धर्म और संस्कृति

क्या भगवान राम का धोबी की बात मानकर सीता से अग्निपरीक्षा कराना सही था?

किसी के द्वारा सीता का हरण कर लिया गया है, जब इस बात का पता श्रीराम व लक्ष्मणजी को चलता हैं, तो वह सीताजी की खोज में लग जाते है। उनकी यह खोज रावण की लंका में जाकर समाप्‍त होती है, परन्तु रावण की कैद से सीता को मुक्त कराने के लिये उन्हें रावण के साथ युद्ध करना पड़ता है। युद्ध में विजय प्राप्त कर जब श्रीराम सीताजी को अयोध्‍या लेकर आते है, तो वहाँ की प्रजा द्वारा माता सीता की पवित्रता पर संदेह करते हुए यह कहा जाता है कि सीता रावण की लंका में रह कर आर्इ है, तो क्या वह अब भी पवित्र हैॽ

 

इस बात की पुष्टि व अयोध्‍या की रानी के रूप में स्‍वीकार करने से पहले उन्‍हें अग्नि परीक्षा देकर अपनी पवित्रता को सिद्द करने के लिए कहा जाता है। इसके बाद माता सीता अग्नि देव से प्रार्थना करती है, कि हे अग्नि देव ! यदि मैं पवित्र हॅू तो मेरा अग्नि कुछ भी नहीं बिगाड़ पायेंगी, अन्‍यथा मुझे इस अग्नि में जला देना। माता सीता अग्नि में प्रवेश करती है और अग्नि द्वारा उन्हें पवित्र साबित किया जाता है। श्रीराम माता सीता को ससम्मान अपनाते हैं और फिर श्री राम एवं सीताजी का राज्य अभिषेक किया जाता है। परन्तु इसके बाद एक धोबी द्वारा फिर यह कहा जाता है कि सीता को अयोध्‍या की रानी बनाना सही नहीं है, क्‍योंकि वे काफी समय तक रावण की लंका में रहकर आई है। श्री राम सीता जी से फिर अग्नि परीक्षा लेना तो नहीं चाहते थे, परन्तु राजा होने के नाते उन्हें प्रजा की बात को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेना पड़ता है। इस प्रकार वह अपने पतिधर्म का त्याग कर सीताजी से पुन: अग्नि परीक्षा देने को कहते है। यहाँ पर श्रीराम एक राजा होने का धर्म तो निभाते है, लेकिन दूसरों के द्वारा कहे जाने पर अपनी पत्नी से बार-बार अग्नि परीक्षा लेना पतिधर्म के विरूद्ध प्रतीत होता है।

 

सीता तो अपने पत्‍नीधर्म का पालन करते हुए पति श्री राम के साथ वनवासी जीवन व्‍यतीत कर रही थी । ऐसे में प्रभु श्री राम का यह कर्तव्‍य बनता था कि वे अपनी पत्‍नी सीता की हर परिस्थिति में रक्षा करें, परन्‍तु किसी कारणवश वे ऐसा करने में असमर्थ रहते है और रावण के द्वारा सीता को छलपूर्वक हरा जाता है, जिसमें सीता की तनिक भी गलती नहीं होती है।

 

तो ऐसे में यह प्रश्‍न करना सर्वथा गलत है, कि माता सीता रावण की कैद में रहकर अपवित्र हो गई होगी। भारतीय इतिहास में ऐसे सैकड़ों उदाहरण है, जिनमें पतियों ने किसी दूसरों के द्वारा शोषित अपनी पत्‍नी को यह कहकर नहीं अपनाया कि जब प्रभु श्री राम ने अपनी प्रिय सीता को ठुकराया दिया, तो हम तुम्‍हें कैसे अपना लें । इसके विपरीत अगर प्रभु श्री राम सीता को बिना किसी संदेह के अपनाकर प्रजा को यह समझते, कि इस प्रकार किसी के चरित्र पर संदेह करना ठीक नहीं है, तो शायद समाज में स्‍त्रियों की दशा आज कहीं बेहतर होती।

जिस स्‍त्री ने बिना किसी अपराध के इतना कुछ सहकर भी यदि अपनी मर्यादा व पत्‍नीधर्म को बनाए रखा, तो ऐसी स्‍त्री के चरित्र पर किसी के द्वारा संदेह कैसे किया जा सकता हैॽ

शिखा जैन

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