगा।
इसी के जरिये कई लोगों ने तो फ़ोन पर ही तीन बार तलाक बोलकर अपना तलाक करवा लिए और इसके लिए तो आजकल टेक्नोलॉजी का भी प्रयोग करने लगे थे। व्हाट्सएप्प या एस.एम्.एस के जरिये ही लोगों ने तीन बार तलाक लिख कर भेजना शुरू कर दिए।
उत्तराखंड निवासी शायरा बानो , पहली ऐसी महिला जिन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने लिंगभेद और महिलाओं के मौलिक अधिकारों का खनन होने के आधार पर कोर्ट में अपना केस दर्ज करवा दिया। उनके कदम से और महिलाओं ने भी प्रेरणा लेकर इसके खिलाफ अपनी याचिका लगाई।
साल भर की चर्चाओं, कड़े विरोध , प्रद्रशन और अलग अलग प्रतिक्रियाओं के बाद २२ अगस्त मंगलवार को इस मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया।
इसकी सुनवाई ११ मई से १८ मई तक हुई थी, लेकिन फैसले को गोपनीय रखा गया था, जिससे की कही भी हिंसा का माहौल न बने। ५ जजों की बेंच ने यह फैसला दिया है, कि तीन तलाक असवैंधानिक है और यह संविधान के अनुछेद १४ का उलंघन करता है।
यह मुस्लिम महिलाओं के समान अधिकार को उनसे छीनता है, जो की भारतीय सविंधान के खिलाफ है। ५ में से तीन जजों ने एकमत बनाकर यह फैसला दिया है, जिससे मुस्लिम महिलाओं में बहुत हर्ष है।
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